कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने अनुच्छेद 370 की वापसी की मांग करके यही साबित किया कि कांग्रेस या तो आत्मघात पर आमादा है या फिर अलगाववादी तत्वों के हाथों का खिलौना बनने को तैयार है। चिदंबरम ने पांच अगस्त 2019 के पहले की स्थिति बहाल करने की वकालत करके केवल नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कश्मीर की जमीनी हकीकत की अनदेखी करने वाले अन्य दलों के दुस्साहस को ही नहीं बढ़ाया, बल्कि पाकिस्तान और शायद चीन के भी मन की बात कह दी। यह एक किस्म की राष्ट्रविरोधी राजनीति के अलावा और कुछ नहीं।

यदि कांग्रेस नेतृत्व यह स्पष्ट नहीं करता कि वह चिदंबरम की मांग के साथ है या नहीं तो इससे यही साबित होगा कि वह दो नावों की सवारी करना चाह रहा है या फिर फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के साथ खड़ा होना पसंद कर रहा है। ध्यान रहे कि फारूक अब्दुल्ला चीन की मदद से अनुच्छेद 370 की वापसी का सपना देख रहे हैं। यह और कुछ नहीं, देश के शत्रुओं को दी जानी वाली शह है। यह शह इस तथ्य से परिचित होने के बाद भी दी जा रही है कि अनुच्छेद 370 और 35-ए भेदभाव, अन्याय और उत्पीड़न के पर्याय थे। ये दोनों अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर के वंचित समुदायों का शोषण करने में सहायक बनने का ही काम कर रहे थे।

चिदंबरम इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकते कि पिछले वर्ष जब अनुच्छेद 370 और 35-ए को हटाने का फैसला किया गया था तो कर्ण सिंह, जनार्दन द्विवेदी, दीपेंदर हुड्डा, मिलिंद देवरा जैसे अनेक कांग्रेसी नेताओं ने गुलाम नबी आजाद के विचारों से असहमति जताई थी, जो केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ बोल रहे थे। कहीं ऐसा तो नहीं कि चिदंबरम ने कांग्रेस नेतृत्व के इशारे पर अनुच्छेद 370 की वापसी की मांग की हो? यह सवाल इसलिए, क्योंकि यह संभव नहीं कि इतने महत्वपूर्ण मसले पर उन्होंने अपने मन से बयान दाग दिया हो। सच्चाई जो भी हो, कांग्रेस अंध मोदी विरोध से बुरी तरह ग्रस्त नजर आ रही है।

दलगत राजनीतिक हितों को प्राथमिकता देने के बाद भी उसमें इतनी समझ होनी चाहिए कि क्या देश हित में है और क्या नहीं? क्या कांग्रेस को यह ज्ञात नहीं कि अनुच्छेद 370 ने कश्मीर में अलगाव और आतंक को जन्म देने के अलावा और कुछ नहीं किया। अलगाववादियों और आतंकियों को खुराक देने के साथ पाकिस्तान को कश्मीर में दखल का मौका देने वाले इस अनुच्छेद का समर्थन करके चिदंबरम ने यह भी जाहिर किया कि उन्हें जम्मू संभाग के लोगों की कहीं कोई परवाह नहीं। बेहतर हो कि कोई उन्हें बताए कि केवल घाटी ही जम्मू-कश्मीर नहीं है।