झारखंड में अमूमन हर साल मिडिल स्कूलों को हाईस्कूल में अपगे्रड किया जा रहा है लेकिन इनमें न तो शिक्षकों की नियुक्ति हो पा रही है और न ही प्रयोगशाला या अन्य संसाधन विकसित किए जा रहे हैं। हाल में जारी मैट्रिक के दयनीय परीक्षा परिणाम का यह भी एक बड़ा कारण है। पिछले साल हाईस्कूलों के लिए नियुक्ति होने के बावजूद सैकड़ों स्कूलों में मिडिल स्कूल के शिक्षक ही अभी तक पढ़ा रहे हैं। इस वर्ष भी राज्य में 189 मिडिल स्कूलों को हाईस्कूल में अपग्रेड करने का निर्णय लिया गया है। राज्य सरकार ने राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत यह प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था। इसकी स्वीकृति मिल चुकी है। अपग्रेड किए जाने वाले स्कूलों में इसी साल से पढ़ाई शुरू करने की तैयारी चल रही है लेकिन इसमें तकनीकी खामी है। इन स्कूलों के लिए शिक्षकों का पद सृजित नहीं किया गया है। ऐसे में शिक्षण का कार्य बाधित होगा। राज्य में अबतक 1,230 मिडिल स्कूल हाईस्कूल में अपग्रेड किए गए जा चुके हैं। 2006-07 में सबसे पहले 336 स्कूल राज्य बजट से अपगे्रड किए गए थे। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत 2009-10 से 2011-12 तक कई चरणों में 894 स्कूल अपग्रेड किए गए थे। पूर्व में अपग्रेड किए गए 894 स्कूलों में अब तक शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पाई है। हालांकि इन स्कूलों के लिए शिक्षकों के पद दो वर्ष पूर्व ही सृजित किए गए थे। राज्य सरकार ने नियुक्ति के लिए नियमावली गठित कर ली है, लेकिन शिक्षकों के पद जिलास्तरीय घोषित किए जाने से इसमें संशोधन की बात चल रही है। कई स्थानों से यह भी शिकायतें मिलती रही हैं कि नियुक्ति के बावजूद शिक्षक स्कूलों का रुख नहीं करते। मुख्यमंत्री जनसंवाद की समीक्षा में हजारीबाग का ऐसा ही एक मामला सामने आया। एक शिक्षक नियुक्ति के बाद कभी स्कूल ही नहीं गए। राज्य सरकार ने इस मामले की जांच के आदेश दिए हैं। पदाधिकारियों को उक्त शिक्षक के खिलाफ विभागीय कार्रवाई का भी निर्देश दिया गया है। सवाल उठता है कि इस सुस्त व्यवस्था में राज्य की शिक्षा व्यवस्था पटरी पर कैसे आएगी? ज्यादातर स्कूल अभी पारा शिक्षकों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं। तमाम कवायद के बावजूद शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया धीमी है। यह शिक्षा क्षेत्र के लिए बड़ी चुनौती है। राज्य सरकार को चाहिए कि शिक्षा व्यवस्था को चुस्त करने की दिशा में कार्य करे। शिक्षकों को बेहतर परिणाम देने की जवाबदेही भी सौंपी जाए। ऐसा होने से भावी पीढ़ी का भविष्य अंधकारमय होने से बच जाएगा।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]