[कुशल कोठियाल]: जब प्रदेश मानसूनी आपदा से जूझ रहा है, तब 27 अगस्त से उत्तराखंड के सरकारी कर्मचारियों ने संयुक्त मोर्चा बना कर हड़ताल पर जाने का निर्णय ले लिया। इससे पहले कि राज्य में हालात बिगड़ते, नैनीताल कोर्ट ने हड़ताल का संज्ञान लेते हुए कर्मचारियों को कार्यालयों में लौटने के आदेश दिए और सरकार को हड़ताल गैर-कानूनी घोषित करने को आदेशित किया।

यह उत्तराखंड राज्य का दुर्भाग्य ही है कि तमाम कोशिशों के बावजूद राज्य से हड़ताली राज्य का टैग हट नहीं पा रहा है। कर्मचारी, सरकारों पर राज्य गठन के बाद से ही यह दबाव बनाने में कामयाब रहे कि चुनाव में सरकार की तकदीर वही वोटों के माध्यम से लिखने वाले हैं। यही वजह है कि कोई भी सरकार बात बेबात होने वाली हड़तालों से सख्ती से नहीं निबट पाई। एक माह पहले राज्य के शिक्षकों ने हड़ताल पर जा कर सरकार को हिला दिया, हालांकि शिक्षा राज्य मंत्री ने सख्ती दिखाने का साहस किया और नैनीताल हाइ कोर्ट के सख्त आदेशों के बाद शिक्षक नेता बैकफळ्ट पर आए।

इस बार भी कर्मचारी संयुक्त मोर्चा की हड़ताल प्रदेश की मशीनरी को अपंग करने वाली थी, लेकिन हाइ कोर्ट ने सरकार को हड़ताली कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के आदेश देकर प्रदेश की जनता को समय पर राहत दे दी। हड़ताली कर्मचारियों पर एस्मा लगाने व हड़ताल में शामिल यूनियनों की मान्यता खत्म करने के आदेश सरकार को दिए। कर्मचारियों की मांगों पर सरकार ने गंभीरता से विचार करने का भरोसा दिया है। कर्मचारियों और शिक्षकों के मांगें भले कितनी ही जायज क्यों न हों, लेकिन हड़ताली प्रदेश का टैग किसी के भी हित में नहीं है। आम नागरिक व सरकार ही नहीं, न्यायपालिका भी बात-बेबात पर हड़ताल का औचित्य नहीं समझ पा रहे हैं।

डेस्टिनेशन उत्तराखंड

आगामी सात और आठ अक्टूबर को देहरादून में होने जा रहे इनवेस्टर्स समिट की तैयारियां जोरों पर हैं। सरकार ने इस समिट के माध्यम से चालीस हजार करोड़ रुपये के निवेश का टारगेट रखा है। लक्ष्य हासिल करने के लिए मुख्यमंत्री समेत तमाम मंत्री व आला अफसर देश-दुनिया एक कर रहे हैं। इसके लिए देश के बड़े औद्योगिक घरानों से मुलाकातों का दौर जारी है। दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद जैसे औद्योगिक शहरों में रोड शो आयोजित किए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री की टीम विदेशों में संपर्क अभियान चला कर लौट आई है और अब स्वयं मुख्यमंत्री सिंगापुर में इन्वेस्टर्स समिट में हिस्सा ले रहे हैं। यदि सरकार लक्ष्य हासिल करने में कामयाब रही तो प्रदेश का औद्योगिक विकास तो गति पकड़ेगा ही, रोजगार के मौकों में भी खासा इजाफा होगा। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के साथ अपना नाम जुड़वाने में सफल होंगे, जो अपने मुख्यमंत्रित्व काल में प्रदेश में अच्छा निवेश कराने में सफल रहे थे।

मौसम का कहर

मानसून का कहर अभी थमने का नाम नहीं ले रहा है। गत पखवाड़े लगभग 25 जिंदगियां मानसून की भेंट चढ़ गईं। इसके अलावा पहाड़ समेत मैदानी क्षेत्रों में सड़कों को बारिश बहा ले गई, जबकि कई मकान ध्वस्त हो गए। प्रदेश में अब बीमारियों का संक्रमण हो रहा है। नैनीताल की प्रसिद्ध माल रोड कई जगह झील में समा रही है। विशेषज्ञ इसके ट्रीटमेंट पर गंभीरता से काम करने की सलाह दे रहे हैं। 130 मीटर दीवार खड़ी करने के लिए 40 करोड़ रुपये की शीघ्र जरूरत है। सरकार के सामने मानसून के बाद जनजीवन पटरी पर लाने की बड़ी चुनौती है, उधर विपक्षी दल मानसून के कहर को मौके के रूप में भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

मिलेगी 300 मेगावाट बिजली

हाल में दिल्ली में छह राज्यों ने लखवाड़ बहुद्देश्यीय परियोजना के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली इस परियोजना में सहभागी बन गए हैं। परियोजना से जहां पांच राज्यों को पानी उपलब्ध होगा, वहीं उत्तराखंड को परियोजना से पैदा होने वाली तीन सौ मेगावाट बिजली मिलेगी। भविष्य के उत्तराखंड के लिए यह एक बड़ी सौगात के रूप में सामने आई है। केंद्र द्वारा सहायतित इस योजना से प्रदेश को सही मायने में ऊर्जा मिलने वाली है।

(राज्य संपादक, उत्तराखंड)