[ राजीव चंद्रशेखर ]: जब भी लगता है कि आधार को लेकर सुरक्षा और विवादों का दौर खत्म हो गया है तभी कोई न कोई नया बखेड़ा शुरू हो जाता है। डाटा सुरक्षा पर जस्टिस श्रीकृष्णा रिपोर्ट और ट्राई के सुझावों के परिप्रेक्ष्य में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि आधार को व्यापक कसौटी पर कसा जाए। जस्टिस श्रीकृष्णा रिपोर्ट में आधार अधिनियम को डाटा सुरक्षा अधिकार के अनुरूप संशोधित करने की बात कही गई है। मैंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी जिस पर शीर्ष अदालत ने निजता को मूल अधिकार की मान्यता दी थी। जब मैंने यही अनुमान व्यक्त किया था कि आधार कानून को निजता के लिटमस टेस्ट को पास करना होगा।

आधार अधिनियम में संशोधन की सिफारिश कर श्रीकृष्णा समिति ने मेरे दृष्टिकोण पर मुहर लगाई। आज देश मोदी सरकार के डिजिटल इंडिया विजन के साथ आगे बढ़ रहा है जिसमें करोड़ों भारतीय एक सक्रिय और कनेक्टेड तंत्र से जुड़कर डिजिटल नागरिक के रूप में तब्दील हो रहे हैैं। यही वजह है कि मोदी सरकार ने उपभोक्ताओं के लिए डिजिटल अधिकारों का एक ढांचा तैयार करने की जरूरत महसूस की। इसमें डाटा सुरक्षा और निजता के अलावा और भी तमाम पहलू शामिल हैैं। प्रस्तावित डाटा सुरक्षा कानून, नेट न्यूट्रैलिटी और नई प्रस्तावित डिजिटल कम्युनिकेशन नीति सभी के केंद्र में उपभोक्ताओं के हित हैं। इसे डिजिटल अधिकारों का घोषणापत्र यानी डिजिटल मैग्नाकार्टा भी कहा जा सकता है। यह उचित रूप से परिभाषित डिजिटल उपभोक्ता अधिकारों का पुलिंदा है। मैं जबसे सार्वजनिक जीवन में आया हूं तबसे इनका हिमायती रहा हूं और यही मेरी राजनीति के मूल में भी है। मैं पहला सांसद था जिसने तकनीकी और डिजिटल क्षेत्र में उपभोक्ता अधिकारों के लिए आवाज उठाई।

उपभोक्ता अधिकारों के डिजिटल मैग्नाकार्टा में नेट न्यूट्रैलिटी, निजता, सेवा प्रावधानों की गुणवत्ता और इंटरनेट पर निष्पक्ष एवं उचित प्रतिस्पर्धा जैसे पहलुओं का समावेश है। शासन में तकनीक के जुड़ाव का मैं हमेशा से बड़ा समर्थक रहा हूं और इसीलिए एक राष्ट्रीय पहचान तंत्र की मैंने वकालत भी की जिसे संप्रग सरकार ने आधार का नाम दिया। अपने शुरुआती स्तर पर आधार जैसी अवधारणा पर सबसे पहले अटल बिहारी वापजेयी सरकार के दौरान चर्चा हुई थी। संप्रग सरकार ने बिना खास सुरक्षा इंतजामों और प्रभावी कानून के बिना ही आधार पर करोड़ों रुपये खर्च दिए। जब 2010 में मैंने संसद में आधार की सुरक्षा को लेकर सवाल उठाए तो आधार को लेकर संप्रग सरकार का जवाब हमेशा अस्पष्ट ही रहा। निजता के मामले को लेकर मैं सुप्रीम कोर्ट तक गया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले मुझे एक आलेख याद आता है जिसका शीर्षक ही ‘आधार बना ही निजता के लिए है’ था जो मुद्दे को घुमाने के लिए ही लिखा गया। यह निजता के अधिकार के अपरिहार्य आदेश को भ्रमित करने का कुत्सित प्रयास ही था। असल में आधार को बचाने का श्रेय मोदी सरकार को ही जाता है जिसने इसे सही राह पर आगे बढ़ाया।

