[ सुशील पंडित ]: अनुच्छेद 370 और 35ए हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में बीते शनिवार को हुए जिला विकास परिषद (डीडीसी) के पहले चरण के चुनाव में 51.76 फीसद मतदान हुआ। आठ चरणों में होने वाली चुनावी प्रक्रिया 19 दिसंबर तक चलेगी। इसका परिणाम 22 दिसंबर को घोषित होगा। इसके नतीजे काफी हद तक प्रदेश के भविष्य की रूपरेखा तय करेंगे। इस बात को यहीं छोड़ अब थोड़ा इतिहास में चलते हैं। एक थे गोपादित्य। 2400 साल पहले कश्मीर के राजा थे। जिस पर्वत शिखर पर उन्होंने एक मंदिर बनवाया, वह उसी श्रीनगर के बीचोंबीच है जिसे गोपादित्य के डेढ़ सौ वर्ष बाद सम्राट अशोक ने बसाया था। उसे शंकराचार्य पर्वत कहते हैं। वितस्ता (प्रचलित नाम झेलम) के किनारे खडे़ इस पर्वत की तलहटी पर गोपादित्य ने अर्चकों और ब्राह्मणों के रहने के लिए भूमि दी जिसे गोपा-अग्रहार कहा गया। गुपकार उसी गोपा-अग्रहार का अपभ्रंश है। आजकल यहां घाटी की राजनीति के कुलीन रहते हैं। एक पंक्ति से बंगले खड़े हैं। फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, मोहम्मद यूसुफ तारिगामी के साथ-साथ भाजपा के खालिद जहांगीर भी अब वहीं पहुंच गए हैं।

घाटी की पूरी राजनीति अलगाववादियों के शिकंजे में 

गुपकार गठजोड़ अब एक औपचारिक गठबंधन बन गया है। आज घाटी की पूरी राजनीति अलगाववादी शिकंजे में है। घाटी के लगभग सभी प्रमुख नेता सभी पार्टियां घूम चुके हैं। मुफ्ती मोहम्मद सईद तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) और कांग्रेस का रिश्ता शेख अब्दुल्ला और नेहरू के रिश्तों जैसा ही रहा। कभी नरम तो कभी गरम। मुफ्ती जब कांग्रेस से टूटे तो करीब दस साल तक पहले वीपी सिंह के साथ और फिर जनता दल के घटकों में भटके। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) बनवाकर दे दी। उन्होंने सोचा था कि इससे नेकां का क्षेत्रीय एकाधिकार टूटेगा और वहां लोकतंत्र इसी मुख्यधारा की स्पर्धा से सिरे चढ़ेगा, पर हुआ उल्टा। दोनों दल अलगाव की स्पर्धा में जुट गए। विडंबना यह थी कि दिल्ली में बैठे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार इसी बात पर इतराने लगे कि अब अगर मुख्यधारा के दल ही हुर्रियत का एजेंडा ले उडें़ तो फिर बेचारी हुर्रियत क्या करेगी? यह नहीं सोचा कि यदि मुख्यधारा ही अलगाववादी हो जाए तो फिर देश क्या करेगा?

नेकां और पीडीपी अलगाववादियों के प्रतिद्वंद्वी कम और मददगार अधिक थे

वास्तविकता यह थी कि नेकां और पीडीपी जैसे दल हुर्रियत सरीखे कश्मीर के अलगाववादियों के प्रतिद्वंद्वी कम और मददगार अधिक थे। केवल दिल्ली ही यह मुगालता पाले बैठी रही कि ये दल हुर्रियत की काट हैं। कई बार इन दलों के नेता खुलकर हुर्रियत नेताओं से सार्वजनिक रूप से भी मिले। गुपकार के घटक दल परस्पर विरोधी होते हुए भी हमेशा आपसी तालमेल में रहे हैं। भाजपा के साथ गठबंधन में रहते हुए भी महबूबा मुफ्ती कई बार फारूक अब्दुल्ला के पास आनन-फानन में पहुंच जाती थीं।

कांग्रेस ने चुनाव घोषणा पत्र में अनुच्छेद 370 को बचाने का वचन दिया

दो वर्ष पहले महबूबा मुफ्ती ने अपनी पार्टी की टूट टालने के लिए जब एकाएक सरकार बनाने का दावा तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक को फैक्स किया था, गुपकार गठबंधन के बीज तभी पड़ गए थे। उस दावे का आधार नेकां और कांग्रेस के समर्थन का आश्वासन था। उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनावों में नेकां और पीडीपी ने कांग्रेस के खिलाफ जम्मू, उधमपुर और लद्दाख में अपने प्रत्याशी नहीं उतारे। उद्देश्य साफ था कि भाजपा के विरुद्ध मुसलमान वोटों को बिखरने से रोका जाए और कांग्रेस को इसका लाभ मिले। बदले में पहली बार कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में अनुच्छेद 370 को बचाने का वचन दिया। यह एक अघोषित गठबंधन था।

‘पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन’

पिछले वर्ष चार अगस्त को कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों की अप्रत्याशित तैनाती और तीर्थ यात्रियों के साथ-साथ सैलानियों की भी तुरत-फुरत निकासी को देखते हुए फारूक अब्दुल्ला ने अपने गुपकार रोड स्थित निवास पर एक सर्वदलीय बैठक बुलाई। उस दिन एक प्रस्ताव पास कर यह घोषणा की गई कि यदि अनुच्छेद 370 या 35ए के साथ कोई फेरबदल किया गया तो इसे कश्मीर की जनता के विरुद्ध युद्ध की घोषणा माना जाएगा। वहां सभी उपस्थित प्रतिनिधि जम्मू-कश्मीर के स्थानीय दलों के थे, सिवाय माकपा और कांग्रेस के जो इसमें सम्मिलित होने वाले केवल दो राष्ट्रीय दल थे। यही ‘पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन’ कहलाया।

गुपकार नेताओं की नजरबंदी, फारूक गुपकार गठबंधन के सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुने गए

फिर अगले दिन पांच अगस्त को इन सबको नजरबंद कर लिया गया। कुछ महीनों बाद जब इन सबको छोड़ा गया तो इस गठबंधन ने पिछले साल की अपनी घोषणा का पुन: उल्लेख करते हुए उसमें अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। सभी ने 370 और 35ए के निरस्तीकरण को असंवैधानिक मानते हुए उन्हेंं पुन: बहाल कराने का संकल्प भी लिया। आने वाले विधानसभा चुनावों के बहिष्कार की भी घोषणा की गई। फारूक अब्दुल्ला इस गठबंधन के सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुने गए।

महबूबा ने कहा- तब तक तिरंगा नहीं उठाऊंगी, जब तक 370 बहाल न हो जाए

पिछले दिनों फारूक अब्दुल्ला ने एक साक्षात्कार में चीन की मदद से अनुच्छेद 370 की बहाली की उम्मीद जताई तो महबूबा ने कहा कि तब तक तिरंगा नहीं उठाऊंगी, जब तक 370 बहाल न हो जाए। अलगाववाद की परस्पर स्पर्धा का खेल जो इन दलों में अब तक इशारों-इशारों में चलता था, खुलकर सामने आ गया है।

खतरे को भांपकर कांग्रेस ने गुपकार घोषणा से किनारा कर लिया

कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को इसमें यह खतरा दिख रहा है कि कहीं शेष भारत में इसकी कीमत न चुकानी पड़ जाए। इसीलिए दिल्ली में प्रेसवार्ता करके कांग्रेस ने न केवल गुपकार घोषणा से किनारा कर लिया, लगे हाथ महबूबा की तिरंगे और अब्दुल्ला की चीन वाली टिप्पणी की भी आलोचना कर डाली, पर कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व अभी भी गुपकार गठबंधन में बना हुआ है।

जिला विकास परिषद का चुनाव लड़ रहा गुपकार गठबंधन को अमित शाह गुपकार गैंग कहने लगे

बहरहाल अपने पुराने रुख से पलटते हुए अब गुपकार गठबंधन भी जिला विकास परिषद का चुनाव लड़ रहा है, जिसे अमित शाह गुपकार गैंग कहने लगे हैं। अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद होने वाले पहले चुनाव में यदि घाटी में ‘गुपकार गैंग’ जीतता है तो उसे देश-विदेश में अलगाववाद पर लोकतंत्र की मुहर जैसा दिखाया जाना तय है। ऐसे में भाजपा द्वारा दी गई ‘स्थानीय निवासी’ जैसी रियायतें और नौकरियों में एकाधिकार जैसे निर्णय भी भाजपा को किरकिरी से बचा नहीं पाएंगे।

370 को हटाने के बाद भी उसके कुछ प्रावधान पिछले दरवाजे से वापस लाए गए

देखा जाए तो घाटी की यही त्रासदी रही है कि गंभीर आरोप लगने के बाद भी अब्दुल्ला और मुफ्ती जैसे नेता बिना शर्त रिहा कर दिए गए और 370 को हटाने के बाद भी उसके कुछ प्रावधान पिछले दरवाजे से वापस लाए गए। साफ दिखता है सरकार के पास या तो पूरा-पक्का इलाज करने वाला कलेजा नहीं है। या फिर पता ही नहीं है कि करना क्या है। शायद दोनों ही।

( लेखक कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ हैं )