कोरोना वायरस के संक्रमण से उपजी समस्याओं ने ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि किसी के लिए भी यह कहना कठिन है कि कल को कैसी परिस्थितियां निर्मित होंगी? ऐसे में बेहतर यही है कि परिस्थितियों के हिसाब से फैसले लिए जाएं। दुनिया भर में सरकारें ऐसा ही कर रही हैं। भारत सरकार भी ऐसा ही कर रही है। उसके साथ-साथ राज्य सरकारें भी बदलते हालात के हिसाब से कदम उठा रही हैं। कांग्रेस नाजुक परिस्थितियों से अपरिचित नहीं हो सकती, लेकिन शायद उसने तय कर लिया है कि उसे हर दिन इस या उस बहाने केंद्र सरकार को कठघरे में खड़े करना है और इस क्रम में कुछ टेढ़े-मेढ़े सवाल भी पूछने हैं।

गत दिवस उसने यह सवाल पूछा कि सरकार बताए कि 17 मई के बाद लॉकडाउन जारी रहेगा या खत्म होगा? नि:संदेह केंद्र सरकार के नीति-नियंता इस पर माथापच्ची कर ही रहे होंगे, लेकिन आखिर वे आज के दिन यह कैसे कह सकते हैं कि दस दिन बाद क्या हालात बनेंगे? चूंकि संकट बड़ा है इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों के अथक प्रयासों के बाद भी समस्याओं का अंबार कम होता नहीं दिखता, लेकिन कांग्रेस ऐसे व्यवहार कर रही है जैसे सब कुछ सामान्य हो।

यह सही है कि कांग्रेस केंद्र सरकार को कोसने के साथ तमाम सुझाव भी दे रही है, लेकिन ऐसा करते समय वह इस पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझ रही कि आखिर उसके हिसाब से सबको राहत, रियायत और पैकेज देने के लिए धन का प्रबंध कैसे होगा? क्या पैसे पेड़ पर उगने लगे हैं? कांग्रेस को केंद्रीय कर्मचारियों के महंगाई भत्ते पर रोक भी स्वीकार नहीं और वह यह भी चाह रही है कि सरकार राजस्व बढ़ाने के लिए किसी तरह के टैक्स का भी सहारा न ले। क्या यह उचित नहीं होगा कि कांग्रेसी नेता और कम से कम पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यह बताएं कि सरकार आवश्यक धन का प्रबंध कैसे करे? कांग्रेस के ऐसे ही रवैये से यह लगता है कि वह संकट के समय कायम राजनीतिक एकजुटता के माहौल को भंग करना चाह रही है।

उसकी ओर से मजदूरों के रेल किराये का मसला जिस तरह उठाया गया उससे यही रेखांकित हुआ कि उसका मूल मकसद अपनी राजनीति चमकाना अधिक था, न कि मजदूरों को राहत दिलाना। कांग्रेस की तमाम छींटाकशी के बाद भी केंद्र सरकार को न केवल यह देखना होगा कि कोरोना के संक्रमण पर जल्द लगाम लगे, बल्कि यह भी कि कारोबारी गतिविधियां तेजी के साथ आगे कैसे बढ़ें? वह इसकी अनदेखी नहीं कर सकती कि कारोबारी गतिविधियों को बल देने के उसके निर्देशों पर सही ढंग से अमल नहीं हो पा रहा है।