प्रधानमंत्री की ओर से घोषित 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज के पहले चरण का जो विवरण वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पेश किया उसके हिसाब से करीब छह लाख करोड़ रुपये की राहत का रास्ता साफ हुआ। यह अलग-अलग सेक्टरों के लिए है, लेकिन इससे सबसे अधिक राहत सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योगों यानी एमएसएमई को मिलेगी। चूंकि एमएसएमई रोजगार उपलब्ध कराने में सबसे आगे हैं इसलिए इसका सीधा लाभ आम आदमी को मिलते हुए दिखना चाहिए। यह अच्छा है कि आर्थिक पैकेज के जरिये सरकार ने एमएसएमई की वे तमाम मांगे मान लीं जिन्हेंं एक अर्से से उठाया जा रहा था। 

एक बड़ी मांग यह थी कि एमएसएमई को नए सिरे से परिभाषित किया जाए। आखिरकार ऐसा कर दिया गया। अब एमएसएमई की परिभाषा कहीं अधिक तार्किक दिख रही है। उल्लेखनीय यह भी है कि एमएसएमई को बिना गारंटी तीन लाख करोड़ रुपये का कर्ज देने की व्यवस्था की जाएगी। इस कर्ज की अवधि तो चार साल होगी ही, एक साल तक मूल धन चुकाने की भी जरूरत नहीं रहेगी। यह हर लिहाज से एक बड़ी राहत है।

यह तय है कि वित्त मंत्री की इस घोषणा से भी एमएसएमई को अच्छी-खासी राहत मिलेगी कि सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योगों का सरकारी कंपनियों में बकाये का भुगतान 45 दिन में करने की कोशिश होगी। उचित यह होगा कि इस कोशिश को अंजाम तक पहुंचाया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि 45 दिनों में बकाये का भुगतान हर हाल में हो। यदि सरकार यह सुनिश्चित कर सके तो एमएसएमई वित्तीय रूप से कहीं अधिक मजबूती हासिल करने में समर्थ होंगी। नि:संदेह इस कदम का भी सीधा लाभ एमएसएमई को मिलने वाला है कि 200 करोड़ रुपये तक की सरकारी खरीद में ग्लोबल टेंडर की अनुमति नहीं होगी और सरकार को घरेलू कंपनियों से टेंडर मंगवाने की बाध्यता होगी। इससे केवल छोटे उद्योगों को लाभ मिलने के साथ ही लोकल उत्पाद खरीदने की मुहिम को बल मिलेगा। 

इस मुहिम को बल मिले और देश आत्मनिर्भर बने, इसके लिए एमएसएमई को भी अपने उत्पादों की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देना होगा। इसके साथ ही वित्त मंत्रालय को भी उन कारणों की तह तक जाना होगा जिनके चलते उद्यमी कर्ज लेने में उत्साह नहीं दिखा रहे हैं। चूंकि वित्त मंत्री ने इसकी भरपूर चिंता की है कि एमएसएमई को अधिकाधिक वित्तीय राहत मिले इसलिए उद्योगों को भी इसके एवज में रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। इसलिए और अधिक, क्योंकि आर्थिक पैकेज का मूल उद्देश्य उद्योग-धंधों को बल देकर आम आदमी को राहत देना एवं उसकी रोजी-रोटी की आशंकाओं को दूर करना है।