[ राजीव सचान ]: दिल्ली घेर कर बैठे किसान नेताओं ने एलान किया है कि आगामी छह फरवरी को देश भर में राजमार्गों का चक्का जाम किया जाएगा। इसका अर्थ केवल सरकार पर दबाव बनाना ही नहीं, इसकी सिरे से अनदेखी करना भी है कि 26 जनवरी को उनकी ट्रैक्टर रैली के समय दिल्ली में हिंसा का कैसा नंगा नाच हुआ था? देश को लज्जित करने वाला यह नंगा नाच केवल इसलिए नहीं हुआ कि किसानों के बीच कुछ गुंडे घुस गए थे। यह इसलिए भी हुआ कि किसान नेताओं ने ट्रैक्टर रैली को लेकर दिल्ली पुलिस की ओर से तय करीब-करीब हर शर्त का चुन-चुनकर उल्लंघन किया। यह उल्लंघन उनकी उपस्थिति में हुआ। वे इन शर्तों का पालन करने को लेकर गंभीर ही नहीं थे। वे अपनी पसंद के रास्ते पर जबरन जाने को मचल रहे थे। उनकी इसी मनमानी को रोकने में दिल्ली पुलिस के 394 जवान घायल हुए। यह मानना सच से मुंह मोड़ना होगा कि दिल्ली में उत्पात मचाने और लाल किले पर झंडा फहराने वाले सभी ट्रैक्टर सवार दीप सिद्धू के गुंडे थे।

लाल किले पर गुंडों की चढ़ाई नहीं होती

आम तौर पर लाल किले पर अपना झंडा फहराने का सपना या तो पाकिस्तान के जिहादी देखते हैं या फिर उन्हें पालने-पोसने वाले वहां के फौजी जनरल। लाल किले पर गुंडों की चढ़ाई नहीं होती, यदि किसान नेता गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली निकालने की जिद नहीं पकड़ते। इस जिद के भयावह नतीजे सामने आने के बाद भी किसान नेता छह फरवरी को चक्का जाम करना चाहते हैं। चक्का जाम जैसे आयोजन तभी सफल होते हैं, जब जोर-जबरदस्ती यानी गुंडागर्दी का सहारा लिया जाता है। किसान नेता संख्याबल यानी भीड़ के जरिये अपनी मनमानी कर सकते हैं, लेकिन वे देश की सहानुभूति नहीं र्अिजत कर सकते और जो आंदोलन जनता की सहानुभूति खो दे, वह सफल नहीं हो सकता। तब तो और भी नहीं जब वह जिद पर सवार हो।

सरकार कृषि कानूनों में संशोधन करने को तैयार, लेकिन किसान नेता वापसी की जिद पकड़े हैं

जिन कृषि कानूनों का विरोध हो रहा है, सरकार उनमें संशोधन करने, उनकी समीक्षा कराने और उन्हें डेढ़ साल तक रोकने को भी तैयार है, लेकिन किसान नेता उनकी वापसी की जिद पकड़े हैं। वे यह चाह रहे हैं कि सरकार तो लगातार अपने कदम पीछे खींचती जाए, लेकिन वे खुद एक इंच टस से मस न हों। यह और कुछ नहीं, सरकार की नाक रगड़ कर अपनी बात मनवाने वाला रवैया है। सरकार चाहे कमजोर हो या मजबूत, उसके झुकने की एक सीमा होती है। इसका औचित्य नहीं कि एक पक्ष तो नरमी का परिचय दे, लेकिन दूसरा अपनी जिद पर अड़ा रहे। किसान नेता ऐसा व्यवहार कर रहे हैं, जैसे देश के किसानों ने उन्हें अपना नेता चुनकर कानूनों के निरस्तीकरण का अधिकार सौंप दिया है।

