महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने अपने पद से इस्तीफा देने के बाद शिवसेना के बारे में जो कुछ कहा और उसका जैसा जवाब भाजपा को सुनने को मिला उससे यही स्पष्ट हो रहा है कि दोनों दलों में दोस्ती जैसा ज्यादा कुछ शेष नहीं रह गया है। हालांकि जब तक शिवसेना केंद्रीय मंत्रिपरिषद का हिस्सा है तब तक यह उम्मीद बनी हुई है कि दोनों दल फिर से करीब आकर महाराष्ट्र में मिलकर सरकार बना सकते हैैं। भारतीय राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि शिवसेना अपनी जिद पकड़कर इतना आगे जा चुकी है कि पीछे लौटने की गुंजाइश कम हो गई है। उसने यह गुंजाइश भाजपा के खिलाफ अपनी बेजा बयानबाजी से खुद ही खत्म की है।

अब यदि वह अपने कदम पीछे खींचती है तो अपनी जगहंसाई ही कराएगी। शिवसेना भले ही एनसीपी और कांग्रेस से मिलकर सरकार बनाने के विकल्प को अपने हाथ में बता रही हो, लेकिन यह विकल्प आजमाने के बाद उसकी साख को चोट पहुंचने का खतरा है। यह संभव है कि वह सत्ता के लोभ में अपनी साख की चिंता न करे, लेकिन उसे इससे परिचित होना चाहिए कि ऐसे राजनीतिक प्रयोग करने के क्या नतीजे होते हैैं? क्या वह कर्नाटक में हुए प्रयोग की अनदेखी कर सकती है? उसे सपा-बसपा के क्षणिक मेल की भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। शिवसेना कुछ भी करे, फिलहाल भाजपा और उसके बीच की दूरी घटने की संभावना स्याह हो रही हैं।

चूंकि महाराष्ट्र में पिछली विधानसभा की अवधि समाप्त होने जा रही है इसलिए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने के आसार बढ़ गए हैैं। अगर ऐसा होता है तो यह जनादेश का निरादर ही होगा। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि चुनाव के पहले बना गठबंधन बहुमत हासिल करने के बाद भी सरकार गठन में नाकाम रहा। यह नाकामी गठबंधन राजनीति पर नए सिरे से सवाल खड़े करती है।

अभी तक यही माना जाता था कि चुनाव पूर्व गठबंधन सबसे बेहतर और टिकाऊ होते हैैं, लेकिन महाराष्ट्र का घटनाक्रम इस मान्यता को झुठला रहा है। इसकी वजह यही है कि शिवसेना ने भाजपा के कथित आश्वासन का हवाला देकर बारी-बारी से मुख्यमंत्री पद संभालने की जिद पकड़ ली है। ऐसे राजनीतिक हठ का कोई उपचार नहीं और हो भी नहीं सकता। यह हठ दोनों दलों के बीच उपजे अविश्वास को ही बयान करता है। अगर अविश्वास की यह खाई पट भी जाए तोे भी दोनों के बीच की खींचतान शायद ही खत्म हो। जो भी हो, भाजपा की भलाई इसी में है कि वह महाराष्ट्र में अपने दम पर राजनीति करने की राह तलाशे।