यह अच्छा हुआ कि भारतीय संसद ने ब्रिटेन की संसद को उसी की भाषा में जवाब दिया। ब्रिटेन इसे भारत की जवाबी कार्रवाई के रूप में देखे तो और भी अच्छा, क्योंकि उसने अपनी संसद में भारत के कृषि कानूनों पर चर्चा कराकर अपनी औपनिवेशिक मानसिकता का ही परिचय दिया था। भले ही इसके लिए उस नियम की आड़ ली गई हो, जिसके तहत यदि किसी मसले पर बहस कराने के लिए एक लाख लोग हस्ताक्षर कर दें तो फिर ब्रिटिश संसद के लिए ऐसा करना आवश्यक हो जाता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इस बहाने दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप किया जाए। ब्रिटिश संसद ने न केवल यही किया, बल्कि इस दौरान भारत को बेवजह कठघरे में खड़ा करने और उपदेश देने की भी कोशिश की। चूंकि ब्रिटिश सरकार ने ऐसा करने वालों को हतोत्साहित करने की कोई कोशिश नहीं की, इसलिए यह आवश्यक हो जाता था कि समय आने पर उसे आईना दिखाया जाए। गत दिवस यह समय तब आया, जब राज्यसभा में ब्रिटेन में नस्लभेद का मसला उठा।

चूंकि हाल में ब्रिटेन में एक भारतीय छात्रा रश्मि सामंत नस्लभेद की चपेट में आई, इसलिए यह जरूरी था कि भारत उसे यह बताता कि वह खुद के श्रेष्ठ होने का दंभ पालने के बजाय, अपनी उन समस्याओं को देखे, जिनसे उसके यहां पढ़ने जाने वाले भारतीय छात्र भी दो-चार होते हैं। इनमें प्रमुख है नस्लभेदी बर्ताव। पता नहीं ब्रिटेन का शाही परिवार अपनी ही बहू को हीन भाव से देखता है या नहीं, लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं कि वहां समाज का एक हिस्सा अभी तक नस्लभेदी मानसिकता से मुक्त नहीं हो पाया है। इसका प्रमाण है रश्मि सामंत को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देने के लिए विवश होना। महज 22 साल की रश्मि पर निशाना साधने के लिए किशोरावस्था के उनके पुराने विचार सार्वजनिक करके उनकी मनमानी व्याख्या की गई। उन्होंने सफाई दी और माफी भी मांगी, लेकिन उन्हेंं खारिज करके उनके हिंदू होने पर सवाल खड़े किए गए। इतना ही नहीं, भगवान राम की तस्वीर संग उनके माता-पिता की एक फोटो के आधार पर भी उन्हेंं हर संभव तरीके से लांछित किया गया। इससे भी बुरी बात यह रही कि उनके खिलाफ छेड़े गए इस विकृत अभियान में एक प्रोफेसर भी शामिल हो गया। इसके बावजूद ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय प्रशासन या फिर अन्य किसी ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया। इतने नामी विश्वविद्यालय में भारतीय छात्रा के साथ खुले नस्लभेदी व्यवहार पर राज्यसभा में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यह कहकर बिल्कुल सही किया कि अगर जरूरत पड़ी तो नस्लवाद के मुद्दे को उचित मंच पर उठाया जाएगा।