यह आवश्यक ही नहीं अनिवार्य था कि उन सनसनीखेज आरोपों की भी कोई गहन जांच होती जिनके तहत यह कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ की गई यौन उत्पीड़न की शिकायत एक बड़ी साजिश का हिस्सा है और यह उन लोगों ने रची जो बेंच फिक्सिंग की ताक में रहते हैं। चूंकि एक वकील की ओर से लगाए गए ये आरोप सुप्रीम कोर्ट की साख को चोट पहुंचाने वाले हैं इसलिए उनकी गहन जांच होनी ही चाहिए थी।

ऐसी किसी जांच की जरूरत इसलिए भी थी, क्योंकि कुछ मामलों में पहले भी बेंच फिक्सिंग का संदेह सतह पर आ चुका है। बेंच फिक्सिंग का आरोप कितना गंभीर है, इसका पता न्यायाधीशों की इस टिप्पणी से चलता है कि देश के अमीरों और ताकतवर लोगों को यह बताने का समय आ गया है कि वे आग से खेल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बेंच फिक्सिंग के आरोपों की जांच पूर्व न्यायाधीश एके पटनायक को सौंपी है। पटनायक समिति को यह भी अधिकार दिया गया है कि जरूरत पड़ने पर वह खुफिया ब्यूरो और केंद्रीय जांच ब्यूरो का भी सहयोग ले सकती है। पता नहीं, इसकी आवश्यकता पड़ेगी या नहीं, लेकिन जरूरी यह है कि इन आरोपों की तह तक जाया जाए।

एक अर्से से सुप्रीम कोर्ट असहज करने वाले सवालों से घिरा है। देश की सबसे बड़ी अदालत को सवालों और संदेह से परे होना ही नहीं चाहिए, बल्कि दिखना भी चाहिए। इससे ही आम जनता का उस पर भरोसा बना रह सकता है। सुप्रीम कोर्ट न्याय का अंतिम सहारा है और हर ओर से निराश लोग इस आस में उसके पास पहुंचते हैं कि वहां से तो उन्हें न्याय मिलेगा ही। यह भरोसा कायम रखने के लिए बेंच फिक्सिंग के आरोपों की केवल जांच ही जरूरी नहीं है, बल्कि यह व्यवस्था करना भी आवश्यक है कि भविष्य में किसी तरह के संदेह के लिए गुंजाइश न रहे। चूंकि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का सवाल नया नहीं है इसलिए सुप्रीम कोर्ट में बेंच फिक्सिंग के आरोपों की जांच के साथ ही यह भी देखा जाना चाहिए कि निचले स्तर की न्यायपालिका भ्रष्टाचार के आरोपों की आंच से कैसे मुक्त हो?

नि:संदेह यह कहना सच से मुंह मोड़ना होगा कि निचले स्तर के न्यायिक तंत्र में सब कुछ सही है। इस सवाल का जवाब मिलना ही चाहिए कि अगर न्यायिक तंत्र दुरुस्त है तो फिर देश में हर स्तर पर इतना भ्रष्टाचार क्यों है? चूंकि पटनायक समिति एक विशेष मामले की ही जांच कर रही है इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि वह उन सब समस्याओं का निदान खोज सकेगी जिनका सामना उच्चतर न्यायपालिका के साथ निचले स्तर का न्यायिक तंत्र कर रहा है। आज जरूरत इसकी है कि जिला स्तर की अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट के स्तर पर जो भी खामियां हैं उन्हें दूर करने की कोई ठोस रूपरेखा बने। जैसे मुकदमों की त्वरित सुनवाई के बजाय तारीख पर तारीख का सिलसिला एक बड़ी समस्या है वैसे ही फालतू के मसलों का सर्वोच्च न्यायालय पहुंचना भी। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अभी न्यायाधीशों की नियुक्ति का सवाल भी हल होना शेष है।