अमेरिका में परमाणु हथियार संबंधी तकनीक अवैध तरीके से खरीदने के आरोप में पांच पाकिस्तानी नागरिकों की गिरफ्तारी खतरे की नई घंटी है। इन पाकिस्तानियों ने अमेरिका में गुपचुप रूप से वे उत्पाद खरीदकर पाकिस्तान भेजे जो अमेरिका के सुरक्षा हितों के साथ-साथ दक्षिण एशिया के शक्ति संतुलन के लिए भी खतरा बन सकते हैं। चोरी की तकनीक से अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने में माहिर पाकिस्तान की इस नई हरकत से भारत और अमेरिका के साथ-साथ विश्व समुदाय को भी चेतना चाहिए।

वास्तव में सबसे अधिक चेतना चाहिए चीन को, क्योंकि वही है जो पाकिस्तान का अंध समर्थन करने में लगा हुआ है। ऐसा करके वह पाकिस्तान को और अधिक गैर-जिम्मेदार राष्ट्र बनाने का ही काम कर रहा है। इसी के साथ वह खुद भी बदनाम हो रहा है। समझना कठिन है कि हर मोर्चे पर गैर जिम्मेदारी का परिचय देने और साथ ही किस्म-किस्म के आतंकी गुटों का समर्थन करने वाले पाकिस्तान की पैरवी करने से चीन को हासिल क्या हो रहा है? यदि चीनी नेतृत्व यह समझ रहा है कि आतंक समर्थक पाकिस्तान को शह देकर वह भारत की राह रोकने में कामयाब हो सकता है तो यह उसकी भूल ही है।

चीन को यह आभास हो तो बेहतर कि उसकी पाकिस्तानपरस्ती उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि को दागदार करने का ही काम कर रही है। उसकी इस अंध पाकिस्तानपरस्ती से विश्व समुदाय न केवल अवगत हो रहा है, बल्कि उसे शर्मिदा भी कर रहा है। चीन को यह समझना होगा कि आतंकी सरगना मसूद अजहर की ढाल बनने और फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कश्मीर मसला उठाने से उसे कुछ हासिल हुआ तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय की झिड़की। चीन एक ओर दुनिया की नई महाशक्ति बनने को आतुर है और दूसरी ओर यह देखने से इन्कार कर रहा है कि उत्तर कोरिया और पाकिस्तान जैसे बेलगाम देशों का संरक्षक बनने के कारण उसे विश्व शांति के लिए खतरा माना जाने लगा है।

यदि चीन सचमुच पाकिस्तान का हितैषी है तो फिर क्या कारण है कि उसके तमाम समर्थन-संरक्षण के बाद भी वह नाकामी की ओर बढ़ रहा है? माना कि अपनी राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों के प्रति पाकिस्तान की आंखें बंद हैं, लेकिन क्या चीन को भी भले-बुरे की समझ नहीं है? भारत को विश्व समुदाय के समक्ष यह रेखांकित करने के लिए सक्रिय होना चाहिए कि चीन की सरपरस्ती पाकिस्तान को और अधिक बिगड़ैल देश में तब्दील कर रही है। इसी के साथ उसे चीन के समक्ष भी यह स्पष्ट करना चाहिए कि कश्मीर के मामले में उसका रवैया न तो वुहान की भावना के अनुकूल है और न ही मामल्लापुरम में कायम हुई समझ-बूझ के।