पुलवामा हमले के करीब डेढ़ साल बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआइए की ओर से 19 आतंकियों के खिलाफ दायर आरोप पत्र यही बता रहा है कि इस आतंकी हमले की साजिश कितनी गहरी थी और उसे किस तरह पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद ने अंजाम दिया था? आरोप पत्र में देरी का कारण 40 जवानों की जान लेने वाले इस भीषण आतंकी हमले की साजिश की बिखरी कड़ियां जोड़ना हो सकता है, लेकिन अब चेष्टा यह होनी चाहिए कि अदालती प्रक्रिया तेजी के साथ आगे बढ़े। इस हमले के लिए जिम्मेदार लोगों को जल्द से जल्द सजा सुनाने से न केवल आतंकी तत्वों के दुस्साहस का दमन होगा, बल्कि पाकिस्तान को बेनकाब करने में भी मदद मिलेगी। इसके साथ ही राष्ट्रीय जांच एजेंसी आतंकवाद के खिलाफ एक सक्षम संस्था के रूप में उभरकर सामने आएगी।

इस एजेंसी की ओर से दाखिल आरोप पत्र के अनुसार पुलवामा का आतंकी हमला पाकिस्तानी आतंकियों के इशारे पर अंजाम दिया गया। आरोप पत्र में जैश-ए मुहम्मद के आतंकी सरगना मसूद अजहर के साथ उसके भाई को भी आरोपित बनाया गया है। यह वही खूंखार आतंकी है जो संसद के साथ पठानकोट में भी आतंकी हमले करा चुका है। उसे अपहृत भारतीय विमान के बंधक यात्रियों को रिहा कराने के बदले छोड़ना पड़ा था। उस पर पाकिस्तान तो मेहरबान है ही, चीन भी उसकी ढाल बनकर अपनी फजीहत करा चुका है। हालांकि इस खूंखार आतंकी सरगना पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने पाबंदी लगा रखी है, लेकिन यह केवल कागजी ही है। सच यही है कि पाकिस्तान में वह पहले की तरह संरक्षित है।

यदि पुलवामा हमले के सिलसिले में मसूद अजहर पर लगे आरोप सही साबित किए जा सकें तो पाकिस्तान पर नए सिरे से दबाव बनाने में सफलता मिलेगी। नि:संदेह वह भारत की पहुंच-पकड़ से दूर है, लेकिन उसके कई गुर्गे तो एनआइए की गिरफ्त में हैं। उन्हें बच निकलने का मौका नहीं दिया जाना चाहिए। आतंकवाद के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई को प्रभावी रूप देने के लिए यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि आतंकी हमलों से जुड़े मामलों की सुनवाई को विशेष प्राथमिकता दी जाए।

इसका कोई औचित्य नहीं कि अन्य मामलों की तरह इन मामलों की सुनवाई भी लंबी खिचे। जब ऐसा होता है तब जाने-अनजाने देश-दुनिया को यही संदेश जाता है कि भारत आतंकवाद से अपनी लड़ाई पूरी प्रतिबद्धता के साथ नहीं लड़ रहा है। उचित यह होगा कि आतंकी घटनाओं से जुड़े मामलों की सुनवाई एक तय समय सीमा के अंदर हो। इसके लिए केवल राष्ट्रीय जांच एजेंसी के साथ-साथ उन अदालतों को भी तेजी दिखानी होगी जिन पर ऐसे मामलों की सुनवाई की जिम्मेदारी है।