[ अवधेश कुमार ]: राजधानी दिल्ली में हुई हिंसा और आगजनी डरावनी और चिंताजनक है। सुनियोजित साजिश के बिना इतने व्यापक पैमाने पर हिंसा नहीं हो सकती। दिल्ली में स्थिति बिगाड़ने के संकेत तभी मिलने आरंभ हो गए थे जब जाफराबाद में सड़क को घेरकर धरना आरंभ किया गया। इससे साफ हो गया था कि जगह-जगह शाहीन बाग पैदा करने की तैयारी हो रही है। जब एक समूह ने इसके विरोध में मौजपुर में धरना दिया तो उस पर पथराव किया गया और वहीं से स्थिति बिगड़ने लगी। शाहीन बाग की तरह ही यहां भी पुलिस की विफलता स्पष्ट है। पूरे घटनाक्रम का विश्लेषण कीजिए तो यह समझते देर नहीं लगेगी कि धरना के समानांतर हिंसा, आगजनी और दंगों की भी तैयारी की गई थी। आखिर इतनी संख्या मेंं लोग पत्थरबाजी कैसे करने लगे?

सीएए को लेकर मुसलमानों में भय पैदा करने में एक बड़ा तबका उकसाने में रहा सफल

कुछ बातें तो पहले से ही सामने हैं। एक समूह देश भर में नागरिकता संशोधन कानून, एनपीआर और एनआरसी के नाम पर झूठ और गलतफहमी के द्वारा मुसलमानों के अंदर भय पैदा करने तथा उनके एक बड़े तबके को उकसाने में सफल हो चुका है। यह तथ्य बार-बार स्पष्ट किया जा चुका है कि नागरिकता कानून से भारत के नागरिकों का कोई संबंध नहीं है। इसी तरह एनपीआर 2010 में हुआ, 2015 में अद्यतन किया गया और यह सामाजिक-आर्थिक जनगणना है जो अब मूल जनगणना का भाग है।

एनआरसी पर नहीं हुआ कोई फैसला, फिर विरोध किस बात का

एनआरसी पर अभी सरकार के अंदर औपचारिक फैसला नहीं हुआ है। अगर कल फैसला हुआ और उसमें कोई आपत्तिजनक या अस्वीकार्य पहलू होगा तो उसका विरोध किया जाएगा। जो अभी है ही नहीं उसका विरोध करने का कारण क्या हो सकता है? यह प्रश्न और ये तथ्य उनके लिए मायने रखते हैं जिनका उद्देश्य सच समझना हो। जिनका उद्देश्य सरकार के विरुद्ध पूरे समुदाय को भड़काकर स्थिति बिगाड़नी हो उनके लिए इनका कोई अर्थ नहीं है। ये समाज विरोधी, सांप्रदायिक और उपद्रवी शक्तियां हैं जिनके इरादे खतरनाक हैं।

प्रदर्शकारी ट्रंप को बिगड़ी कानून और व्यवस्था को दिखाना वाहते थे

दिसंबर की जामिया हिंसा को लेकर दिल्ली पुलिस के आरोप पत्र में ही इस तरह की साजिश का विवरण है। जो लोग किसी तरह कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा कर सरकार को बदनाम करने की फिराक में थे उनके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा भी बड़ा अवसर था। इसमें दोनों तरह की शक्तियां थीं। एक वे जो धरना-प्रदर्शन से ही स्थिति को बिगाड़ देना चाहते थे तथा दूसरे वे जो हिंसा द्वारा ऐसा करने की तैयारी में थे। वे चाहते थे कि किसी तरह दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश तक स्थिति इतनी बिगाड़ दी जाए जिससे ट्रंप की नजर तो जाए ही, उनको कवर कर रही अंतरराष्ट्रीय मीडिया के फोकस में भी विरोध आ जाए। अलीगढ़ में अशांति पैदा करने की कोशिशें पुलिस और प्रशासन की सक्रियता से विफल कर दी गईं, किंतु दिल्ली में ऐसा नहीं हो सका।

