Ayodhya Case: राष्ट्रीय महत्व के मसले पर सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला देने के लिए प्रतिबद्ध
सुप्रीम कोर्ट को इसके लिए साधुवाद कि उसने इस मामले की अहमियत को समझा और फैसला करने की ठानी।
अयोध्या मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने जिस तरह यह स्पष्ट किया कि 18 अक्टूबर के बाद सभी पक्षकारों को जिरह के लिए एक दिन भी अतिरिक्त समय नहीं मिलेगा उससे यही प्रकट होता है कि वह राष्ट्रीय महत्व के इस मसले पर अपना फैसला देने के लिए प्रतिबद्ध है।
इस प्रतिबद्धता के साथ ही उसने यह भी रेखांकित किया कि 18 अक्टूबर तक दलीलें पूरी होने पर ही चार सप्ताह में फैसला देने की उम्मीद की जा सकती है। चार सप्ताह का जिक्र इसीलिए हुआ, क्योंकि इस संविधान पीठ में शामिल सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत हो रहे हैं।
यदि किन्हीं कारणों से उनकी सेवानिवृत्ति के पहले अयोध्या मसले पर फैसला नहीं आ पाता तो फिर मामले की सुनवाई नए सिरे से करनी होगी। यदि किन्हीं कारणों से ऐसा होता है तो यह गहन निराशा का कारण बनेगा। इसकी नौबत नहीं आने देनी चाहिए। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने फैसले की उम्मीद जगा दी है।
सुप्रीम कोर्ट को इसके लिए साधुवाद कि उसने इस मामले की अहमियत को समझा और फैसला करने की ठानी। अयोध्या मामले की नियमित सुनवाई के पहले उसने आपसी बातचीत के जरिये इस विवाद को सुलझाने की पहल की, लेकिन वह नाकाम रही।
हालांकि मध्यस्थता की पहल नए सिरे से शुरू हुई है, लेकिन इसकी उम्मीद कम है कि वह किसी नतीजे पर पहुंच सकेगी। इसका एक बड़ा कारण यही है कि दोनों पक्षों से एक-एक सदस्य ही नए सिरे से मध्यस्थता के लिए आगे आए हैं।
यह स्वागतयोग्य है कि सभी पक्षकार और उनके वकील सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय की गई 18 अक्टूबर की समय सीमा का पालन करने यानी इस तिथि तक अपनी दलीलें पूरी करने के प्रति सहमति व्यक्त कर रहे हैं। इस सहमति के बाद यह आवश्यक हो जाता है कि सुप्रीम कोर्ट 17 नवंबर के पहले फैसला देना सुनिश्चित करे। इसके लिए आवश्यक हो तो अवकाश के दिनों में कुछ कटौती की जा सकती है।
आखिर जब प्रतिदिन सुनवाई की जा सकती है तो फिर अवकाश में कटौती भी की जा सकती है। चूंकि अयोध्या मामले में फैसले की घड़ी करीब आती दिखने लगी है इसलिए सभी की कोशिश यही होनी चाहिए कि वह टले नहीं। अपेक्षित समय सीमा में फैसला देना केवल इसलिए सुनिश्चित नहीं किया जाना चाहिए कि सदियों पुराने इस विवाद के समाधान की प्रतीक्षा बहुत बेसब्री से की जा रही है, बल्कि इसलिए भी किया जाना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अच्छा-खासा समय और संसाधन खपाया है। यह जाया हो, इसका कोई मतलब नहीं।
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