[ प्रो. निरंजन कुमार ]: कुछ समय पहले मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक लड़के से बात करते हुए कहा था कि प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के लिए उसे वैदिक गणित पढ़ना चाहिए। फिर पीएम ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) पर चर्चा करते हुए कहा था कि गणितीय चिंतन-शक्ति और वैज्ञानिक मानस बच्चों में विकसित हों, यह बहुत आवश्यक है। गणितीय चिंतन-शक्ति का मतलब केवल गणित के सवाल हल करना नहीं, बल्कि यह सोचने का एक तरीका है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इन बिंदुओं को कैसे शामिल किया जाए, यह एक चुनौती है? यह प्रश्न स्कूली नेशनल एजुकेशन फ्रेमवर्क से भी जुड़ा है कि स्कूली पाठ्यक्रम में एनईपी के मूलभूत बिंदुओं को कैसे समाहित किया जाए? इसी परिप्रेक्ष्य में यह भी विचारणीय होगा कि वैदिक गणित की इसमें क्या संभावना है?

षड्यंत्र के तहत हम अपने प्राचीन समृद्ध ज्ञान से वंचित होते गए

यद्यपि सामान्य प्रचलित धारणा है कि वेदों में प्रकृति या देवों का स्तुतिगान हैं, लेकिन यह पश्चिमी देशों के प्राच्यवादियों का खतरनाक षड्यंत्र था। इसका उद्देश्य था समृद्ध भारतीय ज्ञान-विज्ञान को दबाकर खत्म कर देना, ताकि भारतीयों पर अपनी बौद्धिक श्रेष्ठता स्थापित करते हुए स्थायी आधिपत्य कायम किया जा सके। मैकाले के शिक्षा-षड्यंत्र को सभी जानते हैं, लेकिन हमें मैक्स मूलर जैसे प्राच्यवादियों की मंशा से भी परिचित होना चाहिए। मैक्स मूलर ने 1868 में इंग्लैंड के तत्कालीन सेक्रेटरी (मंत्री) ऑफ स्टेट फॉर इंडिया को पत्र लिखा था कि भारत पर हमने राजनीतिक विजय तो पा ली है, लेकिन एक बार फिर से हमें इन पर विजय पानी होगी और यह जीत शिक्षा के द्वारा हासिल करनी पड़ेगी। यह अनायास नहीं कि एक षड्यंत्र के तहत हम अपने प्राचीन समृद्ध ज्ञान से वंचित होते गए।

वैदिक ऋचाओं में अनेक गणितीय सूत्र उल्लिखित हैं

वैदिक ऋचाओं में अनेक गणितीय सूत्र उल्लिखित हैं। आज विश्व में गणित का जो भव्य राजभवन खड़ा है, उसके मूल में शून्य, 1 से लेकर 9 की अंकप्रणाली, दस-गुणोत्तरी (इकाई, दहाई, सैकड़ा, हजार, दस हजार आदि), दशमलव और भिन्नात्मक संख्या इत्यादि हैं। ये चीजें भारत में वैदिक काल में ही मौजूद थीं। ऋग्वेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद की विभिन्न ऋचाओं में इनका उल्लेख है, पर आज जिसे वैदिक गणित कहा जाता है वह सिर्फ वेदों तक सीमित नहीं।

बदलते हुए भारत के संदर्भ में वैदिक गणित प्रासंगिक है

वैदिक गणित के आधुनिक प्रणेता स्वामी भारतीकृष्ण तीर्थ इसमें शुल्व सूत्रों, बौद्ध ग्रंथों, जैन ग्रंथों से होते हुए आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त से लेकर आधुनिक काल के रामानुजन और शकुंतला देवी के गणितीय सूत्रों-सिद्धांतों को भी शामिल करते हैं। इस रूप में इसे भारतीय गणित, हिंदू गणित या प्राचीन गणित भी कहा जाता है। प्राचीन भारत की गणितीय प्रगति का बोध इससे भी होता है कि छठी सदी ईसा पूर्व के जिस यूनानी पाइथागोरस प्रमेय की दुनिया में चर्चा होती है, उसका उल्लेख उससे कई सौ वर्ष पहले बौधायन ने अपने शुल्व सूत्र में कर दिया था। प्रश्न है कि वैदिक गणित का आज व्यावहारिक उपयोग क्या है? वास्तव में नए और बदलते हुए भारत के संदर्भ में वैदिक गणित अत्यंत प्रासंगिक है।

