संसद के आगामी सत्र के पहले विपक्ष के तीखे होते तेवर कोई नई बात नहीं। आम तौर पर संसद के हर सत्र के पहले विपक्ष ऐसे ही तेवर दिखाता है। उसकी ओर से विभिन्न मसलों पर सरकार से जवाब मांगने में हर्ज नहीं। सच तो यह है कि विपक्ष का काम ही है सरकार से जवाब-तलब करना, लेकिन मुश्किल यह है कि वह जवाब मांगने के नाम पर हंगामे की राह पकड़ता है। पिछले सत्र यानी बजट सत्र में उसने ऐसा ही किया और उसका नतीजा यह हुआ कि उस सत्र में करीब-करीब न के बराबर काम हुआ। सबसे खराब बात यह रही कि वित्त विधेयक बिना किसी बहस के ही पारित कराना पड़ा। यह सही है कि देश की राजनीति चुनावी वर्ष में प्रवेश कर गई है और आम चुनाव के पहले कई राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि संसद में कोई कामकाज ही न होने दिया जाए।

दुर्भाग्य से पिछले कुछ समय से सत्र शुरू होते ही संसद में गतिरोध कायम हो जाता है और कई बार तो वह टूटता ही नहीं। ऐसा इसलिए अधिक होता है, क्योंकि पक्ष-विपक्ष की ओर से गतिरोध तोड़ने की कोई पहल ही नहीं होती। बजट सत्र में जब विपक्ष नारेबाजी करके संसद की कार्यवाही बाधित करने में लगा हुआ था तब सत्तापक्ष भी यही संकेत अधिक दे रहा था कि यदि संसद में कोई काम नहीं होता तो उसे इसकी परवाह नहीं। इस बार वह ऐसे रवैये का परिचय नहीं दे सकता, क्योंकि कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित होने हैं।

सत्तापक्ष और विपक्ष को यह समझना होगा कि यदि संसद अपना मूल काम ही नहीं कर पाएगी तो फिर उसके साथ-साथ भारतीय राजनीति की भी गरिमा गिरेगी। अगर संसद महत्वपूर्ण मसलों पर चर्चा करने और कानून बनाने में असमर्थ रहती है तो फिर राजनीतिक दल एक तरह से देश की राह रोकने का ही काम करेंगे।

यह शुभ संकेत नहीं कि संसद का मानसून सत्र शुरू होने के पहले ही कांग्रेस ने टकराव की राह पर चलने के इरादे प्रकट कर दिए। तीन तलाक संबंधी विधेयक पर विपक्ष की आलोचना वाले प्रधानमंत्री के बयान पर कांग्रेस की आपत्ति स्वाभाविक है, लेकिन अगर इस आपत्ति के बहाने संसद को बाधित करने की कोशिश की जाती है तो इससे यही साबित होगा कि उसकी दिलचस्पी इसमें नहीं कि संसद चले।

बेहतर होगा कि सत्तापक्ष विपक्ष के इरादों को भांपते हुए ऐसी रणनीति बनाए जिससे टकराव टाला जा सके और जरूरी विधायी काम आगे बढ़ाए जा सकें। जैसे विपक्ष को यह नहीं भूलना चाहिए कि शासन के संचालन का अधिकार सत्तापक्ष को है वैसे ही सरकार को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि संसद में कामकाज लायक माहौल बनाना उसकी जिम्मेदारी है। वैसे इस जिम्मेदारी का निर्वाह तभी हो सकता है जब विपक्ष तार्किक रवैये का परिचय दे।

यदि विपक्षी दल हंगामा करने पर अड़ जाएं तो फिर सत्तापक्ष चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता। कहना कठिन है कि इस बार पक्ष-विपक्ष संसद में कैसे तेवर दिखाएंगे, लेकिन उनसे अपेक्षित यही है कि वे संसद का इस्तेमाल चुनावी अखाड़े की तरह न करें।