अभिषेक कुमार सिंह। जैसे-जैसे वक्त बीत रहा है, पूरी दुनिया में यह समझ भी बन रही है कि कोविड-19 महामारी से निपटने का एक तरीका यह भी है कि इसके साथ रहना सीख लिया जाए। ऐसे में सरकारों, समाजों और विभिन्न संगठनों के कामकाज में वे तौर-तरीके खोजे जा रहे हैं कि कोरोना वायरस की मौजूदगी के बीच ही सारी व्यवस्थाओं को पटरी पर लाया जा सके। ऐसी व्यवस्थाओं को ‘बायो बबल’ और ‘ट्रैवल बबल’ जैसे नाम दिए गए हैं। इन्हें लेकर जोर-आजमाइश भी शुरू हो गई है। इसका आकलन किया जा रहा है कि क्या बबल बनाकर दुनिया तकरीबन उसी र्ढे पर लौट सकती है, जैसी वह कोरोना का उत्पात खड़ा होने से पहले थी।

ऐसा नहीं है कि कोरोना वायरस के असर के कारण सारे कारोबार एकदम ठप हो गए हैं। बेशक एयरलाइंस, बस, ट्रेन जैसे आवागमन के साधन रुके हुए हैं। स्कूल-कॉलेज, धर्मस्थल, पर्यटक स्थलों, शॉपिंग मॉल्स आदि कई जगहों पर ताला पड़ा हुआ है, लेकिन इंटरनेट की बदौलत यह सहूलियत भी मिली है कि जो कार्य ऑनलाइन संचालित हो सकते हैं, उन्हें बदस्तूर जारी रखा जाए। साथ ही उन वैकल्पिक उपायों को भी अपनाया गया है, जिनकी मदद से सामान्य कामकाज करते हुए कोरोना से बचाव हो सके। जैसे स्वास्थ्य, सफाई और पुलिस व्यवस्था से जुड़े सभी कर्मचारियों ने शारीरिक दूरी अपनाते हुए पीपीई किट, मास्क और हैंड सैनिटाइजर आदि की मदद से अपनी ड्यूटी पहले की तरह ही निभाई है।

लेकिन सवाल है कि खेल आयोजन कैसे हों?: कुछ विकल्प और आजमाए गए हैं। जैसे फिल्में अगर सिनेमा हॉल में रिलीज नहीं हो सकती हैं तो उन्हें ऑनलाइन प्लेटफॉर्म यानी ओटीटी (ओवर द टॉप) रिलीज किया जा रहा है। पढ़ाई वास्तविक कक्षाओं में नहीं हो सकतीं और बैठकें, रैलियां पहले की तरह नहीं की जा सकतीं तो उन्हें भी ऑनलाइन यानी वर्चुअली आयोजित किया जा रहा है, लेकिन सवाल है कि खेल आयोजन कैसे हों? हवाई यात्रओं को पहले की तरह कैसे संचालित किया जाए? इन्हीं मजबूरियों के चलते कई खेल आयोजन स्थगित किए जा चुके हैं, क्योंकि खेल के दौरान खिलाड़ियों का आपसी संपर्क होना अवश्यंभावी होता है। साथ ही ज्यादातर खेल खेलते हुए खिलाड़ी मास्क, पीपीई किट नहीं पहन सकते। इसी तरह हवाई, रेल और बस यात्रओं के दौरान एक से दूसरे यात्री के बीच एक या दो मीटर की दूरी का नियम काफी अड़चन डाल रहा है, लेकिन जहां चाह वहां राह की तर्ज पर अब इन सभी मामलों में बबलरूपी व्यवस्थाओं को कायम किया जा रहा है, ताकि खेल आयोजन भी हो सकें और यात्रएं भी संपन्न कराई जा सकें।

क्या है बायो बबल: हालांकि ‘बबल’ के ज्यादातर संदर्भ नकारात्मक हैं। व्यापार आदि क्षेत्रों में इस शब्द का आशय इससे लगाया जाता है कि किसी चीज को बुलबुले की तरह बढ़ा-चढ़ाकर दिखा दिया गया है। यह बुलबुला ऐसा होता है जिसमें कोई पिन चुभोई जाएगी तो वह फूट जाएगा। पूर्व में रियल्टी सेक्टर में पैदा हुए बबल को इसी संबंध में देखा जाता है, लेकिन मौजूदा कोरोना काल में बबल सिस्टम एक सकारात्मक समाधान के रूप में सामने आ रहा है। इसकी एक चर्चा तब पुरजोर ढंग से उठी, जब हाल में वेस्टइंडीज और इंग्लैंड के बीच टेस्ट क्रिकेट श्रृंखला का एक मैच बबल व्यवस्था के तहत संपन्न कराया गया। इस साल मार्च में विश्वव्यापी लॉकडाउन की घोषणाओं के बाद जब इंग्लैंड में वेस्टइंडीज और इंग्लैंड के बीच पहली बार कोई अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच खेला गया तो उसे बायो सिक्योर फॉर्मूले के तहत संपन्न कराया गया। इसे ही बायो बबल वाली व्यवस्था कहा जा रहा है।

