नई दिल्ली, जेएनएन। यदि विजय माल्या के बाद मेहुल चोकसी ने भी बैंकों का बकाया लौटाने की हामी भरी तो इसका यह मतलब नहीं कि उन्हें अपनी भूल का अहसास हो रहा है। उनके सुर बदलने के पीछे सरकारी एजेंसियों की ओर से दिखाई जा रही सख्ती और भगोड़ा आर्थिक कानून के तहत होने वाली संभावित कार्रवाई है। यह अच्छा है कि मेहुल चोकसी की ओर से बैंकों की सारी देनदारी चुकाने की बात को प्रवर्तन निदेशालय गंभीरता से नहीं ले रहा है। उसे लेना भी नहीं चाहिए, क्योंकि मेहुल चोकसी की ओर से यह भी बहाना बनाया जा रहा है कि वह एंटीगुआ से भारत तक का 41 घंटे का लंबा सफर नहीं कर सकते। यह हास्यास्पद है कि वह ढंग का बहाना भी नहीं बना सके। आखिर जो आदमी इतनी लंबी यात्र करके एंटीगुआ जा सकता है, वह वहां से भारत क्यों नहीं आ सकता? मेहुल चोकसी की बहानेबाजी ने नीरव मोदी की याद दिला दी जिन्होंने यह फरमाया था कि वह भारत इसलिए नहीं लौटना चाहते, क्योंकि यहां उन्हें खलनायक बना दिया गया है। आखिर उनके या फिर मेहुल सरीखे कारोबारी को खलनायक की तरह न देखा जाए तो किस रूप में देखा जाए?

बेहतर हो कि सरकारी एजेंसियां मेहुल चोकसी को यह संदेश देने में देर न करें कि अगर वह कुछ रियायत चाहते हैं तो जल्द स्वदेश लौटें। ऐसा कोई संदेश देने के साथ ही यह भी जरूरी है कि उनकी संपत्ति जब्त करने को लेकर शुरू हुई अदालती कार्रवाई में तेजी आए। भगोड़ा आर्थिक अपराध कानून का केवल कठोर होना ही पर्याप्त नहीं है। इस कठोर कानून पर आनन-फानन अमल भी समय की मांग है। इससे ही बैंकों से छल करके विदेश भाग जाने वाले तत्वों पर लगाम लगेगी। मेहुल चोकसी और नीरव मोदी केवल बैंकों का पैसा लेकर ही नहीं भागे, बल्कि वे छल-छद्म से लेटर आफ इंटेंट हासिल करने के आरोपों से भी घिरे हैं। इसके चलते उन्हें अदालत से ही कोई राहत मिल सकती है। यदि वे सब कुछ जानते हुए भी सरकार से नरमी की उम्मीद कर रहे हैं तो यही कहा जा सकता है कि बैंकों की देनदारी चुकाने की बात दरअसल देश को धोखा देने की कोशिश है। एक ओर जहां इन दोनों के खिलाफ अदालती कार्रवाई में तेजी अपेक्षित है वहीं इसकी भी दरकार है कि उन देशों पर कूटनीतिक दबाव बढ़ाया जाए जहां इन लोगों ने शरण ले रखी है। इसी के साथ यह भी देखना होगा कि बैंकों की कार्यप्रणाली दुरुस्त हो गई या नहीं? यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि अभी हाल में पंजाब नेशनल बैंक की उसी मुंबई शाखा में नौ करोड़ रुपये के एक और घोटाले का पता चला जिसका इस्तेमाल नीरव मोदी ने किया था। यह सही है कि ताजा मामला कहीं कम राशि का है, लेकिन इससे यह सवाल तो उठता ही है कि क्या अभी बैंकिंग व्यवस्था के वे छिद्र भरे नहीं जा सके हैं, जिनके सहारे नीरव मोदी और मेहुल चोकसी ने सेंधमारी की थी? यह चिंता की बात है कि नौ करोड़ रुपये का जो नया घोटाला सामने आया वह भी बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत से अंजाम दिया गया।