[ ए. सूर्यप्रकाश ]: पश्चिमी मीडिया के एक बड़े हिस्से का भारत के प्रति दुराग्रह छिपा नहीं। उसने कभी हमारे देश की सामर्थ्य को स्वीकार नहीं किया। किसी ने यह कल्पना नहीं की होगी कि कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए भारत द्वारा उठाए गए सख्त कदमों को लेकर पश्चिमी मीडिया का एक हिस्सा दुराग्रही हो जाएगा और वह भी तब जब उनके अपने देशों में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।

अमेरिका में कोरोना के कारण एक से दो लाख लोगों की मौत हो सकती है

मंगलवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के स्वास्थ्य सलाहकारों ने कहा कि वहां कोरोना के कारण एक से दो लाख लोगों की मौत हो सकती है। ट्रंप ने भी कहा कि अगले एक-दो हफ्ते बहुत भारी साबित होने वाले हैं। माना जा रहा है कि शुरुआती लापरवाही के चलते ही अमेरिका में हालात काबू से बाहर हो गए। इसके बावजूद ट्रंप प्रशासन लॉकडाउन से परहेज कर रहा है जबकि कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए यह बेहद जरूरी है। इटली और स्पेन में मौतों का आंकड़ा दस हजार को पार कर चुका है। ईरान, फ्रांस और ब्रिटेन के अलावा तमाम अन्य देश भी इसकी चपेट में हैं।

कोरोना को हराने के लिए शारीरिक दूरी मोदी सरकार का निर्णायक पहल

भारत सरकार ने शारीरिक दूरी को लेकर जागरूकता और व्यापक स्तर पर संदिग्ध कोरोना मरीजों की छानबीन का अभियान छेड़कर निर्णायक पहल की। 22 मार्च को प्रधानमंत्री ने जनता कफ्र्यू के रूप में एक तरह का मॉक ड्रिल कराया और फिर 24 मार्च को राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का फैसला लिया। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों, राष्ट्रीय संस्थानों और मीडिया के साथ मिलकर हाथ धोने, शारीरिक दूरी, संदिग्ध मरीजों की छानबीन को लेकर अभियान छेड़ा। सरकार ने हफ्तों पहले ही फैसला कर लिया था कि कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएंगे।

भारत आने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए 14 दिन का क्वारंटाइन अनिवार्य

उसने भारत आने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए 14 दिन का क्वारंटाइन अनिवार्य किया। इसके साथ ही इटली और ईरान जैसे कोरोना हॉटस्पॉट वाले देशों से आने वाले लोगों को अर्धसैनिक बलों द्वारा चलाए जा रहे शिविरों में भेजा गया। आंकड़ों से तस्वीर और स्पष्ट होती है। दुनिया भर में कोरोना संक्रमितों की संख्या दस लाख का आंकड़ा पार कर चुकी है और भारत की 130 करोड़ की आबादी में इसके लगभग 2000 मामले ही सामने आए हैं। इसके उलट अमेरिका की आबादी 33 करोड़ है, लेकिन वहां संक्रमितों की संख्या तीन लाख के करीब पहुंच चुकी है। यह अंतर बहुत कुछ स्पष्ट करता है। यूरोपीय देशों की स्थिति भी इतनी ही भयावह है।

भारतीय नीति निर्माता चीन, दक्षिण कोरिया और हांगकांग के तौर-तरीकों से प्रभावित

कोरोना संक्रमण की रोकथाम के मामले में भारतीय नीति निर्माता चीन, दक्षिण कोरिया और हांगकांग के तौर-तरीकों से अधिक प्रभावित दिखते हैं। दूसरी ओर अमेरिका में तमाम लापरवाहियों की बात सामने आ रही है। न्यूयॉर्क राज्य के गवर्नर एंड्रयू क्यूमो स्वास्थ्यकर्मियों के लिए उपकरण और मरीजों के लिए वेंटिलेटर मांगने के मामले में गिड़गिड़ा रहे हैं। कुछ दिन पहले ही उन्होंने कहा था कि मरीजों को वेंटिलेटर साझा तक करना पड़ा। न्यूयॉर्क शहर में हालात बेहद भयावह हो गए हैं।

