[ नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री ]: आज हम अपने प्यारे बापू की 150वीं जयंती के आयोजनों का शुभारंभ कर रहे हैं। बापू आज भी विश्व में उन लाखों-करोड़ों लोगों के लिए आशा की एक किरण हैं जो समानता, सम्मान, समावेश और सशक्तीकरण से भरपूर जीवन जीना चाहते हैं। ऐसे विरले ही लोग होंगे जिन्होंने मानव समाज पर उनके जैसा गहरा प्रभाव छोड़ा हो। महात्मा गांधी ने भारत को सही अर्थों में सिद्धांत और व्यवहार से जोड़ा था। सरदार पटेल ने ठीक ही कहा था, ‘भारत जितनी विविधताओं से भरा कोई और देश नहीं है। यदि कोई ऐसा व्यक्ति था जिसने उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष के लिए सभी को एकजुट किया तो वह केवल महात्मा गांधी ही थे। बापू ने भविष्य का आकलन किया और स्थितियों को व्यापक संदर्भ में समझा। अंतिम सांस तक वह अपने सिद्धांतों को लेकर प्रतिबद्ध रहे।’

21वीं सदी में भी महात्मा गांधी के विचार उतने ही प्रासंगिक हैं। इन विचारों से कई मौजूदा समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। आज विश्व में जहां आतंकवाद, कट्टरपंथ, उग्रवाद और नफरत देशों और समुदायों को विभाजित कर रही है वहां शांति और अहिंसा के महात्मा गांधी के स्पष्ट आह्वान में मानवता को एकजुट करने की शक्ति है। ऐसे युग में जहां असमानताएं होना स्वाभाविक है, बापू का समानता और समावेशी विकास का सिद्धांत विकास के आखिरी पायदान पर रह रहे लाखों लोगों के लिए समृद्धि के एक नए युग का सूत्रपात कर सकता है।

वर्तमान दौर में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण की रक्षा का विषय चर्चा के केंद्र में है, जिसे गांधी जी के विचारों से सहारा मिल सकता है। एक सदी पहले वर्ष 1909 में ही गांधी जी ने मनुष्य की आवश्यकता और उसके लालच के बीच अंतर स्पष्ट कर दिया था। प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल के लिए उन्होंने संयम और करुणा का मंत्र अपनाने की सलाह दी। स्वयं उनका पालन करके उन्होंने अनुकरणीय मिसाल कायम की। अपना शौचालय वह स्वयं साफ करते थे और आसपास की स्वच्छता का खास ख्याल रखते थे। साथ ही यह भी सुनिश्चित करते थे कि पानी कम से कम बर्बाद हो। अहमदाबाद में उन्होंने इस बात पर विशेष ध्यान दिया कि दूषित पानी साबरमती के जल में न मिले। 

कुछ समय पहले महात्मा गांधी द्वारा लिखित एक सारगर्भित, समग्र और संक्षिप्त लेख ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। वर्ष 1941 में बापू ने ‘रचनात्मक कार्यक्रम : उसका अर्थ एवं स्थान’ नाम से एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने 1945 में तब बदलाव भी किए थे जब स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर एक नया उत्साह था। उसमें बापू ने विविध विषयों पर चर्चा की थी। इनमें ग्रामीण विकास, कृषि को सशक्त बनाने, साफ-सफाई को बढ़ावा देने, खादी को प्रोत्साहन देने, महिलाओं का सशक्तीकरण करने और आर्थिक समानता सहित अनेक विषय शामिल थे। मैं भारतवासियों से अनुरोध करूंगा कि वे गांधी जी के इस दस्तावेज को पढ़ें। यह प्रिंट के साथ ही इंटरनेट पर भी आसानी से उपलब्ध है। गांधी जी के सपनों का भारत बनाने के लिए हम इसे पथप्रदर्शक बनाएं। इसके तमाम विषय आज भी प्रासंगिक हैं और भारत सरकार ऐसे तमाम बिंदुओं पर काम कर रही है जिनकी चर्चा बापू ने सात दशक पहले की थी, लेकिन जो आज तक पूरे नहीं हुए।

