डॉ. अश्विनी महाजन। हाल ही में नीति आयोग ने वर्ष 2020-21 के लिए स्थायी विकास लक्ष्यों (एसीडीजी) के संदर्भ में भारत के 36 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों की कार्य निष्पादन रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट के अनुसार जहां समस्त भारत के स्थायी विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के कुल अंक 2019 में 60 से बढ़कर 2020 में 66 तक पहुंच गए हैं, वहीं सभी राज्यों में यह वृद्धि कम या ज्यादा देखने को मिली है। एसडीजी के संदर्भ में शीर्ष पर 75 अंकों के साथ केरल है, जबकि सबसे नीचे 52 अंकों के साथ बिहार है। बिहार इन दो वर्षो में 48 से 52 अंकों तक ही पहुंचा, जबकि असम 49 से बढ़कर 57 अंकों तक पहुंचा। नीचे के पायदान के अन्य राज्यों में झारखंड 50 अंकों से 56 अंक, मध्य प्रदेश 52 अंकों से 62 अंक, राजस्थान 50 अंकों से 60 अंक तक पहुंचे। बंगाल भी 56 अंकों से बढ़कर 62 अंकों तक ही पहुंचा। उत्तर पूर्व राज्यों में मेघालय 52 अंकों से 62 अंकों तक पहुंचा, जबकि अरुणाचल प्रदेश 51 अंकों से 60 अंकों तक पहुंचा। वहीं नगालैंड 51 अंकों से 61 अंकों तक और मणिपुर 59 अंकों से 64 अंकों तक पहुंचा।

हालांकि इस बीच कुछ राज्य आकांक्षी से निष्पादक की श्रेणी में आ गए और कुछ अन्य पिछड़े राज्यों का भी कार्य निष्पादन ठीक रहा है, लेकिन अभी भी उनका स्तर बेहतर राज्यों से काफी नीचे है। अभी भी सात राज्य 60 या उससे कम अंक ही प्राप्त कर पाए हैं। छह राज्यों के अंक 60 से अधिक लेकिन 65 से कम हैं। 65 से ज्यादा अंक प्राप्त करने वाले राज्यों को फ्रंट रनर (यानी अगड़े माना गया है)। अभी भी 13 राज्य ऐसे हैं, जिन्हें अगड़े की श्रेणी में आना बाकी है। प्रश्न यह है कि हमारे सभी राज्य अगड़े की श्रेणी में कैसे आ सकते हैं।

देखा जाए तो हमारा देश लंबे समय से क्षेत्रीय आर्थिक असमानताओं से जूझ रहा है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के फार्मूले के आधार पर विभिन्न देशों की रैंकिंग उनके मानव विकास के स्तर के आधार पर की जाती है। एसडीजी में कई कारकों को शामिल किया गया है जो मानव विकास सूचकांक में शामिल नहीं थे। मानव विकास सूचकांक में प्रतिव्यक्ति आय, स्वास्थ्य के स्तर और शिक्षा के स्तर को उनके संकेतकों के आधार पर शामिल किया गया था। वर्तमान में एसडीजी में 17 लक्ष्यों को शामिल किया गया है। इन लक्ष्यों में गरीबी उन्मूलन, शून्य भुखमरी, अच्छा स्वास्थ्य, स्तरीय शिक्षा, लिंग समानता, स्वच्छ जल और सफाई, सस्ती व स्वच्छ ऊर्जा, अच्छा काम और ग्रोथ, समानता, शांति और न्याय हेतु सबल संस्थाएं, जिम्मेदारी पूर्ण उपभोग एवं उत्पादन इत्यादि शामिल हैं। इन लक्ष्यों के कार्य निष्पादन का आकलन करने के लिए 117 संकेतकों का इस्तेमाल किया जाता है।

हमारे देश के पिछड़े राज्यों में अधिक जनसंख्या वाले राज्य बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा आदि शामिल थे। कई बार इन राज्यों (बिहार, मध्य प्रदेश, असम, राजस्थान, उत्तर प्रदेश) के नामों को जोड़कर ‘बीमारू’ राज्य भी कहा जाता रहा है। यदि इन ‘बीमारू’ राज्यों के पिछले तीन दशकों का आकलन करें तो वर्ष 1990-91 से 2004-05 के बीच बिहार की ग्रोथ रेट माइनस एक प्रतिशत, मध्य प्रदेश की 1.78 प्रतिशत, असम की 3.18 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश की 2.79 प्रतिशत ही रही। लेकिन राजस्थान की ग्रोथ 5.11 प्रतिशत और ओडिशा की 5.52 प्रतिशत रही। अगड़े राज्यों की ग्रोथ इस दौरान 6.03 प्रतिशत, जबकि पिछड़े राज्यों की मात्र 2.7 प्रतिशत ही रही। लेकिन 2004-05 से 2019-20 के दौरान पिछड़े राज्यों की ग्रोथ सम्मानजनक रही। बिहार में जीडीपी ग्रोथ 8.6 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 7.9, उत्तर प्रदेश में 6.5, राजस्थान में 6.9, ओडिशा में 5.9 और झारखंड में 6.7 प्रतिशत की दर से दर्ज की गई। यह भी सच है कि चूंकि इन राज्यों में प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है, इसलिए तेज आíथक संवृद्धि के बाद भी प्रतिव्यक्ति आय की दृष्टि से ये राज्य अभी भी बहुत पीछे हैं, जिस कारण वहां के लोगों में गरीबी, भूखमरी अधिक है।

एसडीजी के संदर्भ में उत्तर प्रदेश दो ही वर्षो में 42 अंकों से बढ़कर 60 तक पहुंचा। ऐसा इसलिए है कि यहां विद्युतीकरण शत प्रतिशत और एलपीजी कनेक्शन लगभग सभी परिवार को दिया जा चुका है। साथ ही बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण उत्तर प्रदेश के अंक 25 से बढ़कर 60 हो गए हैं। स्वच्छ जल एवं सफाई व्यवस्था में भी उत्तर प्रदेश के अंक दो वर्षो में 55 से 85 पहुंच गए हैं। शांति, न्याय और सबल संस्थाओं के संदर्भ में भी इस राज्य के अंक 61 से बढ़कर 79 तक पहुंच गए हैं। देखा जाए तो चाहे 17 कारकों में से उत्तर प्रदेश का कार्यनिष्पादन सिर्फ पांच कारकों में ही उल्लेखनीय रूप से बेहतर हुआ है, लेकिन इन्हीं कारकों के कारण इस राज्य को संयुक्त अंकों में 11 अंकों की बढ़त हासिल हुई है। यानी अन्य कारकों में भी यदि बेहतरी होती है तो उत्तर प्रदेश अगड़े राज्यों में आ सकता है। गौरतलब है कि जैसे-जैसे प्रतिव्यक्ति आय बढ़ती है, सरकार का राजस्व भी बढ़ता है, जिसके चलते शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाओं में बेहतरी संभव है।

[प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय]