कृषि सुधार कानूनों के विरोध में दिल्ली में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की ओर से ट्रैक्टर जलाए जाने के बाद पंजाब पहुंचे राहुल गांधी ने ट्रैक्टर पर ही बैठकर किसानों के हित की चिंता करने की जो कोशिश की, वह शायद कामयाब हो, क्योंकि उनके पास इन कानूनों के विरोध में कुछ ठोस कहने के लिए है ही नहीं। इसका पता इससे चलता है कि उन्होंने वह पुराना और घिसा हुआ जुमला फिर उछाला कि मोदी सरकार को चंद उद्योगपति चला रहे हैं।

इसी तरह वह फिर से इस नतीजे पर भी पहुंच गए कि मोदी सरकार ने बड़े कारोबारियों का टैक्स तो माफ कर दिया, लेकिन गरीबों को कुछ नहीं दिया। किसी जनसभा में ऐसे मिथ्या आरोप उछाल कर तालियां तो बटोरी जा सकती हैं, लेकिन ऐसे सवालों का जवाब नहीं दिया जा सकता कि आखिर कांग्रेस कृषि कानूनों का विरोध किस आधार पर कर रही है? चूंकि कांग्रेस के पास ऐसे सवालों का कोई जवाब नहीं इसलिए वह न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी व्यवस्था खत्म करने का शोशा छोड़ रही है और वह भी तब, जब इससे भली तरह परिचित है कि बहुत थोड़े से और खासकर बड़े किसान ही इस व्यवस्था का लाभ उठा पाते हैं।

आखिर गरीब हितैषी होने का दावा करने वाली कांग्रेस छोटे किसानों की चिंता क्यों नहीं कर रही है? दिलचस्प यह है कि वह इस सवाल पर चुप रहना ही पसंद कर रही है कि पिछले लोकसभा चुनाव के मौके पर जारी अपने घोषणा पत्र में उसने कृषि उपज बाजार समितियों संबंधी एपीएमसी अधिनियम को समाप्त करने और कृषि उत्पादों को प्रतिबंधों से मुक्त बनाने का वायदा क्यों किया था? नए कृषि कानूनों के जरिये यही तो किया गया है।

क्या कांग्रेस को इससे तकलीफ है कि उसके चुनावी वायदे को मोदी सरकार ने पूरा कर दिया?

जो भी हो, यह देखना दयनीय है कि जो कानून किसानों को आढ़तियों और बिचौलियों के एकाधिकार से मुक्त करने वाले हैं, कांग्रेस उन्हीं का विरोध कर रही है। आखिर यह बिचौलियों की खुली तरफदारी नहीं तो और क्या है? यह ठीक है कि पंजाब में आढ़तियों और बिचौलियों की एक मजबूत लॉबी है, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि कांग्रेस उनके एकाधिकार को बनाए रखने की कोशिश करते हुए न केवल किसानों के हितों की अनदेखी करे, बल्कि झूठ का सहारा लेकर उन्हें गुमराह भी करे। पंजाब पहुंचे राहुल गांधी ने यह भी कहा कि अगर कांग्रेस सत्ता में लौटी तो इन काले कानूनों को समाप्त कर देगी। यदि वह सत्ता में आ जाए तो अवश्य ऐसा करे, लेकिन कम से कम पहले 2019 के अपने घोषणा पत्र को वापस तो ले ले।