इस पर हैरानी नहीं कि कांग्रेस ने राफेल विमान सौदे में कथित गड़बड़ी को चुनावी हथियार बनाने का फैसला किया। खुद राहुल गांधी पिछले कुछ समय से इस सौदे को जिस तरह महंगा सौदा करार देने में लगे हुए थे उससे यह साफ था कि कांग्रेस इस मसले में अपना राजनीतिक हित देख रही है। कांग्रेस राफेल सौदे को शायद इसलिए चुनावी मसला बना रही है, क्योंकि वह इससे अवगत है कि बोफोर्स तोप सौदे में दलाली के मसले के साथ संप्रग शासन में घपले-घोटालों के मामलों ने उसे कैसे दिन दिखाए? नि:संदेह उच्च स्तर का भ्रष्टाचार सदैव से लोगों का ध्यान आकर्षित करता रहा है, लेकिन यह कहना कठिन है कि आम जनता राफेल सौदे में कथित गड़बड़ी के कांग्रेस के आरोप को भ्रष्टाचार के मसले के तौर पर देखेगी।

कांग्रेस किसी भी मसले को अपनी चुनावी रणनीति का हिस्सा बनाने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन दाल तब गलेगी जब सरकार उस मसले पर रक्षात्मक नजर आएगी या फिर विपक्ष की ओर से उठाए गए सवालों का जवाब देने से बचेगी। राफेल सौदे को लेकर सरकार यह दावा करती चली आ रही है कि इससे बेहतर सौदा और कोई नहीं हो सकता, लेकिन वह गोपनीयता संबंधी प्रावधान का हवाला देकर सारी जानकारी सार्वजनिक करने को तैयार भी नहीं। उसकी मानें तो ऐसा करने से राफेल लड़ाकू विमान की विशेषताएं दुनिया को पता लग जाएंगी। इस तर्क का अपना महत्व है, लेकिन देखना यह होगा कि आम जनता उससे सहमत होती है या नहीं?

इसमें संदेह है कि कांग्रेसी नेताओं के कहने भर से जनता राफेल सौदे में भ्रष्टाचार होने की बात सही मान लेगी, क्योंकि मोदी सरकार ने अपनी यह छवि बनाई है कि वह भ्रष्टाचार को सहन करने के लिए तैयार नहीं। यह एक तथ्य भी है कि सरकार के उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार का कोई मामला सामने नहीं आया है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि राफेल सौदे को लेकर पहले खुद रक्षा मंत्री ने यह कहा था कि वह सारी जानकारी सामने रखेंगी। बाद में उन्होंने कहा कि गोपनीयता संबंधी प्रावधान के चलते वह ऐसा नहीं कर सकतीं। अब जब कांग्रेस ने राफेल सौदे को तूल देने का इरादा स्पष्ट कर दिया है तो सरकार को ऐसा कुछ करना होगा जिससे वह इस मसले पर कुछ छिपाती हुई न दिखे।

बेहतर होगा कि वह ऐसे जतन करे जिससे कांग्रेस के आरोपों की हवा भी निकल जाए और राफेल सौदे की गोपनीयता भी न भंग हो। कांग्रेस के लिए भी यह जरूरी है कि वह राफेल सौदे में गड़बड़ी के अपने आरोपों के पक्ष में कुछ प्रमाण सामने रखे। वैसे यदि उसके पास अपनी बात साबित करने के पक्ष में कुछ सूचना-सामग्री है तो वह अदालत का रुख क्यों नहीं करती? अगर कांग्रेस राफेल सौदे को एक बड़ा मसला बनाने को लेकर वास्तव में गंभीर है तो फिर उसे यह भी पता होना चाहिए कि इस सौदे की समीक्षा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग की ओर से की जा रही है। यदि कैग ने अपनी समीक्षा में इस सौदे को सही पाया तो कांग्रेस के चुनावी हथियार की हवा निकल सकती है।