नई दिल्‍ली (जागरण स्‍पेशल)। पुलिस का बुनियादा ढांचा सुधारने के लिए अफसर हमेशा कसरत करते रहे हैं। खासकर तकनीक के बढ़ते दखल ने पुलिस की भी कई प्राथमिकताएं बदली हैं। यही वजह है कि मौजूदा समय में कई वरिष्ठ अधिकारी इसके नए फॉमरूले खोजने में अपनी ऊर्जा लगा रहे हैं। डाटा एनालिसिस से लेकर साइबर क्राइम की बढ़ती चुनौती से निपटने के लिए पुलिस ने अपने नए तकनीकी मित्रों से हाथ मिलाए हैं। बीते दिनों पुलिस ने कई एमओयू साइन किए, जो खासे चर्चा में हैं। पुलिस प्रबंधन में यह नया मैनेजमेंट है, लेकिन पुरानी कार्यशैली के पैरोकारों से नए वालों की टकराहट भी होती रहती है। ऐसे ही जब एक युवा ने अपनी पूरी नौकरी कर चुके एक बड़े दरोगाजी से पुलिस की नई कार्यशैली पर बात छेड़ी तो वह तुनक ही उठे-‘बदमाशों को पकड़ने के लिए क्या कोई टैबलेट बना देगा। हमारे जमाने में सूत से सूत मिलाकर पकड़े जाते थे बदमाश। अब तो कोई तफ्तीश की एबीसीडी भी नहीं जानता। बस ले-देकर मोबाइल का सहारा है।’ दूसरे युवा पुलिसकर्मी ने भी तंजिया पलटवार किया कि टैबलेट का सुझाव अच्छा है। प्रयोगशाला में इस पर भी काम चल रहा है और जल्द ही एमओयू करेंगे।

कुर्सी वाले मंत्री 

सूबे के एक सीनियर मंत्री के साथ पिछले दिनों एक ही मौके पर कुर्सी के एक नहीं, दो-दो किस्से ऐसे हुए कि लोगों ने खूब चटखारे लिए। हुआ यूं कि देश के महामहिम को सम्मानित करने के लिए मंच पर जब सब खड़े थे तो बुजुर्ग मंत्री को कुर्सी से उठने में कुछ देर हो गई। इतने भर में लोगों ने फोटो खींच कर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। अभी उन्हें इसका पूरी तरह पता भी नहीं चल पाया था कि इसी आयोजन के दूसरे सभागार में भी उनके साथ कुर्सी को लेकर दिलचस्प वाकया हो गया। वह जब खड़े होकर माइक से बोल रहे थे, उसी बीच संचालिका ने वहीं मौजूद कर्मचारी को मंच पर बैठे लोगों के साथ एक और कुर्सी लगाने का इशारा किया। चूंकि संचालक और मंच पर लगी कुर्सियों के बीच मंत्री भाषण दे रहे थे, इसलिए कर्मचारी को लगा कि उससे मंत्री के लिए कुर्सी रखने को कहा जा रहा है। उसने कुर्सी ले जाकर भाषण दे रहे मंत्री के ठीक पीछे रख दी। अब तो मंत्री भी खीज गए, उन्होंने आंखें तरेर कर संचालिका को देखा। उसने मंत्री के पीछे से कुर्सी हटा कर मंच पर रखवा कर तुरंत गलती तो सुधार ली, लेकिन वहां लोग मौजूद मुस्कुराए बिना नहीं रह सके।

किसका फरमान मानें 

पंजा छाप पार्टी का आंतरिक सिस्टम जितना सुधारने की कोशिश करो उतना बिगड़ता जा रहा है। पार्टी को पटरी पर लाने और एकजुटता का संदेश देने के लिए पुरानों को किनारे करके नई भर्ती चालू की गई, परंतु हालात जस के तस है। नेताओं के बीच आपसी तालमेल न होने का सवाल अब और अधिक बड़ा होता दिख रहा है। ताजा नमूना देवरिया कांड पर देखने को मिला। दिल्ली से हुकुम जारी हुआ कि नौ अगस्त को सभी जिला व शहर इकाइयों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जाएगा, परंतु करुणानिधि के निधन पर शोक घोषित होने पर कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया। दिल्ली से कार्यक्रम स्थगन का आदेश जारी हुआ, परंतु परीक्षा पास कराके गठित की गई मीडिया टीम इससे बेखबर रही। इसका नतीजा यह रहा कि आठ अगस्त को एक बार फिर से नौ अगस्त को धरना प्रदर्शन किए जाने का बयान जारी कर दिया गया। जिलों के कार्यकर्ता दुविधा में थे कि दिल्ली का फरमान माना जाए या लखनऊ के मीडिया विभाग का। किसी तरह असमंजस दूर हुआ कि शोक प्रस्ताव को ही तरजीह दी जाए। फिर भी कुछ जगह लोग धरने पर बैठ ही गए।

किसका अंत्योदय

सूबे के सभी जिलों के विशिष्ट उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए राजधानी में आयोजित जलसे में देश के प्रथम नागरिक के सामने लघु उद्योगों वाले महकमे के मंत्री जोश में आ गए। इतना कि अपनी तकरीर में कह गए कि प्रदेश में कुटीर उद्योगों की तरक्की से ही महात्मा गांधी के अंत्योदय का सपना साकार होगा। फिर उन्हें आरएसएस वाले पंडितजी की याद आई। साथ ही जेहन में यह भी ख्याल आया कि पंडित जी के अंत्योदय के लक्ष्य को तो वह राष्ट्रपिता के खाते में दर्ज करा चुके हैं। तुरंत उन्होंने लाइन बदली और अंत्योदय को वापस पंडितजी के हवाले किया। इस पैंतरा बदल पर अब महकमे में चर्चा हो रही है कि आरएसएस के पुराने कार्यकर्ता रहे मंत्रीजी को यह गफलत हो कैसे गई। वैसे चुटकी लेने वाले यह भी कह रहे हैं कि शायद यह बापू की 150वीं जयंती को मनाने के लिए बीते दिनों बुलाई गई बैठक का हैंगओवर था।