परिवहन निगम की बसों में लगातार बेटिकट यात्रियों के मामले निगम की कार्यशैली पर सवाल उठा रहे हैं। यदि ऐसी ही स्थिति रही तो निगम के घाटे को पूरा करना सरकार के लिए भी मुश्किल होगा।
-----------
परिवहन निगम में लगातार सामने आ रहे भ्रष्टाचार के मामले चिंताजनक हैं। स्थिति यह है कि पिछले एक साल में रोडवेज की 103 बसों में 226 यात्री बेटिकट पाए गए हैं। इतना ही नहीं, 17 बसों में बिना लॉगबुक के सामान लदा हुआ भी मिला। कार्रवाई के नाम पर आउट सोर्सिंग के 12 परिचालकों को बर्खास्त और 57 नियमित परिचालकों का तबादला किया गया। महज खानापूर्ति के लिए उठाए गए इस कदम का असर कर्मचारियों पर नजर नहीं आया। यही कारण भी है कि इन पर अभी तक रोक नहीं लगाई जा सकी है। इस पर रोक न लगने का एक बड़ा कारण हड़ताल की चेतावनी भी है। इस तरह की घटनाएं सामने आने पर कर्मचारी हड़ताल के लिए आमादा हो जाते हैं। निगम में भ्रष्टाचार की एक वजह अधिकारियों व कर्मचारियों की आपसी मिलीभगत भी है। अधिकारियों पर अपने मनपसंद परिचालकों को एक ही रूट तथा वॉल्वो व एसी बसों पर भेजने के आरोप लगते रहे हैं। इन बसों में टिकटों की कीमत अधिक होने के कारण बेटिकट यात्रा करा कर अधिक कमाई की संभावनाएं रहती हैं। कहने को निगम ने नियम बनाए हैं कि अगर दस बगैर टिकट सवारी पकड़ी गई तो एजीएम और आरएम तक कार्रवाई की जद में शामिल होंगे। ऐसे कई मामले सामने आने के बाद भी निगम प्रबंधन कभी इन पर जांच कराने और कार्रवाई कराने की हिम्मत नहीं कर पाया। नई सरकार के 'जीरो टॉलरेंस' के दावे के बाद इस दिशा में सुधार की उम्मीद जगी लेकिन परिवहन निगम में सुधार की कवायद फिलहाल परवान चढ़ती नजर नहीं आ रही है। जिस तरह बसें लगातार बेटिकट पकड़ी जा रहीं, उससे साफ है कि अभी इस दिशा में काफी कुछ करने की जरूरत है। अब निगम दावा कर रहा है कि इन मामलों की रोकथाम के लिए ऐसी टिकट मशीनें खरीदीं जा रहीं, जिनमें चिप सिस्टम होगा। टिकट कटते ही सीधे सर्वर में दर्ज हो जाएगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह व्यवस्था सुचारु रहे। सरकार को भी इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है, तभी घाटे में चल रहे परिवहन निगम की अर्थव्यवस्था पटरी पर लाई जा सकती है।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]