चीन से सीमा विवाद पर सोनिया और राहुल गांधी ने यह दावा करते हुए फिर से प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा किया है कि चीन ने हमारी जमीन हथिया ली है। आखिर वह कौन है जो इन दोनों को यह बता रहा है कि चीन ने भारत की जमीन पर कब्जा कर लिया है? क्या कांग्रेस के लोग चीन से लगती सीमा पर तैनात हैं या फिर उनका अपना कोई खुफिया तंत्र है? आखिर कांग्रेस यह साबित करने पर क्यों तुली है कि चीन भारत की सीमा में घुस आया है और सरकार देश से सच छिपा रही है? सवाल यह भी है कि विपक्ष में अकेले कांग्रेस को ही प्रधानमंत्री पर भरोसा क्यों नहीं है?

इससे इन्कार नहीं कि लद्दाख में चीन अतिक्रमण की मुद्रा में है, लेकिन आखिर इसका यह मतलब कैसे हो सकता है कि वह भारत की सीमा में घुस आया है और सरकार ने उसके समक्ष हथियार डाल दिए हैं? कांग्रेस यही सिद्ध करने के लिए उतावली है। इस उतावलेपन में वह इसकी भी परवाह नहीं कर रही कि उसका रुख सेना को असहज करने वाला है। क्या कांग्रेस को इतना भी नहीं पता कि इस समय उसे ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे देश को भूले से भी यह लगे कि हमारी सेना सीमाओं की रक्षा करने में समर्थ नहीं?

लगता है कांग्रेस ने अपनी उन पुरानी और आत्मघाती भूलों से कोई सबक नहीं सीखा जो उसने सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के समय की थीं। राहुल गांधी तो ठीक उसी मुद्रा में दिख रहे हैं जैसी उन्होंने राफेल सौदे को तूल देते समय अपना ली थी। जैसे उस समय उन्होंने यह मनगढ़ंत खोज की थी कि इस सौदे में दलाली का लेनदेन हुआ है और प्रधानमंत्री ने खुद देश का पैसा कुछ उद्योगपतियों की जेव में डाला है वैसे ही इस वक्त वह साबित करने पर आमादा हैं कि चीन ने भारत में घुसपैठ कर ली है और यह कथित सच्चाई केवल उन्हें ही पता है।

हैरत नहीं कि राहुल गांधी के ऐसे बेढब रुख-रवैये से खुद उनके ही दल के नेता सहमत नहीं। यह समझ आता है कि चुनावी लाभ की खातिर राहुल गांधी ने राफेल सौदे पर झूठ का सहारा लेने के साथ ही अभद्र राजनीति का परिचय दिया, लेकिन आखिर इस वक्त वह क्या हासिल करना चाह रहे हैं? क्या उनके अनाप-शनाप बयानों से देश की जनता उनकी मुरीद हो जाएगी या फिर वह इस मुगालते में हैं कि इससे चीन और पाकिस्तान के मामले में कांग्रेस नेतृत्व की देशघाती भूलों को लोग विस्मृत कर बैठेंगे? अच्छा हो कि कोई उन्हें यह समझाए कि ऐसा नहीं होने वाला।