राफेल विमान सौदे को लेकर कांग्रेस के तेवर जिस तरह तीखे होते जा रहे हैैं उससे यही जाहिर हो रहा है कि उसे इस मसले से राजनीतिक लाभ मिलने की भरपूर संभावना नजर आने लगी है। कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर कितना गंभीर है, इसका पता इससे चलता है कि वह आए दिन अपने किसी नेता को सरकार को घेरने के लिए उतार रही है। इसके अतिरिक्त वह सीधे प्रधानमंत्री पर निशाना साधने के साथ ही इस मसले को आम जनता के बीच भी ले जा रही है।

कांग्रेस मोदी सरकार के साथ उद्योगपति अनिल अंबानी पर भी अपने हमले तेज कर रही है। जहां अनिल अंबानी कांग्रेस को जवाब देने और उसे नोटिस भेजने में लगे हुए हैं वहीं सरकार यह कहने तक सीमित है कि इस सौदे में कोई गड़बड़ी नहीं और सारे आरोपों का जवाब दिया जा चुका है। इसमें संदेह है कि केवल इतने से बात बनेगी। यदि इस सौदे में कहीं कोई खामी नहीं तो फिर सरकार के रक्षात्मक नजर आने का क्या मतलब?

ध्यान रहे कि कांग्रेस अब यह भी प्रचारित कर रही है कि सरकार उसके सवालों का जवाब देने से इन्कार कर रही है। वह प्रधानमंत्री के साथ मौजूदा एवं पूर्व रक्षामंत्री को भी कठघरे में खड़ा कर रही है। सरकार को इस कठघरे से बाहर आने का कोई उपाय खोजना ही होगा।

नि:संदेह 36 राफेल लड़ाकू विमानों का सौदा गोपनीयता के प्रावधान से लैस है, लेकिन इसके बाद भी ऐसी कुछ जानकारी तो सामने रखी ही जा सकती है जिससे यह साबित हो सके कि इस सौदे को लेकरउठाए जा रहे सवाल दरअसल दुष्प्रचार का हिस्सा हैैं। इसके लिए जरूरत हो तो फ्रांस सरकार से अनुमति ली जानी चाहिए। एक अन्य तरीका यह हो सकता है कि सीमित गोपनीय जानकारी उन विपक्षी नेताओं को व्यक्तिगत तौर पर उपलब्ध करा दी जाए जो इस सौदे पर सवाल उठाने में लगे हुए हैैं।

सरकार के रणनीतिकारों को इससे अच्छी तरह परिचित होना चाहिए कि भ्रष्टाचार और खासकर रक्षा सौदों में गड़बड़ी के मसले आम जनता पर असर करते हैैं। उन्हें इसका भी भान होना चाहिए कि चुनावी साल में सरकार यह जोखिम नहीं ले सकती कि जनता के मन में किसी तरह का संशय पैदा हो जाए। राफेल सौदे पर एक ओर जहां सरकार को सक्रियता दिखाने की जरूरत है वहीं विपक्ष और खासकर कांग्रेस को भी यह स्पष्ट करने की जरूरत है कि अगर मनमोहन सरकार के समय नाभिकीय हमले में सक्षम एक राफेल विमान की कीमत वास्तव में 540 करोड़ रुपये थी तो फिर उसने यह सौदा किया क्यों नहीं?

उसे यह भी बताना होगा कि विमान निर्माता कंपनी इस कीमत पर विमान देने के लिए तैयार थी या नहीं? उसे यह भी अहसास होना चाहिए कि वह इस सवाल से दो-चार हो रही है कि अगर उसके पास राफेल सौदे में गड़बड़ी के प्रमाण हैैं तो फिर वह अदालत क्यों नहीं जाती? कांग्रेस की मानें तो उसे अनिल अंबानी की नोटिस की परवाह नहीं, लेकिन आखिर वह अदालती प्रक्रिया का पालन करने को तैयार है या नहीं? आखिर नोटिस को हवा में उड़ाने का क्या मतलब?