शाहीन बाग के धरने के पीछे छिपा चेहरा हुआ उजागर

समझने की आवश्यकता है कि शाहीन बाग का जो धरना सामने दिख रहा है उसके पीछे कई प्रकार के शरारती दिमाग और खतरनाक विचार हैं। पूरे देश ने वह वीडियो देखा जिसमें उच्चतम न्यायालय द्वारा वार्ताकार नियुक्त किए जाने के साथ तीस्ता सीतलवाड़ अपने साथियों के साथ वहां महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही थीं कि आपको किस सवाल का क्या जवाब देना है और अपनी ओर से क्या सवाल करना है या शर्तें रखनी हैं। उस वीडियो ने शाहीन बाग के पीछे छिपे चेहरे को उजागर कर दिया था। यह सीधे-सीधे वार्ताकारों को विफल करने की साजिश थी।

सीएए पर उच्चतम न्यायालय का फैसला आने का इंतजार करना चाहिए

जो लोग अभी भी नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के नाम पर हो रहे विरोध को संविधान बचाने से लेकर लोकतांत्रिक बता रहे हैं उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि अब क्या होगा जिसके बाद आपका भ्रम टूटेगा? उच्चतम न्यायालय की एक पीठ नागरिकता संशोधन कानून पर 160 से ज्यादा याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। अगर संविधान बचाने का विचार हो तो कायदे से इसके संवैधानिक-गैर संवैधानिक होने का फैसला न्यायालय पर छोड़ा जाना चाहिए था, लेकिन जब उद्देश्य खतरनाक हो तो वे क्यों ऐसा करेंगे? उनको केवल आग लगाना और उसका विस्तार करना है ताकि केंद्र सरकार के लिए विकट स्थिति पैदा हो जाए। इस आग को रोकना है तो तथाकथित मानवाधिकारवादियों तथा मीडिया के एक वर्ग की निंदा का जोखिम उठाते हुए भी र्कारवाई करनी होगी।

दिल्ली पुलिस को शाहीन बाग खाली करने के लिए कोर्ट के आदेश की जरूरत नहीं

दिल्ली पुलिस को शाहीन बाग खाली करने के लिए किसी न्यायालय के आदेश की आवश्यकता नहीं। सड़क घेरना गैर कानूनी यानी आपराधिक कदम है और पुलिस को पूरा अधिकार इसके खिलाफ कार्रवाई करने का है। अगर दिल्ली को संभालना है तथा देश में इन खतरनाक साजिशों की पुनरावृत्ति नहीं होने देना है तो फिर पुलिस प्रशासन को अपनी भूमिका कठोरता से निभानी होगी, किंतु हमें यह भी समझना होगा कि यह एक वैचारिक संघर्ष में भी परिणत हो चुका है।

मुसलमानों को इसतरह समझाया जा रहा

आपने कई भाषण सुने होंगे जिनमें कहा जा रहा है कि तीन तलाक के खिलाफ कानून बना और हम चुप रहे। 370 हट गया फिर भी हमने कुछ नहीं किया। अयोध्या का फैसला आ गया और हम खामोश बैठे रहे। अब नागरिकता कानून बन गया। आगे एनआरसी होगा। फिर कुछ होगा। इस तरह मुसलमानों को यह समझाया जा रहा है कि वर्तमान सरकार उनकी विरोधी है और अपना वजूद बचाना है तो उठो और लड़ो। इस तरह का खतरनाक झूठ फैला दिया जाए तो अलग-अलग तरह के तत्व अपने-अपने तरीके से विरोध करने लगते हैं। इसका सामना करने के लिए समाज को आगे आना होगा।

अहिंसक प्रदर्शनों और प्रचारों के द्वारा झूठ और षड्यंत्र को खत्म किया जा सकता है

झूठ और षड्यंत्र को खत्म करने के लिए अहिंसक प्रदर्शनों और प्रचारों के द्वारा सच को प्रभावी तरीके से रखना होगा। इसमें सभी मजहब के लोगों का साथ लिया जाना चाहिए। अगर शाहीन बाग के विरोध में अहिंसक तरीके से बड़े धरने आयोजित होते तो स्थिति दूसरी होती।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं )