पश्चिम सिंहभूम जिले में खनन क्षेत्र में 36 करोड़ के घोटाले की लीपापोती करनेवाले अफसरों को चिह्नित कर सरकार को उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
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झारखंड में खनन कार्य लगातार विवादों में रहा है। अब नया विवाद राज्य सरकार के ही कैबिनेट मंत्री के परिसदन में दिए गए बयान के बाद उठा है। इसमें भी अफसरों की घोर लापरवाही सरकार के लिए परेशानी का सबब बनती नजर आ रही है। दरअसल, खनन क्षेत्र में सिर्फ पश्चिम सिंहभूम जिले में ही सरकार को 36 करोड़ का चूना लगाया गया है। इतने बड़े घोटाले के बाद भी इस मामले में कार्रवाई तो दूर जांच तक नहीं की गई। मंत्री ने अपनी ही सरकार से इस मामले की जांच कराने और दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई करने की मांग की है। सरकार को भी चाहिए कि इस मामले की निष्पक्ष जांच करा लीपापोती करनेवाले अफसरों को चिह्नित कर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करे।
खनन मामले में शाह कमीशन की जांच रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था। इस आदेश पर तत्कालीन जिला खनन पदाधिकारी ने उस समय के हिसाब से सीमा से अधिक खनन करने का दोषी पाते हुए संबंधित खनन कंपनियों पर 63 सौ करोड़ की पेनाल्टी लगाई थी। यहां तक कार्रवाई सही थी, लेकिन बाजी तब पलट गई जब कार्रवाई करने वाले अफसर बदल गए। उनके बाद आए नए जिला खनन पदाधिकारी ने हैरतअंगेज तरीके से इंडियन ब्यूरो माइंस रेट के हिसाब से उस पेनाल्टी को घटाकर 27 सौ करोड़ कर दिया। यानी पेनाल्टी सीधे 36 करोड़ रुपये घटा दी। सरकार की नाक के नीचे यह खेल खेला गया। यह काम बिना मिलीभगत के कोई एक अफसर नहीं कर सकता है। खुद सरकार के मंत्री ही मांग कर रहे हैं कि पहले के रेट और क्षेत्र के अनुसार लगी पेनाल्टी को बदलने के जिम्मेदारों को सामने लाया जाए। उन पर कड़ी कार्रवाई की जाए। मंत्री की यह बात और भी चौंकाने वाली है कि जब उन्होंने पेनाल्टी घटाने की बाबत संबंधित जिला खनन पदाधिकारी से सवाल किया कि ऐसा उन्होंने किसके आदेश पर किया तो मंत्री को उक्त अधिकारी ने जवाब दिया कि इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस की गाइडलाइन पर उसने स्वयं यह फैसला लिया है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या राज्य के अधिकारी मनमानी कर रहे हैं। क्या उन्हें किसी की परवाह या डर नहीं है। आखिर कैसे कोई अधिकारी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों को लाभ देकर सरकारी खजाने क ो 36 सौ करोड़ रुपये की चपत दे सकता है। वहीं सवाल उठाने वाले मंत्री का कहना है कि इस तरह का बदलाव करने का अधिकार सिर्फ विभागीय मंत्री को ही है।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]