उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में भीड़ के पथराव में घायल एक पुलिस कर्मी की मौत एक तरह से उन्मादी भीड़ द्वारा की जाने वाली हत्या ही है। हाल के समय में यह दूसरी बार है जब उत्तर प्रदेश में उग्र भीड़ के हाथों किसी पुलिस कर्मी की जान गई हो। इसके पहले बुलंदशहर में गोहत्या से खफा भीड़ ने पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी थी। यह एक विडंबना ही है कि सुबोध कुमार सिंह को गोली मारने वाले की गिरफ्तारी होने के दूसरे ही दिन गाजीपुर में एक कांस्टेबल भीड़ की हिंसा का शिकार बन गया। इस तरह की हिंसा अक्षम्य और अस्वीकार हैै। यह एक तरह से कानून को दी जाने वाली सीधी चुनौती है।

उग्र भीड़ द्वारा अपनी किसी मांग के बहाने पुलिस पर हमला करना हद दर्जे की अराजकता है। इस तरह की अराजकता को किसी भी कीमत पर सहन नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह तो कानून के शासन को ही छिन्न-भिन्न कर देगी। इस अराजकता को हर हाल में रोकना होगा और यह तभी हो सकता है जब अपना काम कर रही पुलिस पर हमला करने वालों को सख्त से सख्त सजा देने की व्यवस्था की जाए। पहले बुलंदशहर और अब गाजीपुर में पुलिस कर्मियों की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों को जल्द से जल्द कठोर सजा मिले, यह शासन-प्रशासन की प्राथमिकता बनना चाहिए। ऐसी प्राथमिकता का प्रदर्शन करके ही पुलिस पर हाथ उठाने वाले हिंसक तत्वों को कोई सही संदेश दिया जा सकता है।

पुलिस पर हमले के लिए जिम्मेदार तत्वों के खिलाफ सख्ती बरतने के मामले केवल उत्तर प्रदेश सरकार को ही नहीं, बल्कि हर राज्य की सरकार को सक्रिय और सजग होना चाहिए, क्योंकि पुलिस पर हमले की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। ऐसी घटनाएं पुलिस के साथ-साथ शासन-प्रशासन का भी इकबाल खत्म करती हैैं। बीते दस दिनों में ही बिहार, राजस्थान और यहां तक कि देश की राजधानी दिल्ली में पुलिस पर हमले के कई मामले सामने आ चुके हैैं। यह बिल्कुल भी ठीक नहीं कि हिंसा और उन्माद का सहारा लेकर पुलिस को अपना काम करने से रोका जाए। बीते कुछ समय से धरना-प्रदर्शन करने के दौरान पुलिस को निशाना बनाने के मामले बढ़े हैैं। ऐसा इसीलिए होता है, क्योंकि कई बार लोगों को उपद्रव करने के लिए जानबूझकर उकसाया जाता है।

धरना- प्रदर्शन करने वालों को यह समझना और साथ ही समझाना होगा कि यह लोकतांत्रिक अधिकार अराजकता की अनुमति नहीं देता। गाजीपुर की घटना में यह सामने आया कि पुलिस पर पथराव करने वालों ने आरक्षण की मांग को लेकर सड़क जाम कर रखी थी। अब क्या आरक्षण इस तरह से मांगा जाएगा? पुलिस ने जाम खुलवाने की कोशिश की तो उस पर न केवल पथराव शुरू कर दिया गया, बल्कि पुलिस कर्मियों को पकड़कर पिटाई भी की गई। आखिर यह भीड़ का जंगलराज नहीं तो और क्या है? ऐसी भयावह हिंसा के लिए जिम्मेदार तत्व कठोर दंड के भागीदार बनाए जाने चाहिए। पुलिस कर्मी केवल कानून का रखवाला ही नहीं, शासन-प्रशासन का प्रतिनिधि भी होता है। उस पर हमला करना शासन व्यवस्था को चुनौती देना है।