[राजेश माहेश्वरी]। CAA Protest: नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में जिस तरह की हिंसक घटनाएं देश के कई राज्यों में घटी, उनका जितनी निंदा की जाए उतना कम है। असल में जिस कानून का देश के नागरिकों से कुछ लेना देना ही नहीं है, उस पर हिंसा समझ से परे है। दरअसल सरकार के हर निर्णय का विरोध करना विपक्ष ने अपना धर्म समझ लिया है। अपने राजनीतिक उद्देश्य पूरा करने के लिए षड्यंत्र के तहत जब राजनीतिक दल आम लोगों को उसमें शामिल कर विरोध करने लगते हैं तो अनियत्रिंत भीड़ विस्फोटक स्थितियां पैदा कर देती है।

जैसाकि केंद्र सरकार ने फैसला लिया है कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) का काम जल्द ही शुरू किया जाएगा, तो इसे जानने की भी जरूरत है। जनगणना आयोग ने कहा है कि एनपीआर का उद्देश्य देश के प्रत्येक ‘सामान्य निवासी’ का एक व्यापक पहचान डाटाबेस तैयार करना है। देश में बड़ी आबादी ऐसी भी है, जो एनआरसी और एनपीआर में अंतर नहीं समझती। इसलिए इसमें अंतर समझना-समझाना आवश्यक है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो एनपीआर देश में रहने वाले निवासियों का राष्ट्रीय डाटा तैयार करने की रूटीन कवायद है।

आबादी के स्तर पर बदलाव स्वाभाविक हैं, क्योंकि कोई दिवंगत होता है, तो कोई जन्म लेता है, कोई कामकाज के सिलसिले में अपना पुश्तैनी घर, गांव या कस्बा भी छोड़ता है। बदलाव के ऐसे असंख्य आंकड़े सामने कैसे आएंगे या सरकार की जानकारी में कैसे होंगे? सरकारें और प्रशासन इसी आधार पर योजनाओं और नीतियों के प्रारूप तय करते हैं। लेकिन चूंकि देश में नागरिकता कानून से लेकर एनआरसी की बातें चल रही हैं, ऐसे में सरकार के हर कदम को विपक्षी दल उससे जुड़ा बता रहे हैं जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है।

ऐसा नहीं है कि एनपीआर जैसी कवायद केवल भारत में ही होती है। विश्व के अधिकतर देशों में इसका प्राविधान है। महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त कार्यालय एनपीआर की व्याख्या इस तरह करता है- एनपीआर देश के सामान्य निवासियों का एक रजिस्टर है। यह नागरिकता अधिनियम 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र) नियम-2003 के प्राविधानों के तहत स्थानीय, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जा रहा है। प्रत्येक सामान्य निवासी के लिए एनपीआर में पंजीकरण कराना अनिवार्य है।

एक सामान्य निवासी एनपीआर के उद्देश्यों के तहत वह व्यक्ति है, जो पिछले छह महीने या उससे अधिक समय से स्थानीय क्षेत्र में रहता है या जो अगले छह महीने या उससे अधिक समय तक उस क्षेत्र में निवास करने का इरादा रखता है। इसका उद्देश्य देश में हर सामान्य निवासी का एक व्यापक पहचान डाटाबेस तैयार करना है। डाटाबेस में जनसांख्यिकीय के साथ-साथ बायोमीट्रिक विवरण शामिल होंगे। प्रत्येक निवासी के लिए यह जनसांख्यिकीय विवरण आवश्यक है, जिसके तहत नाम, मां-पिता या पति का नाम, लिंग, जन्म तिथि, वैवाहिक स्थिति, जन्म स्थान, राष्ट्रीयता, वर्तमान पता, वर्तमान पते पर रहने की अवधि, स्थायी निवास पता, व्यवसाय, शैक्षणिक योग्यता से लेकर वर्तमान स्थिति की जानकारी देनी होगी।

आबादी के आंकड़ों के हिसाब से योजनाओं का प्रारूप बनता है और वो जमीन पर उतर पाती हैं। गौरतलब तथ्य यह है कि भारत में 3.5 करोड़ से ज्यादा आदिवासी हैं। कुछ भटकी प्रजातियां भी हैं और कुछ हजार सिर्फ अनेक फसल काटने वाले समुदाय हैं। कई लाख बेघरबार और भीख मांगकर गुजारा करनेवाले हैं। ये सभी अस्थायी और अस्थिर निवासी हैं। बेशक वे सभी ‘भारतीय’ ही होंगे। योजनाओं और सुविधाओं का लाभ उन्हें भी मिलना चाहिए। आंतरिक सुरक्षा वहां भी एक संवेदनशील समस्या है। तो समय-समय पर उनका हिसाब-किताब क्यों नहीं होना चाहिए? वर्ष 2003 में तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने एक नियम बनाया था- नागरिकों के पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान कार्ड जारी करना। लिहाजा एनपीआर देश के स्वाभाविक निवासियों का रजिस्टर है। इसका पालन यूपीए सरकार ने भी पायलट प्रोजेक्ट के आधार पर किया।

जनसंख्या का आंकड़ा भी जानना जरूरी है। सामाजिक, आर्थिक, लैंगिक अनुपात के यथार्थ भी सामने आने चाहिए। सवाल है कि इस विश्लेषण में ऐसी कौन-सी साजिशें छिपी हैं, जिनके मद्देनजर बंगाल की ममता बनर्जी सरकार और केरल की वामपंथी सरकार ने एनपीआर की प्रक्रिया लागू करने से इन्कार किया है। कांग्रेस भी खामोश है। एनपीआर की अधिसूचना केंद्र सरकार ने 31 जुलाई 2019 को जारी की थी। उसके बाद लगभग सभी राज्य सरकारें अधिसूचना जारी कर चुकी हैं। गृह मंत्री अमित शाह और सूचना-प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी इन तथ्यों को स्पष्ट कर चुके हैं। सरकार यह भी स्पष्ट दावा कर रही है कि एनआरसी और एनपीआर में कोई संबंध नहीं है।

एनपीआर का डाटाबेस एनआरसी में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। तो ओवैसी सरीखे नेता किस आधार पर यह अफवाह फैला रहे हैं कि एनपीआर ही एनआरसी का पहला कदम है? बहरहाल, कई विपक्षी दल इसे भी राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश में लग गए। अच्छा हुआ कि गृह मंत्री अमित शाह ने समय पर सफाई दे दी। देश को मालूम होना चाहिए कि उसके यहां कौन-कौन रहते हैं। विपक्षी दलों व अन्य संगठनों की भी जिम्मेदारी है कि वह इस मामले में राजनीति करने की बजाय लोगों को सही जानकारी दें। हर मामले में राजनीति और विवाद से देश और देशवासियों का नुकसान होना लाजिमी है। जब तक आपके पास आंकड़े नहीं होंगे, तब तक आप विकास का खाका नहीं खींच पाएंगे। राजनीतिक दलों का ध्यान देश की जनता की भलाई के बारे में सोचना होना चाहिए। देश की सुरक्षा और विकास से जुड़े कार्यों में बेवजह का विवाद पैदा करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता है। गृह मंत्री इस मामले में अपनी राय एक साक्षात्कार के माध्यम से देश के समक्ष साफ कर चुके हैं, अब इ अब इस मामले में राजनीति बंद होनी चाहिए।

[स्वतंत्र पत्रकार]

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