सुधीर कुमार। हमारा भारत दुनिया का एक ऐसा विरला देश प्रतीत होता है, जहां विविध धर्म, भाषा एवं संस्कृति के लोग परस्पर प्रेम और भाईचारे के साथ मिलकर देश की एकता-अखंडता को बरकरार रखने के लिए प्रतिबद्ध नजर आते हैं। आदिकाल से ही ज्ञान-विज्ञान, कला-साहित्य, योग-अध्यात्म एवं अन्य विधाओं के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में भारतवर्ष की ख्याति दुनिया के कोने-कोने में फैली। एक विदेशी विद्वान भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर इतना कह गए कि ‘भारत एक चमत्कार है।’हमारी प्राचीन सभ्यता सदियों से दुनिया को आकर्षति करती रही है। यहां कबीर, रैदास, नानक जैसे महान संत और गांधी, आंबेडकर, ज्योतिबा फूले और ईश्वरचंद विद्यासागर जैसे विशिष्ट समाज सुधारकों ने जन्म लिया है।

यहां के मनीषियों, विद्वानों और वैज्ञानिकों ने अपनी विद्या, विचार एवं दर्शन से संपूर्ण विश्व को ऊर्जावान किया है। हमारे प्रबुद्ध पूर्वजों ने हमारे लिए समृद्ध सांस्कृतिक विरासत छोड़ी है। इस अमूल्य विरासत को सहेजने की जिम्मेदारी वर्तमान तथा आने वाली पीढ़ियों दोनों की है। युवा इसमें अपना बहुमूल्य योगदान दे सकते हैं।

बीते कुछ दशकों के दौरान चंद अराजक एवं निहित स्वार्थी तत्वों ने गौरवशाली भारत की एकता और अखंडता को तोड़ने की पुरजोर कोशिशें की है। मौजूदा समय में देश के कुछ दलों की संकुचित सोच तथा समावेशी विकास का अभाव इसकी उपज के प्रमुख कारण हो सकते हैं।

भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा के लिए हमें आगे आना होगा। धर्म, जाति, मजहब के नाम पर एक-दूसरे की जान के दुश्मन न बनकर हम आपसी प्रेम, सौहार्द एवं भाईचारे की मिसाल बनने की कोशिश करें तो गौरवशाली भारत की एकता और अखंडता को तोड़ने की कोशिश करने वाले चंद स्वार्थी तत्व हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएंगे। पूर्वजों द्वारा अर्जति नैतिकता, सहनशीलता और इंसानियत के उच्च आदर्श हम भारतीयों के हृदय में हमेशा जीवंत रहने चाहिए। इससे एक सुंदर समाज तथा देश के निर्माण को बल मिलेगा।

अगर हम अपने दैनिक जीवन में छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दें तो हमारा देश काफी आगे बढ़ जाएगा। हमें अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। हम सिर्फ अपने अधिकारों के लिए ही आवाज बुलंद न करें, बल्कि कर्तव्यों को भी अपनी जीवनशैली में भलीभांति शामिल करना होगा। स्वतंत्रता दिवस नजदीक है। क्यों न हम इस अवसर पर देश को शिखर पर पहुंचाने का संकल्प लें। सिर्फ संकल्प ही न लें, बल्कि उसे पूरा करने के लिए मनोयोग से लग भी जाएं। हमारे इसी संकल्प से स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को सार्थकता मिल पाएगी। स्वतंत्रता का यह महान पर्व नई उम्मीद और आशाओं के साथ देशवासियों के हृदय में देशप्रेम का भाव जगाने आया है। इस ऊर्जा का उपयोग देशहित में करना ही श्रेयस्कर है।

(लेखक बीएचयू में अध्येता हैं)