[डॉ. रहीस सिंह]। हालिया दिनों में पाकिस्तान ने कुछ ऐसे कदम उठाए या फिर उसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ ऐसे दबाव बने, जो ये संकेत देते हैं कि उसकी आगे की राह कुछ बदली हुई होगी। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा होगा? पाकिस्तान द्वारा करतारपुर कॉरिडोर के मामले में भारत की ज्यादातर मांगों को स्वीकार करना, अपने हवाई क्षेत्र को भारत के लिए पुन: खोलना और 26/11 हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद को गिरफ्तार करना, कुछ ऐसे कदम हैं जो सकारात्मक माने जा सकते हैं। लेकिन क्या इनके आधार पर मान लेना चाहिए कि पाकिस्तान का हृदय परिवर्तन हो रहा है? नहीं, बल्कि ऐसा लगता है कि उसके ये कदम उस पर पड़ रहे अंतरराष्ट्रीय दबावों और उसकी आर्थिक बदहाली को दूर करने की जरूरत का परिणाम हैं।

बीते बुधवार को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने कुलभूषण जाधव को लेकर जो फैसला दिया, उससे भी पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मसार हुआ है। पर क्या पाकिस्तान वास्तव में शर्म महसूस करेगा? क्या यह मान लिया जाए कि इमरान खान का ‘नया पाकिस्तान’ सही दिशा में ही आगे बढ़ेगा या अभी भी उसकी राहें टेढ़ी-मेढ़ी ही होंगी?

पाकिस्तान द्वारा करतारपुर कॉरिडोर पर भारतीय पक्ष को स्वीकार करना और भारत के लिए अपना एयरस्पेस खोलना कमोबेश यह संदेश देता है कि पाकिस्तान भारत से संबंध सुधारना चाहता है या उसे भारत की जरूरत है। जहां तक हाफिज सईद की गिरफ्तारी का सवाल है तो यह ध्यान रखना होगा कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान जल्द ही वाशिंगटन दौरे पर जाने वाले हैं और वह अपनी पश्चिमी यात्रा से पहले यह संदेश देना चाहते हैं कि चरमपंथियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए उनकी सरकार प्रतिबद्ध है। लेकिन इससे भी बड़ा कारण है फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) का भय।



एफएटीएफ पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में शामिल कर चुका है। यदि पाक आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं करता तो वह एफएटीएफ की ब्लैक लिस्ट में शामिल कर लिया जाएगा। आर्थिक रूप से ध्वस्त होते पाकिस्तान के लिए यह कदम ताबूत में आखिरी कील जैसा होगा। यही वजह है कि पाकिस्तान ने पिछले दिनों चरमपंथ को बढ़ावा देने वाले संगठनों की संपत्तियां जब्त करने और उनके बैंक खाते फ्रीज करने जैसी कार्रवाइयां कीं और उनके खिलाफ केस भी दर्ज किए गए थे। जहां तक कुलभूषण जाधव के मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आइसीजे) के फैसले की बात है तो इसे भी हम भारत की बड़ी कूटनीतिक विजय कह सकते हैं। 10 अप्रैल 2017 को जब पाकिस्तान की सैन्य अदालत द्वारा भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को जासूसी के आरोप में दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई गई थी, तभी एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा था कि पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने अंतरराष्ट्रीय मानकों की अवहेलना की है। यही नहीं, नीदरलैंड्स के हेग में स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने इस मामले में पहले भी पाकिस्तान को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया था कि कुलभूषण जाधव के मृत्युदंड को निलंबित रखा जाए।

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के तत्कालीन प्रेसिडेंट रॉन अब्राहम ने अंतरिम फैसले के तहत पाकिस्तानी सरकार को यह निर्देश दिया था कि वह भारत की अपील पर गौर करे और जब तक न्यायालय इस मामले पर सुनवाई पूरी नहीं कर लेता तथा आदेश पारित नहीं कर देता, तब तक कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक रहेगी। पाकिस्तान ने इस मामले में जाधव को राजनयिक मदद के अधिकार से भी वंचित रखा था, जबकि विएना संधि के अनुसार रिसीविंग स्टेट (इस मामले में पाकिस्तान) उस स्थिति में, जब उसने किसी अन्य देश के नागरिक को गिरफ्तार या निरुद्ध किया है, उस देश के सक्षम राजनय को सूचना देकर संरक्षणात्मक कार्य की सुविधा देने के लिए प्रतिबद्ध है। अब आइसीजे ने भारतीय पक्ष में अपना निर्णय दिया। आइसीजे ने कहा कि इस मामले में विएना संधि सर्वोपरि है। आइसीजे ने जो निर्णय दिया है, उसके अनुसार पाकिस्तान कुलभूषण जाधव को राजनयिक मदद पाने से वंचित नहीं रख सकता। अब भारतीय उच्चायोग के अधिकारी अकेले में जाधव से मिल सकेंगे। आइसीजे ने यह भी कहा है कि ट्रायल नए तरीके से होना चाहिए। यानी सैन्य अदालत द्वारा किए गए पुराने ट्रायल पर विचार करते हुए उसकी समीक्षा हो।

बहरहाल अब देखना यही है कि पाकिस्तान आगे किस तरह की राह चुनता है? यानी वह सकारात्मक मानसिकता के साथ इन मसलों पर आगे बढ़ना चाहेगा या फिर अपनी भलमनसाहत के कुछ दिनों के स्वांग के बाद पुन: अपने पुराने खोल में वापस चला जाएगा? पाकिस्तान का इतिहास रहा है कि जब अंतरराष्ट्रीय दबाव उस पर पड़ता है, तो वह इस तरह की दिखावटी कार्रवाई करता है। आतंकी सरगना हाफिज सईद को मुंबई हमले के बाद भी गिरफ्तार किया गया था और उसके बाद भी कई बार गिरफ्तार/ नजरबंद किया गया, लेकिन हर बार वह आसानी से छूट जाता है।

पाकिस्तान का निजाम ऐसी दिखावटी कार्रवाई करने में माहिर है। इस आधार पर यह मान लेना कि पाकिस्तान ने हाफिज के खिलाफ जो कार्रवाई की है या फिर अन्य कुछ सकारात्मक कदम उठाए हैं, उसके पीछे उसकी मंशा चरमपंथी संगठनों के विरुद्ध ठोस कार्रवाई की है, सही नहीं लगता। हां उसे एफएटीएफ के अगले कदम, आइएमएफ के नियंत्रण और पश्चिमी देशों के साथ-साथ सऊदी अरब व संयुक्त अरब अमीरात की तरफ से मिलने वाली आर्थिक सहायता को लेकर डर अवश्य लग रहा है।

इस वक्त उसकी अर्थव्यवस्था डांवाडोल है और उसे आर्थिक मदद की दरकार है। लिहाजा हो सकता है कि पाकिस्तान अपने हालिया कदमों पर अडिग रहे। इससे उसके दो मकसद पूरे होंगे। एक, इमरान खान अपने न्यू पाकिस्तान की तस्वीर कुछ ऐसी पेश कर सकेंगे, जो पुराने के मुकाबले उदार और अग्रगामी है। दूसरा, यह दर्शाना कि पाक भारत के साथ रिश्ते सुधारने को प्रतिबद्ध है। लेकिन क्या वास्तव में पाकिस्तान का चरित्र बदलेगा? अब तक का अनुभव तो यही कहता है कि उस पर यकीन नहीं किया जा सकता। हालांकि इस वक्त उसकी जो हालत है और जिस तरह अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा है, उसके लिए बेहतर यही होगा कि वह दिखावे के बजाय वाकई ठोस कदम उठाए, ताकि दुनिया में भी उसकी छवि बेहतर हो।
[विदेश मामलों के जानकार]