भारत को आईना दिखाता न्यूयॉर्क टाइम्स

इस परिदृश्य को देखते हुए भारत को आईना दिखाने वाला द न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे अखबार अपने खुद के शहर को लेकर बेखबर दिखते हैं। इस अखबार को भारत के 21 दिनों के लॉकडाउन में खोट ही खोट नजर आ रही है। उसका कहना है कि इस फैसले से पहले से सुस्त अर्थव्यवस्था और तबाह हो जाएगी। अखबार ने जेएनयू के एक प्रोफेसर के हवाले से लिखा कि इससे असंगठित क्षेत्र के 50 प्रतिशत कामगार बर्बाद हो जाएंगे। पश्चिमी मीडिया की भारत के प्रति दुराग्रह की भावना इतनी मजबूत है कि देश में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए केंद्र, राज्य और विभिन्न संस्थानों द्वारा किए जा रहे अनुकरणीय प्रयासों पर भी वह आंखें मूंदे हुए है।

पश्चिमी मीडिया- भारत में लॉकडाउन से प्रवासी मजदूरों की भूख से मौत होने की आशंका

130 करोड़ की आबादी में कोरोना संदिग्ध लोगों की तलाश सागर में अंगूठी तलाशने जैसी है। इसके बावजूद देश की विभिन्न एजेंसियां पूरे मनोयोग से इस मुहिम में जुटी हुई हैं। यह उन तमाम विकसित देशों के लिए सबक है जिनके शिथिल रवैये से वहां हालात नियंत्रण से बाहर हो गए। पश्चिमी मीडिया भारत में लॉकडाउन से प्रवासी मजदूरों की भूख से मौत होने की आशंका की जो तस्वीर दिखा रहा है वह बकवास ही है।

अमेरिका में महामारी का सबसे भयावह मंजर सामने आना अभी शेष- न्यूयॉर्क टाइम्स

भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करने वाले न्यूयॉर्क टाइम्स के संवाददाताओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वे कम से कम अपने अखबार की संपादकीय टिप्पणियां ही पढ़ लें, जिसमें ट्रंप पर हमलावर होकर लगातार लिखा जा रहा है कि इस महामारी का सबसे भयावह मंजर सामने आना अभी शेष है। स्वास्थ्यकर्मियों की सलाह सुनी जाए, क्योंकि यह राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का समय है। तमाम अमेरिकी जानकारों के अनुसार अमेरिका ट्रैकिंग कर वायरस को रोकने का मौका पहले ही गंवा चुका है। यही अखबार कहता है कि अमेरिकी प्रशासन का ढुलमुल रवैया मददगार नहीं होगा।

मोदी के 21 दिवसीय लॉकडाउन पर न्यूयॉर्क टाइम्स की सभी रपट नकारात्मक

मोदी के 21 दिवसीय लॉकडाउन पर न्यूयॉर्क टाइम्स की सभी रपट नकारात्मक रही हैं। इसके अलावा वाशिंगटन पोस्ट और अन्य पश्चिमी न्यूज एजेंसियां भी सरकारी फैसलों की व्यापक रूप से आलोचक रही हैं। ऐसे में सरकार करे तो क्या करे? यही मीडिया संस्थान खौफ फैला रहे कि यदि भारत ने एहतियात नहीं बरती तो देश में करोड़ों लोग इस वायरस के शिकार बन सकते हैं। अफसोस की बात है कि भारत में भी मीडिया का एक तबका इसी एजेंडे पर काम कर रहा है क्योंकि वह मौजूदा प्रधानमंत्री से बैर रखता है। वास्तव में इनमें से तमाम शायद मन ही मन यही आस लगा रहे हैं कि भारत इस आपदा से निपटने में नाकाम हो जाए ताकि उन्हें प्रधानमंत्री पर अंगुली उठाने का मौका मिल जाए।

भारत सुरक्षित हाथों में है और पश्चिमी मीडिया अपना ख्याल रखें

कुल मिलाकर हम किसी गफलत में न रहें। भारत के बारे में पश्चिमी मीडिया के अपने राजनीतिक एजेंडे पर काम करने वाले संवाददाताओं की तुलना में केंद्र एवं राज्यों का राजनीतिक नेतृत्व और अन्य संस्थान ज्यादा बेहतर सोच सकते हैं। अमेरिकियों को अपने ग्रह-नक्षत्रों को धन्यवाद अदा करना चाहिए कि ये पत्रकार उनकी सरकार को सलाह नहीं दे रहे हैं। हमें प्रधानमंत्री मोदी की उस टिप्पणी को याद करना चाहिए कि अगर ये 21 दिन नहीं संभले तो हम 21 साल पीछे चले जाएंगे। इसके साथ ही हमें पश्चिमी मीडिया से कहना चाहिए कि भारत सुरक्षित हाथों में है और आप अपना ख्याल रखें।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं )