नव वर्ष का आगमन कैसी भी परिस्थितियों में हो वह शुभ का संचार करता है और कुछ नया एवं बेहतर होने की उम्मीदें जगाता है। यही उम्मीदें व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को प्रेरित एवं संचालित करती हैं। वैसे तो हर क्षण नया अवसर लेकर आता है, लेकिन नव वर्ष का आगमन एक ऐसा समय होता है जो सकारात्मक भाव को पुष्ट करता है। यह समय कुछ बेहतर करने की चाह पैदा करने के साथ ही अतीत की भूलों से बचने और उनसे सबक सीखने का अवसर भी प्रदान करता है, लेकिन यह अवसर तभी उपयोगी साबित होता है जब नकारात्मकता का परित्याग कर अपने आस-पास जो कुछ घट रहा है उसे सहीं संदर्भ और परिप्रेक्ष्य में देखा जाए। ऐसा करके ही व्यक्ति अपना और साथ ही समाज एवं राष्ट्र के साथ समस्त मानवता के हित में कुछ करने में समर्थ हो सकता है।

ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि कैसे एक अकेले व्यक्ति या फिर एक छोटे से समूह ने अपने बलबूते वह संभव कर दिखाया जो कल तक असंभव माना जा रहा था। नि:संदेह ऐसे भी उदाहरण हैं जो यह दिखाते हैं कि किसी ने अपनी साम‌र्थ्य से अपने आसपास के लोगों को तो राह दिखाई ही, शासन एवं प्रशासन को भी सीख और समझ प्रदान की। इससे अपेक्षित परिवर्तन की गति रफ्तार पकड़ती है और साथ ही सकारात्मकता को बल मिलता है। यह सकारात्मकता ही सफलता की जननी बनती है।

यह एक तथ्य है कि हम भारत के आम लोग सरकारी प्रयासों के तहत ही नहीं, स्वत: भी सार्वजनिक स्थलों पर साफ-सफाई के प्रति जागरूक हो रहे हैं। इसके चलते देश एक बदलाव की ओर अग्रसर है। नि:संदेह किसी भी देश का शासन-प्रशासन सरकारी तंत्र के जरिये ही संचालित होता है, लेकिन देश बनता और संवरता है आम लोगों के सहयोग और समर्पण भाव से। देश बनाने और संवारने का काम सही तरह तब होता है जब समाज सुशिक्षित बनता है और अपनी आबादी का नियोजन बेहतर ढंग से करने को तत्पर रहता है। इस क्रम में लोगों को समाज के कमजोर तबकों के प्रति विशेष संवेदनशीलता तो दिखानी ही होती है, नारी सशक्तीकरण जैसे लक्ष्यों की प्राप्ति को भी ध्येय बनाना पड़ता है।

अब तो हम उस कालखंड में हैं जहां हमें समाज और राष्ट्र निर्माण की चिंता करने के साथ ही जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण को लेकर भी विशेष सजग रहने की सख्त जरूरत है। इससे बेहतर और कुछ नहीं कि नए वर्ष का आगमन हम सबको अपने ऐसे ही कर्तव्यों के प्रति सचेत और सक्रिय करने की न केवल अभिलाषा जगाए, बल्कि उसे पूरा करने का मार्ग भी दिखाए।