गांधी जी के व्यक्तित्व के सबसे खूबसूरत आयामों में से एक बात यह थी कि उन्होंने प्रत्येक भारतीय को इस बात का अहसास दिलाया था कि वे भारत की स्वतंत्रता के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने अध्यापक, वकील, चिकित्सक, किसान, मजदूर, उद्यमी और अन्य वर्ग के लोगों में आत्मविश्वास की भावना भर दी थी कि वे जो कर रहे हैं उससे भारत के स्वाधीनता संग्राम में योगदान दे रहे हैं। इस संदर्भ में आज हमें उन्हीं कार्यों को अपनाने का संकल्प लेना होगा जिनके बारे में लगता है कि उनसे गांधी जी के सपनों के भारत को मूर्त रूप दिया जा सकता है। भोजन की बर्बादी को पूरी तरह बंद करने जैसी साधारण सी चीज से लेकर अहिंसा और अपनेपन की भावना को अपनाकर इसकी शुरुआत की जा सकती है।

आइए हम इस बात पर विचार करें कि हमारे क्रियाकलाप भावी पीढ़ियों के लिए कैसे एक स्वच्छ और हरित वातावरण बनाने में योगदान दे सकते हैं। करीब आठ दशक पहले जब प्रदूषण का खतरा इतना बड़ा नहीं था तब महात्मा गांधी ने साइकिल चलाना शुरू किया था। लोग याद करते हैं कि गांधी जी कैसे गुजरात विद्यापीठ से साबरमती आश्रम साइकिल से जाते थे। मैंने पढ़ा है कि गांधी जी के सबसे पहले विरोध प्रदर्शनों में वह घटना शामिल है जब उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में उन कानूनों का विरोध किया जो लोगों को साइकिल उपयोग से रोकते थे। क्या आज हम इस भावना को अपना सकते हैं?

यह त्योहारों का समय है और पूरे देश में लोग तमाम वस्तुएं खरीदेंगे। ऐसा करते समय हमें गांधी जी की एक बात को ध्यान में रखना चाहिए जो उन्होंने हमें ताबीज के रूप में दी थी। हमें इस पर विचार करना होगा कि हमारी गतिविधियां अन्य भारतीयों के जीवन में कैसे समृद्धि का दीपक जला सकती हैं। चाहे वे खादी के उत्पाद हों या उपहार की वस्तुएं या फिर खानपान का सामान, अगर हम साथी भारतीयों द्वारा उत्पादित इन वस्तुओं को खरीदेंगे तो यह निश्चित ही उनकी बड़ी मदद होगी। संभव है कि हमने उन्हें कभी देखा न हो और हो सकता है कि शेष जीवन में भी हम उनसे कभी न मिलें, लेकिन बापू को अवश्य ही इस पर गर्व होगा कि हम भारतीय कैसे एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं।

पिछले चार वर्षों में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के जरिये 130 करोड़ भारतीयों ने गांधी जी को श्रद्धांजलि दी है। प्रत्येक भारतीय के परिश्रम के कारण यह अभियान आज एक जीवंत जन-आंदोलन बन गया है। साढ़े आठ करोड़ से ज्यादा परिवारों के पास पहली बार शौचालय की सुविधा पहुंची है। चालीस करोड़ से ज्यादा भारतीयों को अब खुले में शौच के लिए नहीं जाना पड़ता है। चार वर्षों में स्वच्छता का दायरा 39 प्रतिशत से बढ़कर 95 प्रतिशत पर पहुंच गया है। 21 राज्य और संघशासित क्षेत्र और साढ़े चार लाख गांव अब खुले में शौच से मुक्त हैं।

‘स्वच्छ भारत अभियान’ आत्मसम्मान और बेहतर भविष्य से संबद्ध है। यह उन करोड़ों महिलाओं के भले की बात है जो रोज मुंह छिपाने के लिए विवश होती थीं। साफ-सफाई के अभाव में जो बच्चे बीमारियों के शिकार बनते थे, उनके लिए शौचालय वरदान बना है। आज बहुत बड़ी संख्या उन भारतीयों की है जिन्हें स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने का सौभाग्य नहीं मिला। हमें उस समय देश के लिए जीवन बलिदान करने का अवसर तो नहीं मिला, लेकिन अब हमें हर हाल में देश की सेवा करनी चाहिए और ऐसे भारत का निर्माण करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए जैसे भारत का सपना हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने देखा था।

आज गांधी जी के सपनों को पूरा करने का एक बेहतरीन अवसर हमारे पास है। हमने काफी कुछ किया है और मुझे पूरा विश्वास है कि आने वाले समय में हम और बहुत कुछ करने में सफल रहेंगे। हम एक सौ तीस करोड़ भारतीय आज उन सपनों को पूरा करने की दिशा में मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो बापू ने देश के लिए देखे और जिसके लिए उन्होंने अपने जीवन का बलिदान दिया था।

[ लेखक देश के प्रधानमंत्री हैं ]