लखनऊ, सद्गुरु शरण। उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर स्वाभाविक रूप से सभी दलों की नजरें टिकी हैं। 2024 लोकसभा चुनाव से करीब दो साल पहले यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे भविष्य की तस्वीर की झलक भी दिखाएंगे। इन दोनों चुनावों से पहले इसी साल अंतिम तिमाही में यूपी में पंचायत चुनाव के बहाने पक्ष-विपक्ष के बीच बेहद अहम रस्साकसी होगी जिसे मिशन 2022 के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

वजह यह है कि इस चुनाव में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की प्राथमिक इकाइयों, यानी ग्राम और नगर पंचायतों के लिए सीधे मतदाताओं के वोट के जरिये चुनाव होंगे। इसमें दो राय नहीं कि ग्राम पंचायत और विधानसभा चुनाव की मनोदशा, मुद्दों और नतीजों के संकेतों में फर्क होता है, इसके बावजूद इस चुनाव के बहाने सभी राजनीतिक दलों, खासकर भाजपा और सपा नेतृत्व को ग्राम स्तर तक मतदाताओं के मूड और कार्यकर्ताओं के मनोबल की हांडी के चावल की तरह थाह लेने का अवसर मिलेगा। यही वजह है कि इस चुनाव को लेकर ये दोनों पार्टियां खासी संजीदा दिख रही हैं और होमवर्क शुरू कर चुकी हैं।

प्रदेश के सियासी गलियारों में इन चुनावों की दस्तक साफ सुनी जा रही है यद्यपि चुनाव अभी कई महीने दूर हैं। पंचायत चुनाव राजनीतिक दलों के सिंबल पर नहीं होते, इसके बावजूद ग्राम या नगर इकाई के स्तर पर समर्थकों की पालाबंदी स्पष्ट रहती है। इसमें शक नहीं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने ग्रामीणों और किसानों के कल्याण के लिए काफी काम किया है। धान और गेहूं खरीद की मुकम्मल व्यवस्था, अच्छी बिजली आपूर्ति, प्रत्येक रविवार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर जन आरोग्य मेलों का आयोजन और बुंदेलखंड एवं पूर्वांचल एक्सप्रेसवे जैसी चर्चित उपलब्धियों पर गर्वित सरकार के लिए यह समझना मुमकिन होगा कि इस बारे में आम आदमी की क्या धारणा है?

इसी तरह मुख्य विपक्षी दल सपा भी यह थाह ले सकेगी कि कानून व्यवस्था, सीएए विरोध, लावारिस पशुओं की समस्या और बेरोजगारी जैसे मुद्दे सिर्फ सियासी उठापटक तक सीमित हैं या आम लोग भी इन्हें मुद्दा मानते हैं? प्रदेश की राजनीति में गृहप्रवेश करने को आतुर दिख रहीं दो अन्य पार्टियों, आम आदमी पार्टी और भीम सेना के लिए भी पंचायत चुनाव यह आकलन करने का अवसर होगा कि विपक्ष की बड़ी पार्टियां उन्हें कितना भाव देने को तैयार हैं। जहां तक बसपा की बात है, उसकी रुचि मुख्य चुनावों में रहती है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि पंचायत चुनाव में बसपा क्या भूमिका धारण करेगी? यदि बसपा चुनाव में शिरकत नहीं करती है तो उसके वोटबैंक का रुझान पंचायत चुनाव को दिलचस्प बना सकता है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि नवंबर तक संभावित पंचायत चुनाव सभी पार्टियों के लिए आईना बनकर आ रहा है जिसमें इनको अपनी शक्ल के साथ 2022 की भी धुंधली ही सही, तस्वीर दिखेगी।

स्वतंत्रदेव सिंह का धर्मसंकट : स्थापित सत्य है कि हर तरक्की अपनी कीमत वसूलती है। आजकल की बात करें तो यह बात यूपी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रेदव सिंह से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। निर्विवाद छवि वाले स्वतंत्र अपने संगठन कौशल और कार्यकर्ता प्रेम के लिए पहचाने जाते हैं, पर प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद वह अब तक अपनी टीम नहीं बना सके हैं। जाहिर है, वह निवर्तमान अध्यक्ष की टीम की कप्तानी कर रह हैं। उनकी टीम न बन पाने से सर्वाधिक बेचैनी उन कार्यकर्ताओं में है जो टीम में शामिल होने के आकांक्षी हैं।

अध्यक्ष जी लगभग रोज किसी न किसी जिले के दौरे पर रहते हैं। संभव है, संगठन में पद पाने के दावेदारों से बचने के लिए वह दौरे कर रहे हों, पर इस मामले में अभ्यर्थी उनसे भी आगे दिख रहे हैं। अध्यक्ष जी सुबह जगते हैं तो दूरदराज जिलों में कई कार्यकर्ता दरवाजे के बाहर इंतजार करते मिलते हैं। किसी रात लखनऊ में रुक गए तो कहना ही क्या। सबको भरोसा चाहिए कि उनका नाम लिस्ट में है। अध्यक्ष अजीब धर्मसंकट में हैं। यह कठिनाई तब तक जारी रहेगी, जब तक लिस्ट सार्वजनिक नहीं हो जाती।

डिप्टी सीएम की अग्निपरीक्षा : डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा, जो शिक्षा मंत्री भी हैं, की इस बात के लिए चौतरफा सराहना हो रही है कि उन्होंने यूपी बोर्ड की परीक्षाएं निर्धारित कार्यक्रम के अनुरूप लगभग नकलमुक्त माहौल में संपन्न करवा दीं। परीक्षाकाल में वह रोज खुद किसी न किसी जिले में परीक्षा केंद्रों का आकस्मिक मुआयना करते रहे। उम्मीद है कि रिजल्ट भी तय कार्यक्रम के हिसाब से ही घोषित हो जाएगा। इस बड़ी उपलब्धि के बावजूद भाजपा के नियंता नकलमुक्त परीक्षा के राजनीतिक प्रभाव को लेकर चिंतित हैं।

1991-92 की तत्कालीन भाजपा सरकार के शिक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इसी तरह नकलमुक्त परीक्षा करवाई थी जिसका खामियाजा पार्टी को अगले चुनाव में भुगतना पड़ा था। यह बात लगभग तीन दशक पुरानी हो गई। इस दरम्यान सब कुछ बदल गया। इसके बावजूद पार्टी पूरी तरह निश्चिंत नहीं है। इसी साल पंचायत चुनाव भी हैं। पार्टी की नजर इस बात पर रहेगी कि डॉक्टर साहब की परीक्षा प्रणाली को पवित्र बनाने की सदाशयता उनके और पार्टी के लिए अग्निरीक्षा तो साबित नहीं हो रही?

[स्थानीय संपादक, लखनऊ]