बिहार विधानसभा चुनाव के साथ अन्य राज्यों के उपचुनावों में मिली हार के बाद कांग्रेस के अंदर से उठी आत्मनिरीक्षण की आवाज को वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल की ओर से संबल दिया जाना महत्वपूर्ण तो है, लेकिन इसमें संदेह है कि देश की इस सबसे पुरानी पार्टी में कहीं कोई बदलाव होने जा रहा है। इसके आसार इसलिए नहीं, क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व अर्थात गांधी परिवार 2014 के बाद से ही एक के बाद एक चुनावों में पराजय के कारणों पर आत्ममंथन करने से न केवल बच रहा है, बल्कि जो नेता इसकी जरूरत जताते हैं, उन्हें हतोत्साहित कर रहा है। स्थिति यह है कि पार्टी के अंदर ऐसा कोई मंच तक नहीं जहां कांग्रेसी नेता अपनी बात कह सकें। इसका ताजा प्रमाण यह है कि कपिल सिब्बल को यह बात कहने के लिए मीडिया का सहारा लेना पड़ा कि कांग्रेस को अब विकल्प के रूप में नहीं देखा जा रहा है।

हैरानी नहीं कि पार्टी नेतृत्व का पर्याय बन गए गांधी परिवार की ओर से उन्हें इस बात के लिए झिड़की सुनने को मिले कि कांग्रेस को हार पर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। कोई इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि कपिल सिब्बल समेत कांग्रेस के करीब दो दर्जन वरिष्ठ नेताओं की ओर से पार्टी के तौर-तरीकों में बदलाव के लिए सोनिया गांधी को लिखी गई चिट्ठी के जवाब में उन्हें किस तरह हिदायत दी गई थी। इनमें से कुछ के तो पर भी कतर दिए गए थे। इसका सीधा संदेश यही था कि कोई नेता परिवार को सुझाव-सलाह देने की भी हिम्मत न जुटाए।

कांग्रेस जैसे-जैसे कमजोर होती जा रही है, गांधी परिवार उस पर अपनी पकड़ और मजबूत करता जा रहा है। पहले सोनिया गांधी अध्यक्ष थीं और राहुल गांधी उपाध्यक्ष। जब राहुल अध्यक्ष बने तो उन्होंने बहन प्रियंका को महासचिव बना दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में करारी हार की जिम्मेदारी लेकर जब राहुल ने अध्यक्ष पद छोड़ा तो सोनिया इस विचार के बावजूद अंतरिम अध्यक्ष बन गईं कि पार्टी की कमान परिवार के बाहर का कोई नेता संभाले। सोनिया को अंतरिम अध्यक्ष बने एक वर्ष से अधिक बीत गया है और कोई नहीं जानता कि कांग्रेस को पूर्णकालिक अध्यक्ष कब मिलेगा। गांधी परिवार को जल्दी इसलिए नहीं, क्योंकि राहुल पर्दे के पीछे से पार्टी चला रहे हैं। ऐसा इसीलिए है, क्योंकि परिवार ने पार्टी को अपनी जागीर मान लिया है।

समय के साथ कांग्रेस में चाटुकार नेताओं का एक ऐसा समूह भी उभर आया है, जिसका एकमात्र काम गांधी परिवार का गुणगान करना है। बहुत संभव है कि उनकी ओर से कपिल सिब्बल को खरी-खोटी सुनाना शुरू कर दिया जाए। जो भी हो, कांग्रेस में सुधार के कोई आसार नहीं।