लखनऊ, सद्गुरु शरण। UP Chief Minister Yogi Adityanath: पिछले दो महीने में यूपी की योगी सरकार ने कोरोना के खात्मे के लिए क्या कुछ नहीं किया। एक-एक व्यक्ति की फिक्र करने की अथक कवायद ने राजनीति के चेहरे से वे दाग-धब्बे भी साफ किए जिनसे ध्वनि निकलती थी कि इससे ज्यादा कुरूप और हानिकारक कुछ नहीं।

कोरोनाकाल में सबने देखा कि भ्रष्टाचार, सत्तालोलुपता, जातिवाद, धर्मवाद और परिवारवाद के लिए बदनाम राजनीति संकट की इस घड़ी में मानो गंगा में डुबकी लगाकर निकली। योगी सरकार के नुमाइंदे दिन-रात का फर्क भूल एक-एक दरवाजे पर खाना-पानी, राशन, दवा और पैसा लेकर पहुंचे। डॉक्टर-पुलिसकर्मी जान हथेली पर रखकर काम में जुटे हुए हैं।

दिन-रात सेवा कार्य में जुटी सरकार : अब तक के निष्कषों के मुताबिक कोरोना वायरस एक प्राकृतिक आपदा है, जिसके लिए कोई इंसान जिम्मेदार नहीं, लेकिन इस मुसीबत में जन-हानि न्यूनतम रखने के लिए यूपी सरकार ने जो उपक्रम किया, उसकी नजीर इतिहास में नहीं मिलती। विपक्षी दल कुछ भी आरोप लगा रहे हों, पर कोई आम या खास व्यक्ति योगी सरकार की मंशा पर शक नहीं कर रहा। जब यूपी जैसे विराट सूबे में कोई अनुष्ठान चल रहा हो तो उसमें इक्का-दुक्का चूक या गड़बड़ी स्वाभाविक है, पर पिछले दो महीने से दिन-रात सेवा कार्य में जुटी सरकार के दामन पर लापरवाही, उदासीनता, शिथिलता या थकावट का एक भी धब्बा नहीं लगा। इसके बावजूद कोरोना मौजूद है और अब तक 78 लोगों की जान ले चुका है।

उद्योग और बाजार को प्रोत्साहित : लॉकडाउन-3 शुरू होते ही केंद्र और राज्य सरकार ने रणनीति बदली और कुछ रियायतों के साथ जरूरी काम-धंधे शुरू करवाने की पहल की। इसका स्पष्ट संकेत है कि कोरोना की पूर्ण विदाई निकट भविष्य में संभव नहीं, इसलिए सुरक्षा उपायों के साथ जो गतिविधियां शुरू की जा सकती हैं, उन्हें चालू किया जाए। उद्योग और बाजार को प्रोत्साहित करने के लिए यूपी सरकार ने अभूतपूर्व फैसले किए हैं। उद्योगों को ऐसा खुला हाथ इससे पहले शायद ही कभी मिला होगा। उन्हें तरह-तरह की रियायतों के साथ स्वेच्छापूर्वक काम करने की पूर्ण स्वतंत्रता है।

लॉकडाउन में कैद प्रदेशवासियों का आत्मविश्वास वापस लौटे : अगले 1000 दिन उन्हें कुछ भी करने के लिए किसी अनुमति की जरूरत नहीं। कोई इंस्पेक्टर उनके प्रतिष्ठान का रुख नहीं करेगा। सरकार चाहती है कि चिमनियों से धुआं निकले तो शायद उससे कोरोना भयभीत हो और पिछले दो महीने से लॉकडाउन में कैद प्रदेशवासियों का आत्मविश्वास वापस लौटे। बहरहाल सरकार की इस पहल पर उद्योग और व्यापार जगत अपेक्षानुसार उत्साह नहीं दिखा रहा। तमाम रियायतों और प्रोत्साहन के बावजूद सूबे में शायद ही किसी बड़ी औद्योगिक इकाई का द्वार खुला है, क्योंकि कारोबारियों का दिमाग कुछ और सोच रहा है। सरकार की सफाई के बावजूद उन्हें आशंका है कि उनके परिसर में किसी श्रमिक के साथ कोरोना संक्रमण जैसा हादसा हुआ तो उन्हें अशांति का सामना करना पड़ेगा।

सरकार ने स्पष्ट किया है कि जब तक जांच में यह बात साबित नहीं हो जाती, उद्यमी को जिम्मेदार नहीं माना जाएगा। उद्योग जगत इस आश्वासन से संतुष्ट नहीं। उद्यमी सोचते हैं कि इन तमाम झंझटों से बचने के लिए बेहतर है कि प्रतिष्ठान फिलहाल बंद ही रखे जाएं। नुकसान तो हो ही रहा है। थोड़ा नुकसान और सही। उद्यमियों के मन में कई अन्य आशंकाएं भी चल रहीं, जिनके रहते यूपी में उद्योग का पहिया घूमने के आसार कम ही हैं, यद्यपि यह सोच देशहित में नहीं है।

उद्यमियों और व्यापारियों के मन में शंकाएं : इसमें किसी को शक नहीं कि उद्योग जगत ने काम-धंधा पूरी तरह ठप होने के बावजूद कोरोना के खिलाफ जंग में सरकार का बढ़-चढ़कर साथ दिया। उन्होंने सरकार की नीति का पालन करते हुए अपने सभी कर्मचारियों को वेतन देना तो जारी रखा ही, साथ ही प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के सहायता कोषों में दिल खोलकर दान दिया। बहरहाल उद्योग-धंधे शुरू करने के सवाल पर उनके संकोच खत्म नहीं हो रहे। ऐसे संकेत भी मिल रहे कि दोनों पक्षों के बीच संवाद की भी कमी है। उद्यमियों और व्यापारियों के मन में जो शंकाएं हैं, उनके संतोषजनक जवाब नहीं मिल रहे।

सरकार की यह सोच बिल्कुल सही है कि दो महीने से लॉकडाउन में अवसादग्रस्त जिंदगी पटरी पर वापस लाने के लिए काम-धंधा शुरू होना जरूरी है, पर इसके लिए कारोबारियों को यह भरोसा दिलाना जरूरी है कि हवन करने में उनकी अंगुलियां जलने नहीं दी जाएंगी। उद्योग जगत सिर्फ उसी हालत में सक्रिय हो सकता है, जब वह संकल्प ले सके कि यह वक्त मुनाफा कमाने का नहीं, देश को बचाने का है। लोग महफूज रहेंगे, उनकी जिजीविषा कायम रहेगी, एक-दूसरे पर भरोसा रहेगा तो भविष्य में कारोबार भी बढ़िया चलेगा। पहली चुनौती कोरोना को भयभीत करने की है। जो असर तरह-तरह के सैनिटाइजर पैदा नहीं कर सके, शायद चिमनियों का धुआं कारगर हो जाए।

[स्थानीय संपादक, लखनऊ]