[ संतोष त्रिवेदी ]: बड़ा अद्भुत दृश्य था। अस्पताल के आइसीयू से सीधे स्वर्ग के दरवाजे पर! मैं एकदम भौंचक्का था। जिस स्वर्ग की न जाने कैसी-कैसी कल्पनाएं किया करता था, वहां बिना वीजा के अनायास पहुंच गया था। परलोक में मेरी उपस्थिति का भान होते ही दो भव्य-पुरुष मेरे निकट आए। मेरे मुंह पर बंधे मास्क को उन्होंने नोचकर फेंक दिया। मैंने प्रोटोकॉल का हवाला दिया तो उनमें से एक ने स्पष्टीकरण दिया, ‘यह भूलोक नहीं है। तुम्हारे मरने के साथ ही सभी अलाएं-बलाएं समाप्त हुईं। तुम अब संपूर्ण दुखों से मुक्त हुए। यहां हवा, दवा और दुआ की कोई कमी नहीं है। यह स्थान एकदम वायरस-प्रूफ है। लेखक-आत्माओं के लिए तो यहां हमेशा बेड उपलब्ध होता है। स्वर्गलोक में रहने की तुम सभी पात्रताएं पूरी करते हो, इसलिए तुम्हारा स्वागत है।’ ऐसे मधुर वचनों को सुनकर मैं अभिभूत हो उठा। तभी मुझे आगे बढ़ने का संकेत मिला। स्वर्ग-द्वार की दोनों ओर अप्सराएं खड़ी मुस्करा रही थीं। मैं दंग था। जीते-जी जिस सम्मान के लिए जिंदगी भर तरसता रहा, एक मुए वायरस ने पलक झपकते ही उससे मुझे निहाल कर दिया था। 

मुस्कुराइए आप स्वर्ग-लोक में हैं

अचानक एक सुकन्या आगे बढ़ी और एक अजीब-सा यंत्र मेरे चेहरे के सामने कर दिया। ‘मुस्कुराइए कि आप स्वर्ग-लोक में हैं!’ इस अप्रत्याशित निवेदन से मैं पसोपेश में पड़ गया। इसके पहले मैंने कभी ऑन-डिमांड मुस्कुराहट का डेमो नहीं दिया था। मैंने ठीक से मुस्कुराने के चक्कर में खिस्स से दांत चियार दिए। उसने कहा, ‘हमें आपकी मुस्कुराहट को स्कैन करना है, दांतों को नहीं। कृपया खीस न निपोरें, केवल मुस्कुराएं।’

चित्रगुप्त जी के साथ मीटिंग

इस बार का निवेदन तनिक तल्ख था। मामले को देखते हुए मैं भी गंभीर हो गया। उसके कहे के मुताबिक मैंने उतना ही मुंह खोला, जितने की अनुमति थी। इस बार टेस्ट में पास हो गया। इसके बाद दूसरी सुकन्या ने मुझे सूचना दी कि मेरी चित्रगुप्त जी के साथ मीटिंग फिक्स हुई है। हम सबको सीधे उन्हीं के पास चलना है। इस मीटिंग को लेकर मेरे मन में तीव्र उत्सुकता हुई और फिर एक बार मन ही मन सिस्टम को प्रणाम करके उनके साथ चल पड़ा। थोड़ी देर में ही हम चित्रगुप्त जी के बंगले में थे। वह सोफे पर विराजमान थे और सामने दीवार पर स्क्रीन में पूरा नर्क-लोक दिख रहा था।

स्वर्ग-लोक तकनीक के मामले में भूलोक से काफी आगे

वे घटनाओं को नजदीक से देखना चाहते थे, इसलिए बड़ी स्क्रीन के बजाय उसे अपनी हथेली में उतार लिया। मुझे उनका यह कौतुक देखकर अच्छा लगा कि स्वर्ग-लोक तकनीक के मामले में भूलोक से काफी आगे है। मेरे सामने ही उनकी हथेली पर एक-एक कर सारे चैनल खुलने लगे। ये सब वहां के थे जहां से अभी-अभी मुझे डिपोर्ट किया गया था। चित्रगुप्त जी पूछने लगे, ‘सुना है वहां सिस्टम से ज्यादा डाटा की जानकारी तुम्हें है।’

बिना हवा और दवा के मिली मुक्ति

अपनी प्रशंसा सुनकर मैं सामान्य बना रहा। मैंने उन्हेंं धन्यवाद देते हुए कहा कि मामले को समझने के लिए कुछ नारकीय-घटनाओं को देखने की कोशिश करता हूं। उन्होंने तुरंत एक चैनल खोला। बहुत से लोग भैंसागाड़ी में लदे हुए नर्क की ओर चले जा रहे थे। चित्रगुप्त जी ने वहां ड्यूटी पर तैनात यमदूत से पूछा कि इतने सारे लोग एक के ऊपर एक क्यों लदे हुए हैं? ‘इन्होंने बहुत बड़ा गुनाह किया है। ये हर चुनाव में हवा देखकर वोट डाल आते थे। उसी का प्रतिफल है कि बिना हवा और दवा के ही इन्हेंं मुक्ति प्रदान कर दी गई।’ यमदूत ने उत्तर दिया। यह सुनकर चित्रगुप्त जी मेरी ओर मुखातिब हुए-कुछ गड़बड़ी समझ आई?

अस्पताल या घाट में इनका रिकॉर्ड नहीं इसलिए डाटा में भारी अंतर

मैंने इसका रहस्य खोलते हुए बताया कि सिस्टम ने इनको गिना ही नहीं, क्योंकि किसी अस्पताल या घाट में इनका रिकॉर्ड नहीं है। इसलिए यहां के डाटा में भारी अंतर है, पर आप चिंता न करें, सब मैनेज हो जाएगा। बस, आप इस यंत्र की मेमोरी डिलीट कर दीजिए।

त्वरित समाधान के लिए मिलेगा इस साल का स्वर्ग-पीठ सम्मान

‘वाह, वाह! कितना त्वरित समाधान किया है तुमने! इस साल का स्वर्ग-पीठ सम्मान तुम्हें ही दिया जाएगा।’ यह सुनकर मेरे रुंधे गले से आवाज नहीं आ रही थी। मैं छटपटाने लगा था कि तभी श्रीमती जी ने झिंझोड़ा, ‘शालू के पापा, ओ शालू के पापा! तुम्हारा आक्सीजन लेवल वापस आ गया है। तुम यहीं हो।’

मैं एक झटके में ही स्वर्ग से नर्क में आ गिरा।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]