नई दिल्ली, कैलाश बिश्नोई। दिल्ली के अनेक इलाकों में बड़ी संख्या में अनधिकृत कॉलोनियां बसी हुई हैं जिन्हें अधिकृत करने की मांग दशकों से हो रही है। इन कॉलोनियों को नियमित करने से यहां रहने वालों को बड़ी राहत मिल सकती है। इसके लिए लोकसभा से संबंधित विधेयक को पारित कर दिया गया है। हालांकि इस विधेयक के समय को लेकर अनेक दलों की ओर से इसे राजनीति से प्रेरित कदम जरूर बताया जा रहा है, क्योंकि यह कदम तब उठाया गया है जब महज दो महीने बाद दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने हैं।

दिल्ली की अवैध कॉलोनियों को नियमित करने की कवायद

उल्लेखनीय है कि बीती सदी के आठवें दशक में केंद्र सरकार ने दिल्ली की अवैध कॉलोनियों को नियमित करने की कवायद की थी। हालांकि उस वक्त अनधिकृत कॉलोनियों की संख्या 607 के आसपास ही थी जो संख्या बढ़कर 1,797 तक पहुंच गई है। देखा जाए तो कांग्रेस ने इस मामले पर लंबी राजनीति की है और यदि यह कहा जाए कि उसने लोगों को भ्रमित भी किया तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव से चंद माह पहले तत्कालीन शीला दीक्षित सरकार द्वारा इन कॉलोनियों को नियमित करने संबंधी प्रोविजनल सर्टिफिकेट भी बांटे गए थे, लेकिन जमीनी तौर पर इन कॉलोनियों के लोगों को मालिकाना हक नहीं मिल पाया।

1993 के बाद एक भी कॉलोनी नियमित नहीं हुई

वर्ष 2012 में विधानसभा चुनावों से महज साल भर पहले शीला दीक्षित ने फिर से वादा किया कि जिन कॉलोनियों को अस्थायी नियमन प्रमाण पत्र मिल गए थे, उन्हें स्थायी रूप से नियमित किया जाएगा। उसके बाद दिल्ली प्रदेश की सत्ता में आने वाली आम आदमी पार्टी ने 2015 में विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने का भी वादा किया था। इस तरह कई चुनाव आए-गए और हर बार चुनाव के ही मौके पर कॉलोनियों को नियमित करने की घोषणा हुई, पर वास्तविकता यह है कि 1993 के बाद एक भी कॉलोनी नियमित नहीं हुई है।

दशकों से रहा बड़ा चुनावी मुद्दा

अनधिकृत कॉलोनियों का नियमितीकरण व्यापक रूप से बहस वाला विषय रहा है और कई दशकों से दिल्ली में एक बड़ा चुनावी मुद्दा है। यहां रहने वाले लगभग 40 लाख लोगों को बड़ा वोट बैंक माना जाता है। दिल्ली के 70 विधानसभा क्षेत्रों में से लगभग आधे में अनधिकृत कॉलोनियां बनी हुई हैं, लेकिन कम से कम 30 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां इन कॉलोनी के निवासी चुनावी नतीजों को बड़े पैमाने पर प्रभावित करते हैं। यही वजह है कि दिल्ली में जब भी विधानसभा चुनाव आते हैं, अवैध कॉलोनियों को नियमित करने का मामला सभी प्रमुख राजनीतिक दल उठाते रहे हैं। केंद्र सरकार भी वोट बैंक के चलते इस मसले पर मदद का आश्वासन देती रही है। लेकिन इस बार केंद्र सरकार ने सदन में विधेयक पेश करके ठोस कदम जरूर उठाया है।

असल में केंद्र के हस्तक्षेप के बिना इन कॉलोनियों को किसी हाल में नियमित नहीं किया जा सकता था। कारण यह कि अधिकतर कॉलोनियां डीडीए, भारतीय पुरातत्व विभाग, वन विभाग की जमीन पर बसी हैं। इनको तभी मालिकाना हक मिल सकता है, जब केंद्र कानून में बदलाव करे। दिल्ली सरकार स्वतंत्र रूप से इन कॉलोनियों को नियमित नहीं कर सकती। उसके पास जमीन से जुड़े अधिकार ही नहीं हैं। ये वो कॉलोनियां हैं, जो पिछले करीब चार दशकों से दिल्ली की नियामक संस्थाओं की अनुमति के बगैर शहर के अलग अलग हिस्सों में बसती आई हैं। ये कॉलोनियां अनधिकृत रूप से शहर के मास्टर प्लान का उल्लंघन करते हुए बनी हैं।

मूलभूत सुविधाओं से वंचित

दिल्ली की अधिकांश अनधिकृत कॉलोनियों में आधुनिक तो दूर की बात मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल रहीं। बुनियादी सुविधाओं के अभाव में यहां के निवासियों को कई तरह की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली में लगभग 40 लाख नागरिक इन कॉलोनियों में अपना गुजर- बसर करते हैं। विकास के समुचित कार्य इसलिए नहीं हुए, क्योंकि कॉलोनियां अवैध हैं। सड़कसीवर जैसी बुनियादी सुविधाएं तक सैकड़ों कॉलोनियों में नहीं हैं। हालांकि उन्हें नियमित करने से बड़ी चुनौती यह है कि उनमें सभी प्रकार की नागरिक सुविधाएं पहुंचाने का इंतजाम हो।

झुग्गी बस्तियां बनी हुई हैं सिरदर्द

अनधिकृत कॉलोनियों में बनीं अवैध झुग्गियां भी यहां के निवासियों के लिए सिरदर्द बनी हुई हैं। दिल्ली सरकार के आंकड़ों के अनुसार विभिन्न इलाकों में करीब सात सौ एकड़ में झुग्गी बस्तियां हैं और इनमें लगभग 10 लाख लोग रहते हैं। दिल्ली में लगभग 90 प्रतिशत झुग्गियां अनियमित कॉलोनी के रूप में सरकारी जमीन पर है। इन कॉलोनियों में बने पार्क के अंदर जगह-जगह कूड़ा फैला रहता है। सैकड़ों कॉलोनियों में पार्क की सुविधा भी नहीं है। जहां पर छोटे-मोटे पार्क, हरित क्षेत्र आदि हैं भी तो वहां इनकी सही देखभाल नहीं हो पाती है। दिल्ली की इन अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले ज्यादातर निम्न मध्यमवर्गीय हैं। हालांकि इन कॉलोनियां में पहले बेहद गरीब श्रेणी के लोग ही रहते थे, लेकिन जैसे-जैसे इन कॉलोनी का विस्तार होता गया और बिल्डर आदि फ्लैट बनाकर बेचने लगे, तो निम्न मध्यवर्गीय श्रेणी के लोग भी बड़ी संख्या में बसने लगे।

आम आदमी को सबसे पहले चाहिए छत

वास्तविकता यह है कि आम आदमी को सबसे पहले छत चाहिए और वह जब उसे सस्ते दामों पर मिल गई तो उसे इस बात की परवाह नहीं थी कि वह सरकारी जमीन पर बनी कॉलोनी है या निजी क्षेत्र पर है, वन विभाग की है या फिर उसकी पक्की रजिस्ट्री होती है या नहीं। बहुतसी कॉलोनियां सरकारी जमीन पर बनी हुई हैं और बहुत कॉलोनियां ऐसी हैं जहां खेती होती थी, लेकिन कॉलोनाइजरों ने किसानों से जमीन खरीदकर वहां कॉलोनियां बसा दीं। न तो वहां सड़क, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल या कम्युनिटी सेंटर के लिए जगह छोड़ी गई और ना ही किसी और तरह का योजनाबद्ध विकास हुआ।

मूलभूत सुविधाओं से महरूम

राजधानी दिल्ली में लोग इन अनधिकृत कॉलोनियों में न जाने कब से रह रहे हैं, लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं। इन कॉलोनियों के वैध होते ही शहर की तस्वीर बदल जाने की उम्मीद जगी है। अवैध कॉलोनियों में रह रहे लाखों लोग जो अभी तक मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं, उन्हें भी वैध कॉलोनियों जैसी सुविधाएं मिलनी शुरू हो जाएगी। पानी, सड़क, सीवर, पार्क समेत सभी सुविधाओं की व्यवस्था हो जाएगी। कॉलोनियों के आस-पास कम्युनिटी सेंटर और हेल्थ क्लीनिक आदि की सुविधा भी मिलेगी। भूमि पंजीकरण तथा भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी और धोखाधड़ी एवं जालसाजी की गुंजाइश नहीं रहेगी।

अनधिकृत कॉलोनियों में अचल संपत्ति पर अब तक लोन नहीं

अनियमित कॉलोनियों में रहने वाले लोगों की अचल संपत्ति पर अब तक लोन नहीं मिलता है। यदि कोई इन कॉलोनियों में फ्लैट भी खरीदने जाता है तो उसे किसी भी बैंक की ओर से लोन नहीं प्रदान किया जाता है। यदि किसी को कोई प्रॉपर्टी खरीदनी भी होती है तो उसे एक बार में ही सारी रकम देनी होती है। इन कॉलोनियों में रहने वाले किसी शख्स को मुसीबत के वक्त या किसी जरूरी कार्य के लिए लोन की जरूरत होती है तो वह चाहकर भी अपनी संपत्ति पर लोन नहीं ले सकता। अब उन्हें इस समस्या से निजात मिल सकती है।

हालांकि यह भी सच है कि इन कॉलोनियों का अनियोजित विकास ऐसा है कि वहां आधुनिक सीवर या अन्य सुविधाओं की व्यवस्था करना आसान नहीं होगा। नियमितीकरण से संपत्ति की कीमतें जरूर बढ़ सकती हैं, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती दिल्ली महानगर में बेहतर बुनियादी ढांचे को प्रदान करने में निहित है। आशा की जानी चाहिए कि कॉलोनियों के नियमित हो जाने के बाद बेहतर बुनियादी पहुंच सुनिश्चित करके दिल्ली की तस्वीर बदलने की कोशिश भी की जाएगी, ताकि कॉलोनियों में रहने वाले लोगों का जीवन सुगम हो सके।

पीएम उदय योजना से कॉलोनियों का नियमितीकरण

दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने हाल ही में कच्ची कॉलोनियों को नियमित करने के लिए अधिसूचना जारी की है। दिल्ली की इन कॉलोनियों को प्रधानमंत्री अनधिकृत कॉलोनी आवास अधिकार योजना यानी पीएम उदय योजना के तहत नियमित किया जा रहा है। योजना के तहत दिल्ली के अनधिकृत कॉलोनियों के निवासियों को भू-स्वामित्व का अधिकार देने के लिए विधेयक में इन अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए उन्हें पावर ऑफ अटॉर्नी, विक्रय करार, वसीयत, कब्जा पत्र और अन्य ऐसे दस्तावेजों के आधार पर मालिकाना हक देने की बात कही गई है जो ऐसी संपत्तियों के लिए खरीद का प्रमाण हैं। इसके साथ ही ऐसी कॉलोनियों के विकास, वहां मौजूद अवसंरचना और जन सुविधाओं को बेहतर बनाने का प्रावधान भी विधेयक में किया गया है।

अनधिकृत कॉलोनियों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है। पहली श्रेणी में सरकारी और ग्रामसभा की भूमि पर बसी कॉलोनियां होंगी, जबकि दूसरी श्रेणी में निजी जमीन पर बसी कॉलोनियां। ग्रामसभा की भूमि पर बसी कॉलोनियों को शहरीकृत गांवों की तर्ज पर विकसित किया जाएगा। अहम बात यह है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ही इन कॉलोनियों को नियमित करने की प्रक्रिया पूरी करेगा। साथ ही इनमें विकास के मानक भी तय करेगा। खाली जमीन चिह्नित कर वहां पार्क तथा सामुदायिक भवन जैसी सुविधाएं भी मुहैया कराएगा।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 1,731 अनधिकृत कॉलोनियों की डिजिटल मैपिंग का काम 31 दिसंबर तक पूरा कर लिया जाएगा। एक पोर्टल इस संबंध में प्रभाव में आ चुका है जिसमें सारे मैप डाले जाएंगे। करीब 600 मैप तैयार भी हो चुके हैं। इसके पश्चात आवासीय कल्याण संघों (आरडब्ल्यूए) को इन पर प्रतिक्रिया देने के लिए 15 दिन का समय मिलेगा। तत्पश्चात स्वामित्व अधिकारों से वंचित लोग इस संबंध में बनाए गए एक अन्य पोर्टल पर रजिस्ट्री के लिए आवेदन कर सकेंगे।

कैसे बसीं अनियमित कॉलोनियां

दिल्ली की ज्यादातर अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले लोग पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार के ही रहने वाले हैं। ये दोनों राज्य आर्थिक रूप से पिछड़े हैं। इस पिछड़ेपन के अनेक आयामों में बेरोजगारी भी एक प्रमुख पहलू है। रोजगार की तलाश में इन दोनों राज्यों के लोग दशकों से दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों का रुख करते आए हैं। राजधानी दिल्ली में ये बदलाव 1980 के बाद से आना शुरू हुआ था। दरअसल वर्ष 1980 के बाद से नौकरी और शिक्षा की तलाश में बड़ी संख्या में लोग बिहार और यूपी से दिल्ली का रुख करने लगे और तभी से दिल्ली में उनके दबदबे की बुनियाद पड़नी शुरू हुई। प्रारंभ में तो यहां पंजाबियों का ही दबदबा बना रहा, लेकिन दिल्ली में जैसे-जैसे यूपी, बिहार से आए लोगों की आबादी बढ़ती गई, उनका राजनीतिक रसूख भी बढ़ता गया।

राजधानी में रहते हुए जब इनके लिए इस महानगर की मुख्य कॉलोनियों में मकानों के किराए महंगे हो गए तो ये बाशिंदे दिल्ली के ग्रामीण इलाकों की तरफ रहने चले गए। दिल्ली में 300 से भी अधिक गांव हैं जिनमें से कई शहरी कॉलोनियों के साथ भी बसे हुए हैं और कई शहर की बाहरी सीमा पर। इनमें शहरी कॉलोनियों जैसी सुविधाएं नहीं मिलतीं थीं, लेकिन इनमें रहने का खर्च महानगर की दूसरी कॉलोनियों से कम था। यही वजह है कि धीरे-धीरे देश के कई राज्यों से आए प्रवासी यहां बसने लगे और पिछले चार दशक के भीतर 1,731 से अधिक अनधिकृत कालोनियां बस गईं।

दिल्ली की अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले लोगों को संपत्ति का मालिकाना हक प्रदान करने के लिए लोकसभा ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (अप्राधिकृत कॉलोनी निवासी संपत्ति अधिकार मान्यता) विधेयक 2019 को पारित कर दिया है। इस विधेयक के कानूनी रूप लेने के बाद दिल्ली की 1,731 अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले 40 लाख से ज्यादा लोग लाभान्वित होंगे। यह विधेयक राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आम लोगों के लिए स्थाई आवास और गुणवत्तापूर्ण जीवन को सक्षम करने की दिशा में एक बहुत ही जरूरी कदम है।

[अध्येता, दिल्ली विश्वविद्यालय]

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