वैदिक गणित में दाहिने के अलावा बाएं से भी गुणा कर सकते हैं

आमतौर पर स्कूलों में गणित का विषय कठिन और बोझिल माना जाता है, लेकिन वैदिक गणित द्वारा बहुत सरल तरीके से बहुत जटिल गणनाएं का जा सकती हैं, वह भी एक तरह से खेल-खेल में। एक उदाहरण देखें। गुणा में हमें एक ही पद्धति सिखाई जाती है, दाहिने तरफ से गुणा करना। वैदिक गणित में दाहिने के अलावा बाएं से भी गुणा कर सकते हैं। इसके अलावा गुणा के आड़े-तिरछे और भी कई तरीके हैं, जिनसे बड़ी संख्याओं का गुणन भी बहुत कम समय में संभव है। ध्यातव्य है कि आज वैदिक गणित का उपयोग कोचिंग संस्थाएं खूब कर रही हैं, जहां वे स्मार्ट मैथ्स, शॉर्टकट या क्विक मैथड्स के नाम पर वैदिक गणित का उपयोग कर रही हैं।

वैदिक गणित: कम समय में अधिक सवाल हल करना

यह समय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय, दोनों ही स्तरों पर प्रतियोगिता का दौर है। देश के विभिन्न उच्च शिक्षा संस्थाओं जैसे आइआइटी या आइआइएम आदि की प्रवेश परीक्षाओं में गणितीय क्षमता का मापन होता है। इनमें सफलता के लिए दो चीजें आवश्यक हैं- एक, कम से कम समय में अधिक से अधिक सवाल हल करना और दूसरा, सही होना यानी एकुरेसी। इन दोनों में वैदिक गणित का जोड़ नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्कूली मूल्यांकन प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट एसेसमेंट में भी वैदिक गणित के माध्यम से भारत अपना लोहा मनवा सकता है।

वैदिक गणित को स्कूली अथवा उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में कैसे समाहित किया जाए

सवाल उठेगा कि वैदिक गणित को स्कूली अथवा उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में कैसे समाहित किया जाए और इसके लिए शिक्षक कहां से आएंगे? इस संदर्भ में शिक्षा-संस्कृति के क्षेत्र में कार्यरत संगठन शिक्षा-संस्कृति उत्थान न्यास युगांतरकारी कार्य कर रहा है। इसने दस हजार से ज्यादा शिक्षकों को वैदिक गणित के लिए प्रशिक्षित किया है। आजकल एनईपी के परिप्रेक्ष्य में सीबीएसई बोर्ड के लिए निर्धारित एनसीईआरटी की पुस्तकों के लिए नए फ्रेमवर्क पर मंथन हो रहा है। यह उचित होगा कि गणित के पाठ्यक्रम में वैदिक गणित को सम्यक रूप से समाहित करने पर विचार किया जाए। एनईपी में शोध-अनुसंधान पर बहुत बल है। वैदिक गणित इस मामले में भी उपयोगी है।

वैदिक गणित के अभ्यास से तर्कशक्ति, विश्लेषण एवं संश्लेषण क्षमता बहुत बढ़ती है

वैदिक गणित के विशेषज्ञ बताते हैं कि इसके अभ्यास से तर्कशक्ति, विश्लेषण एवं संश्लेषण क्षमता बहुत बढ़ जाती है, जो शोध-अनुसंधान के लिए जरूरी है। साथ ही जिस चिंतन-शक्ति और वैज्ञानिक मानस की प्रधानमंत्री ने चर्चा की, वह भी इससे काफी बढ़ सकेगी। वैदिक गणित के अध्ययन-अध्यापन की चुनौतियां भी हैं। ऑनलाइन के जमाने में इसके लिए विभिन्न एप्स तैयार करने होंगे। फिर ग्रेजुएशन स्तर पर पढ़ाई हो सके, इसके लिए पाठ्यसामग्री तैयार करना एक अन्य चुनौती होगी। कुल मिलाकर एनईपी का एक लक्ष्य है, शिक्षा में भारतीयता को पुनस्र्थापित करना। इसमें वैदिक गणित एक महत्वपूर्ण उपकरण सिद्ध होगी, इसमें संदेह नहीं होना चाहिए।

( लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं )

[ लेखक के निजी विचार हैं ]