पता नहीं राहुल गांधी को यह आभास हुआ या नहीं कि योग दिवस पर उनकी ओर से जो तंज भरा ट्वीट किया गया उसकी कैसी खराब प्रतिक्रिया हुई, लेकिन बेहतर यह होगा कि उनके करीबी उन्हें बताएं कि उन्होंने किस तरह एक अवांछित टिप्पणी करके यह उम्मीद ध्वस्त कर दी कि एक और करारी पराजय के बाद वह अपनी रीति-नीति में सुधार करने में सक्षम होंगे। उनके अरुचिकर ट्वीट से यही जाहिर हुआ कि उन्हें योग दिवस की महत्ता के साथ देश की समृद्ध विरासत और गरिमा की भी परवाह नहीं।

नि:संदेह राहुल गांधी के अलावा अन्य अनेक लोग भी ऐसे हैैं जिन्हें यह रास नहीं आया कि नरेंद्र मोदी की एक पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने योग दिवस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का फैसला किया और देखते ही देखते ही वह दुनिया भर में लोकप्रिय हो गया, लेकिन आम तौर पर ऐसे लोग अपनी नापसंदगी इसलिए प्रकट करने से बचते हैैं, क्योंकि वह इससे परिचित हैं कि योग मानव समाज को एक अप्रतिम देन है और उससे भारत की प्रतिष्ठा भी जुड़ी है।

अगर राहुल गांधी को योग दिवस पर होने वाले आयोजन पसंद नहीं तो वह चुप रह सकते थे, लेकिन मोदी सरकार पर तंज कसने की ललक में उन्होंने यह ध्यान रखना जरूरी नहीं समझा कि वह अपनी फजीहत ही कराएंगे। क्या इससे खराब बात और कोई हो सकती है कि जब दुनिया भर में योग दिवस मनाया जा रहा था तब देश की सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष ने उसका उपहास उड़ाना बेहतर समझा? ऐसा करते समय उन्होंने यह भी ध्यान नहीं रखा कि वह मोदी सरकार के साथ सेना का भी निरादर करते हुए दिखेंगे।

आखिर किसी राष्ट्रीय दल का अध्यक्ष, जो प्रधानमंत्री भी बनना चाहता है, योग को लेकर ऐसी सस्ती और हल्की टिप्पणी कैसे कर सकता है? क्या सेना के जवानों संग योग करते कुत्तों की फोटो के अलावा उन्हें और कुछ ऐसा नहीं दिखा जिस पर वह जुुमलेबाजी करने का अपना शौक पूरा कर सकते? आखिर ऐसी कोई फोटो नए भारत का परिचायक क्यों नहीं हो सकती?

योग दिवस पर राहुल गांधी का कटाक्ष भरा ट्वीट उनके खराब हास्यबोध के साथ उनकी सतही राजनीतिक समझ को भी बयान करता है। यह ट्वीट न केवल यह रेखांकित करता है कि राहुल गांधी को मोदी सरकार के साथ उसके नए भारत के नारे से भी चिढ़ है, बल्कि यह भी कहता है कि उन्हें अब तक यह अहसास नहीं हो सका है कि कांग्रेस को इतनी करारी पराजय का सामना क्यों करना पड़ा? शायद इसी अहसास के कारण वह यह साबित करने की कोशिश करने में लगे हुए हैैं कि नरेंद्र मोदी ने नफरत फैलाकर सत्ता हासिल कर ली।

जब सत्तापक्ष प्रचंड बहुमत से लैस हो और राष्ट्रीय दल के रूप में केवल कांग्रेस ही उसे चुनौती देने में थोड़ा-बहुत सक्षम दिखती हो तब विपक्ष की अगुआई करने वाले राहुल गांधी के लिए तो यह और जरूरी हो जाता है कि वह कहीं अधिक धीर-गंभीर रहें और बेहद जिम्मेदारी से खुद को प्रभावी बनाने के तौर-तरीके अपनाएं। अफसोस की बात है कि राहुल गांधी ने ठीक इसके उलट काम किया।

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