भाजपा के वरिष्ठ नेता और सांसद मुरली मनोहर जोशी को कानपुर में बड़ी अव्यवस्था का शिकार होना पड़ा। अधिकारियों ने उन्हें एक समारोह का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया लेकिन, खुद ही देर से पहुंचे। बात यहीं पर नहीं थमी। कार्यक्रम के आयोजकों ने जोशी को फीता काटने के लिए भी इंतजार कराया। इससे वरिष्ठ सांसद काफी नाराज हो गए। हालांकि बाद में अधिकारियों ने उनके सामने गलती मानी और खेद जताया। पर क्या बात इतने से ही खत्म मान ली जानी चाहिए। इसकी नौबत ही कैसे आयी। प्रश्न उठता है जब इतने वरिष्ठ नेता के साथ अधिकारी ऐसा सुलूक कर सकते हैं तो नए-नवेले जनप्रतिनिधियों को वे कितना सम्मान देते होंगे। तब विधायकों की उन शिकायतों पर सहज ही भरोसा होने लगता है जो उन्हें प्रशासन से रहती है। अक्सर पहली बार विधायक या सांसद बने नेताओं की सरकार से शिकायत होती है कि उनके जिले का फलां अधिकारी उनके निर्देश का पालन नहीं करता या फिर जनसमस्याएं सुलझाने में सहयोग नहीं करता। सरकार की तरफ से आवश्यक कार्रवाई की जाती है और संबंधित लापरवाह अधिकारी को चेतावनी भी दी जाती है पर फिलहाल इतने भर से बात बन नहीं रही। प्रशासनिक अधिकारियों को समझना चाहिए कि जनप्रतिनिधि चाहे किसी भी दल के हों, उनको उचित सम्मान देना ही होगा।

लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि का सम्मान जनता का सम्मान है। राज्य सरकार कुछ महीने पहले अधिकारियों को दिशा-निर्देश भी जारी कर चुकी है कि यदि कोई सांसद या विधायक किसी अधिकारी से मुलाकात करने आते हैं तो वे खड़े होकर उनका स्वागत करें, उनकी बातों को गंभीरता से सुनें और फिर अमल में भी लाएं। उनसे पानी और नाश्ते के लिए भी पूछें। सरकार के इन निर्देशों के बाद भी समस्या बनी हुई है। अगर किसी वरिष्ठ नेता के साथ उपेक्षापूर्ण बरताव होता है तो अधिकारियों की मानसिकता को समझा जा सकता है कि वे अपनी कार्यशैली में परिवर्तन लाने के लिए बिलकुल तैयार नहीं हैं। अब यह शासन को देखना है कि स्थिति में सुधार कैसे लाया जा सकता है। शासन की सफलता के लिए जनप्रतिनिधि का संतोष सबसे आवश्यक है।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]