किसान नेताओं की जिद सरकार की साख का तख्ता पलटने वाली मानसिकता से लैस दिख रही

यह सनद रहे कि पीर बावर्ची भिश्ती खर की उक्ति चरितार्थ करने वाले योगेंद्र यादव को हरियाणा विधानसभा चुनाव में तीन हजार वोट भी नहीं मिले थे। नि:संदेह जिसे एक वोट भी न मिला हो और यहां तक कि जो चुनाव भी न लड़ा हो, उसे भी अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह खुद को संसद या सुप्रीम कोर्ट से ऊपर समझने लगे। किसान नेताओं का बर्ताव तो ऐसा है जैसे वे जो कहें, वही राष्ट्रीय आदेश-जनादेश मान लिया जाए। किसान नेताओं की जिद सरकार की साख का तख्ता पलटने वाली मानसिकता से लैस दिख रही है। इस मानसिकता का परिचय इस सुनहरे मौके के बावजूद दिया जा रहा कि किसान नेता बातचीत के जरिये कृषि कानूनों में व्यापक परिवर्तन करा सकते हैं।

इस आंदोलन में देश के आम किसानों की न तो भागीदारी है और न ही दिलचस्पी

किसी को भी इस नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए कि दिल्ली की घेरेबंदी करने वाला आंदोलन आम किसानों का आंदोलन है। वस्तुत: यह पंजाब के सिखों और हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के समर्थ जाट किसानों का आंदोलन है। इस आंदोलन में देश के आम किसानों की न तो भागीदारी है और न ही दिलचस्पी। यह आंदोलन इस अफवाह पर आधारित है कि नए कृषि कानून लागू होने के बाद न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की व्यवस्था खत्म हो जाएगी और किसानों की जमीन छीनने का काम शुरू हो जाएगा। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भोले-भाले किसान इस अफवाह को सही मान रहे हैं।

किसान आंदोलन को खाद-पानी देने का काम मीडिया का एक हिस्सा भी कर रहा

इस अफवाह को सही साबित करने का काम किसानों के संगठन और उनसे जुड़ा उनका प्रचार तंत्र करने में लगा हुआ है। इसमें विपक्षी दल भी शामिल हैं। क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि दिल्ली की जनता की नाक में दम करने वाले आंदोलन को खुद दिल्ली सरकार खाद-पानी दे रही है? इस आंदोलन को खाद-पानी देने का काम मीडिया का एक हिस्सा भी कर रहा है। वह इस कदर दुराग्रह से ग्रस्त है कि फेक न्यूज की फैक्ट्री-झूठ का कारवां बन गया है। फेक न्यूज की इन्हीं फैक्ट्रियों ने उत्पात मचा रहे उस ट्रैक्टर सवार की मौत का कारण पुलिस की गोली लगना बताया, जो खुद का ट्रैक्टर पलटने से मरा था। सीसीटीवी फुटेज और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद भी ये दुराग्रही यही बताते रहे कि वह तो गोली लगने से मरा। जब उनके खिलाफ कार्रवाई की पहल हुई तो बोल कि लब आजाद हैं तेरे.. गाया जाने लगा।

बजट ने एमएसपी खत्म होने के दुष्प्रचार की हवा निकाल दी

जैसे फेक न्यूज एक हकीकत है, वैसे ही यह भी कि उन्हें कुछ मीडिया वाले ही फैलाते हैं। ये इतने शातिर हैं कि अपनी फर्जी खबर के जरिये राष्ट्रपति को भी निशाना बनाने से नहीं चूकते। खैर, अब जब बजट ने एमएसपी खत्म होने के दुष्प्रचार की हवा निकाल दी है तो किसान नेताओं और सरकार में वार्ता होनी चाहिए। बेहतर हो कि सरकार खुद किसान नेताओं को फोन करके एक फोन कॉल की दूरी खत्म करे। किसान नेताओं का इससे कुपित होना स्वाभाविक है कि उन्हें खालिस्तानी, पाकिस्तानी कहा गया, लेकिन वे इससे अनजान नहीं हो सकते कि उनके आंदोलन से जो हालात उपजे हैं, उनसे सबसे अधिक खालिस्तानियों और पाकिस्तानियों के ही मन की मुराद पूरी हो रही है।

( लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं )