बिहार में रबी और आम-लीची की अच्छी फसल के संकेत से उल्लसित किसानों पर कुदरत का कहर टूटा है। बेमौसम आंधी-पानी और ओलावृष्टि ने किसानों को तगड़ी चोट पहुंचाई है। दस जिलों में फसल बुरी तरह बर्बाद हो गई है जबकि कई अन्य जिलों में आम और लीची की फसल को खासा नुकसान हुआ है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संवेदनशीलता दिखाते हुए खुद इस त्रासदी की मॉनीटरिंग कर रहे हैं।

इसके अलावा शासन और संबंधित जिलों के प्रशासनिक अधिकारियों को हाई अलर्ट पर रखा गया है। आशंका है कि अगले दो दिन दिन कुदरत का कोप जारी रह सकता है। कुदरत का प्रकोप टालना संभव नहीं है यद्यपि सरकार किसानों की अधिकतम मदद करके उनके जख्मों पर मरहम जरूर लगा सकती है। बिहार के किसानों की त्रासदी है कि वे हर साल एक साथ सूखा और बाढ़ की चपेट में आते हैं। जिस वक्त सूबे का कुछ हिस्सा बाढ़ग्रस्त रहता है, ठीक उसी समय बाकी हिस्सा सूखाग्रस्त रहता है। यह दुयरेग पिछले कई सालों से जारी है। इस वजह से किसानों की स्थिति बहुत खराब है।

जहां तक इस साल की बात है, कोढ़ में खाज जैसी स्थिति बन गई है। बाढ़ और सूखे वाला दौर कुछ महीने बाद आएगा। उससे पहले ही कालबैसाखी के कहर ने किसानों की कमर तोड़ दी। उत्तर बिहार में लीची कैश क्रॉप है। स्थानीय किसानों का आर्थिक ताना-बाना लीची की फसल पर ही निर्भर करता है। राज्य सरकार को कोशिश करना चाहिए कि अपने संसाधनों और केंद्र सरकार की मदद से किसानों को अधिकतम मुआवजा मिले। सूबे के विकास के लिए बेहद जरूरी है कि किसानों का मनोबल न टूटने पाए। उन्हें भरोसा रहना चाहिए कि राज्य सरकार उनकी हमदर्द है। इसमें दो राय नहीं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसान-हितैषी हैं। उनकी पहल पर राज्य सरकार ने बेहतरीन कृषि रोडमैप जारी किया है जिसमें वर्ष 2022 तक किसानों की मौजूदा आय दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए आवश्यक है कि किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से उबरकर बढ़िया प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित रखा जाए। मुख्यमंत्री संवेदनशील है, पर यह संवेदनशीलता जिला और प्रखंड स्तर तक उतरने से ही बात बनेगी।

[स्थानीय संपादकीय- बिहार]