यमुनानगर के विवेकानंद स्कूल की प्रधानाचार्य की हत्या के विरोध में मंगलवार को हरियाणा के करीब 18 हजार प्राइवेट स्कूल बंद रहे। यह एक स्वाभाविक क्षोभ था और साथ ही मरहूम प्रधानाचार्या को श्रद्धांजलि भी। निजी स्कूलों का सारा गुस्सा इस बात पर था कि हरियाणा सरकार स्कूलों में सुरक्षा बंदोबस्त नहीं करती है और प्रबंधन को बात-बात पर निशाना बनाती है। जब भी स्कूल प्रांगण या बस में विद्यार्थियों से कोई अप्रिय घटना हो जाती है तो स्कूल के निदेशक और प्रधानाचार्य पर कार्रवाई की जाती है। ऐसा नहीं कि स्कूल प्रबंधकों का तर्क गलत है, लेकिन उन्हें अपनी भी जिम्मेदारी समझनी होगी। क्या उनके शिक्षकों को बाल मनोविज्ञान का ज्ञान होता है?

क्या उन्होंने बच्चों की काउंसिलिंग के लिए काउंसलर रखे हुए हैं। इन सबका सपाट उत्तर है नहीं। हो सकता है कि कुछेक बड़े स्कूलों में ऐसी व्यवस्था हो, लेकिन उनकी संख्या पूरे प्रदेश में दहाई में भी नहीं होगी। ज्यादातर निजी स्कूल अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दिए जाने का दावा करते हैं, लेकिन उनकी शिक्षक-शिक्षिकाओं की खुद की अंग्रेजी कैसी होती है? इसपर भी प्रश्नचिह्न है। अभिभावकों को सपने दिखाने वाले निजी स्कूल उन सपनों को अप्रशिक्षित शिक्षक-शिक्षिकाओं के जरिये हकीकत में नहीं तब्दील कर सकते। जब निजी स्कूल ज्यादा फीस लेते हैं तो उनके शिक्षक भी लगभग वैसी ही प्रक्रिया से गुजरकर आने चाहिए, जैसी प्रक्रिया से सरकारी स्कूलों के शिक्षक आते हैं और उन्हें वेतन व अन्य सुविधाएं भी लगभग वैसी ही मिलनी चाहिए, जैसे सरकारी शिक्षक पाते हैं। इस पर ध्यान देना होगा।

[ स्थानीय संपादकीय: हरियाणा ]