खिलाड़ियों की प्रतिदिन हेल्थ रिपोर्ट तैयार की जाएगी: इस व्यवस्था के तहत इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड ने एक ऐसा बायो सिक्योर वातावरण बनाया, जिसमें खिलाड़ियों से लेकर उनके सहयोगी स्टाफ और होटलकíमयों तक को शेष दुनिया से अलग कर दिया गया। मीडियाकर्मियों की उन सभी तक बहुत सीमित पहुंच रही। इस दौरान सभी खिलाड़ियों, स्टाफ और होटलकर्मियों को न केवल शारीरिक दूरी के नियमों को सख्ती से पालन करने को कहा गया, बल्कि कोरोना संबंधी नियमित जांच करने के साथ प्रतिदिन उनकी हेल्थ रिपोर्ट तैयार की गई। इस प्रकार दोनों देशों के खिलाड़ियों और गिनेचुने लोगों के लिए ऐसा बायो बबल बना दिया गया, जिसमें वे टीवी कैमरों के माध्यम से पूरी दुनिया को तो नजर आ रहे थे, लेकिन कोई भी बाहरी व्यक्ति उस बायो बबल में जाकर उनसे मिल नहीं सकता था।

स्टेडियम एवं होटल में एक ग्रीन जोन बनाया जाएगा: कहने का अर्थ यह है कि खिलाड़ियों, टीम प्रबंधन, होटल स्टाफ आदि सभी लोग जहां ठहरेंगे, वहां से लेकर स्टेडियम तक कोई भी अन्य व्यक्ति इनके संपर्क में नहीं आ सकता। यही नहीं, जो भी शख्स इस बायो बबल के नियमों का उल्लंघन करेगा, उस पर कार्रवाई भी हो सकती है। यही वजह है कि इंग्लैंड-वेस्टइंडीज के बीच हुए पहले टेस्ट मैच के दौरान जब इंग्लैंड के तेज गेंदबाज जोफ्रा आर्चर थोड़े समय के लिए अपने घर चले गए तो इसके लिए उन्हें दंड स्वरूप अगले टेस्ट मैच के लिए बैन कर दिया गया। इस बायो बबल का एक नियम यह भी है कि जहां भी कोई टीम मैच खेलेगी और होटल में रहेगी, उसके 1500 से 2000 वर्ग मीटर के दायरे को बिल्कुल अलग-थलग कर दिया जाएगा। साथ ही स्टेडियम एवं होटल में एक ग्रीन जोन या इनर कोर (भीतरी दायरा) बनाया जाएगा, जिसमें टीम के सदस्यों को एक दूसरे से मिलने की छूट होगी।

बायो बबल की तरह टैवल बबल बनाने की कवायद: बबल जैसे नए कायदे क्रिकेट या अन्य खेलों में इसलिए अपनाए जा रहे हैं, ताकि रुके हुए सारे खेल आयोजनों को आयोजित कराया जा सके, जिससे प्रतीत हो कि दुनिया धीरे-धीरे अपनी सामान्य दिनचर्या की तरफ बढ़ रही है, लेकिन मामला सिर्फ खेलों का नहीं है। कोरोना के कारण लगे यात्र प्रतिबंधों की वजह से पूरी दुनिया की विमान सेवाएं भारी घाटे में हैं। रेल और बसें नहीं चलने से आम लोग भी परेशान हैं। इसलिए अब सोचा जा रहा है कि परिवहन संचालन को भी बायो बबल या ट्रैवल बबल जैसी व्यवस्थाओं के सहारे फिर से सामान्य किया जाए। अंतरराष्ट्रीय विमान उड़ानों के लिए ट्रैवल-बबल का अभिप्राय क्रिकेट जैसा घेरा बनाना नहीं है, बल्कि इसमें ऐसे कठोर पाबंदियों की बात की जा रही है, जिसमें कोई भी व्यक्ति मनचाही संख्या में टिकट बुक नहीं करा सकता है।

जैसे भारत समेत कुछ देशों में यह नियम लागू करने की बात है कि वही लोग विमान यात्र कर सकेंगे जिनके पारिवारिक सदस्य गंतव्य देश के स्थायी निवासी, ग्रीन कार्ड होल्डर हैं। इसके अलावा सभी यात्रियों को कोरोना टेस्ट की निगेटिव रिपोर्ट अनिवार्यत: अपने साथ रखनी होगी। जिस देश में ये उड़ानें लैंड करेंगी, वहां इन यात्रियों को क्वारंटाइन संबंधी नियमों का पालन करना होगा। इन नियम-कायदों के साथ विमान यात्र को हाल में एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया में शुरू किया गया है। ये तीनों देश यूरोपीय संघ के सदस्य हैं और यहां कोरोना वायरस के कारण कुल मिलाकर करीब 150 मौतें ही हुई हैं। कहा जाने लगा है कि अगर कोविड-19 के असर से न्यूनतम प्रभावित हुए दुनिया के सभी देशों में ट्रैवल बबल के नियमों के तहत विमान उड़ानें शुरू की जाती हैं तो इससे अर्थव्यवस्था को उबरने में काफी मदद मिलेगी। उड़ानें शुरू होने से न सिर्फ इन देशों के लोगों को आवागमन में सहूलियत मिल सकेगी, वरन इससे छोटे-छोटे देशों का बड़े मुल्कों के साथ व्यापार भी नए सिरे से शुरू हो सकेगा। उक्त देशों में ट्रैवल बबल के नियमों के साथ रेल और बस सेवाएं भी शुरू करने की बात हो रही है।

एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया में ट्रैवल बबल जैसी व्यवस्था ने ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को भी इसके लिए प्रेरित किया है कि वे भी अपने नागरिकों को क्वारंटाइन की शर्तो से छूट वाली विमान उड़ानें शुरू कर सकें। ऐसी ही एक व्यवस्था कायम करने की कोशिश हमारे देश में एक निजी एयरलाइंस ने की है। इंडिगो ने अपने ग्राहकों के लिए एक विशेष स्कीम ‘6ई डबल सीट सíवस’ के नाम से लांच की है। इस योजना के तहत कोई भी यात्री कोरोना जांच संबंधी नियमों का पालन करते हुए एक व्यक्ति के लिए दो सीटें बुक करा सकेगा। इसका फायदा यह होगा कि विमान में उसके और दूसरे यात्री के बीच एक सीट खाली रखी जाएगी, जिससे शारीरिक दूरी के नियम का पालन हो सके।

बहरहाल सपना यह है कि अगर अब विश्व में बिल्कुल पहले जैसी सामान्य दिनचर्या नहीं बन सकती तो कम से कम इतना तो कर ही लिया जाए कि हालात को काफी हद तक कामकाजी बना लिया जाए। फिल्मों, टीवी धारावाहिकों की शूटिंग, कुछ फैक्टियों में उत्पादन और निर्माण क्षेत्र की गतिविधियों की आंशिक शुरुआत इसी दिशा में एक कदम है। अगर बायो बबल जैसे प्रयोग सफल रहे तो कह सकते हैं कि इनसे जगने वाली उम्मीदें दुनिया को नई ऊर्जा से भर देंगी।

अगर अब पहले जैसी सामान्य दिनचर्या नहीं बन सकती तो कम से कम इतना तो कर ही लिया जाए कि हालात को काफी हद तक कामकाजी बना लिया जाए। फिल्मों, टीवी धारावाहिकों की शूटिंग, कुछ फैक्टियों में उत्पादन और निर्माण क्षेत्र की गतिविधियों की आंशिक शुरुआत इसी दिशा में एक कदम है। अगर बायो बबल या ट्रैवल बबल जैसे प्रयोग सफल रहे तो कह सकते हैं कि इनसे जगने वाली उम्मीदें दुनिया को नई ऊर्जा से भर देंगी

इन बुलबुलों के आलोचक कम नहीं: ऐसा नहीं है कि हर कोई बायो बबल और ट्रैवल बबल की नीतियों से खुश हो, बल्कि इस बायो सिक्योर प्रोटोकॉल को लेकर कुछ लोग अभी से सवाल उठाने लगे हैं। क्रिकेट का ही मामला लें तो जोफ्रा आर्चर द्वारा इसके तहत बनाए गए नियमों को तोड़ने पर वेस्टइंडीज के पूर्व गेंदबाज माइकल होल्डिंग ने इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड को आड़े हाथों लिया है।

उन्होंने कहा है कि जब खिलाड़ी कोरोना टेस्ट करा लेते हैं और सभी की रिपोर्ट निगेटिव आती है तो उन पर इतना सख्त नियम क्यों लागू किया जाता है। क्यों उन्हें एक ही बस में नहीं भेजा जाता है या फिर पूरे टेस्ट मैचों तक इसे क्यों लागू किया जा रहा है। होल्डिंग के कहने का अभिप्राय यह है कि अगर शुरुआती मैचों में हालात सामान्य दिखते हैं तो आगे चलकर इसकी शर्तो में छूट दी जानी चाहिए। भारतीय क्रिकेटर राहुल द्रविड़ ने भी बायो बबल की योजना को अव्यावहारिक ठहराया है।

उन्होंने सवाल उठाया है कि टेस्ट मैच शुरू हो जाने के दो दिन बाद यदि दोनों में से किसी एक टीम के एक भी खिलाड़ी की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आ जाती है तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? क्वारंटाइन के मौजूदा नियमों के मुताबिक तो ऐसे हालात में दोनों टीमों को ही नहीं, बल्कि होटल, मीडिया, स्टेडियम आदि में काम करने वाले करीब 250-300 लोगों को भी क्वारंटाइन में जाना पड़ सकता है। द्रविड़ के अनुसार क्रिकेट के आगामी सीजन को देखते हुए खिलाड़ियों को जितने दौरे करने हैं उसमें वे अनगिनत लोगों के संपर्क में आ सकते हैं। ऐसे में बायो बबल के नियमों का पालन करना संभव नहीं रह जाएगा।

[संस्था एफआइएस ग्लोबल से संबद्ध]