अप्रैल, 2017 में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि देश में 113 करोड़ आधार नामांकन हो गए हैं। इसका अर्थ है कि देश की वयस्क आबादी में 99 फीसद आधार के तले आ चुकी है। इस सरकार ने आधार को सब्सिडी पहुंचाने का माध्यम बनाया। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया कि संप्रग के दौरान इस लचर रूप से सत्यापित डाटाबेस को आइडी प्लेटफॉर्म बनाने की बेहूदा कोशिशों पर विराम लगाया। संप्रग सरकार के दौर में तकरीबन 40 करोड़ से अधिक ‘लोग’ बहुत लचर सत्यापन के साथ पंजीकृत हुए जिसमें इन तथाकथित पंजीकृत एजेंसियों द्वारा डाटा दुरुपयोग को लेकर कोई सुरक्षा नहीं मिली थी।

संप्रग सरकार के दौरान आधार को चुनाव पहचान पत्र और पासपोर्ट जैसी सेवाओं के लिए इकलौते पहचान पत्र के रूप में मान्यता दे दी गई थी जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से बेहद खतरनाक स्थिति है। यह भी सच है कि आधार अधिनियम की धारा 3.3 के तहत सभी प्रविष्टियों के सत्यापन की अधिकृत जिम्मेदारी यूआइडीएआइ की है। यह अधिनियम तो 2016 में पारित हुआ, ऐसे में 2016 से पहले की प्रविष्टियां स्पष्ट नहीं हैं। इसके गंभीर निहितार्थ हैं। ऐसी तमाम रिपोर्ट सामने आई हैं जिनमें फर्जी आधार और उनसे फर्जी मतदाता पहचान पत्र और पासपोर्ट बनाने का खुलासा हुआ। असम में एनआरसी के तहत जो 40 लाख लोग संदिग्ध पाए गए हैं उनमें से भी तमाम लोगों के पास आधार का होना इस मामले में कई सवाल खड़े करता है। ऐसे में एनआरसी को लेकर चर्चा आधार को सब्सिडी हस्तांतरण से इतर राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में उसके लिए अतिरिक्त उपाय की राह बनाएगी।

कई वर्षों से यूआइडीएआइ कड़े सवालों को टालता आया है। ऐसे में यह एक अच्छे डाटा सुरक्षा कानून और उसके नियमन एवं संचालन की निगरानी करने का बढ़िया समय है। मेरे ख्याल से यूआइडीएआइ पर नजर रखने के लिए संसद की स्थाई समिति सबसे उपयुक्त रहेगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि आधार ने सब्सिडी मुहैया कराने में पुरानी भ्रष्ट व्यवस्था पर प्रभावी रूप से प्रहार किया है। यह जरूरतमंद भारतीयों तक उनके लिए लक्षित वस्तुओं एवं सेवाओं का लाभ पहुंचाने का माध्यम बना रहना चाहिए, क्योंकि इसमें रिसाव से गरीब और जरूरतमंदों को ही नुकसान पहुंचता है। सार्वजनिक सब्सिडी खर्च में दशकों से चले आ रहे भ्रष्टाचार और रिसाव को दूर करने के लिए आधार नरेंद्र मोदी के लिए किसी ब्रह्मास्त्र से कम नहीं है। निजता एक व्यापक मुद्दा है जो आधार से भी परे जाता है। यह राज्य एवं अन्य एजेंसियों की भूमिका और जिम्मेदारियों को लेकर वाजिब सवाल खड़े करता है, क्योंकि ये हमारे डिजिटल जीवन के संरक्षक हैं वह भी ऐसे दौर में जब हमारी अर्थव्यवस्था और जिंदगी का तेजी से डिजिटल रूपांतरण हो रहा है।

निजता और ऑनलाइन डाटा सुरक्षा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सेवाओं की गुणवत्ता के अधिकार के मोर्चे पर उभरते डिजिटल मैग्नाकार्टा के ये सभी पहलू नवाचारों और उन आर्थिक अवसरों की धुरी है जो डिजिटल इंडिया से हमें सौगात के रूप में मिल सकती हैं। नई डिजिटल कम्युनिकेशन नीति उस समय पर आ रही है जब देश में निजी क्षेत्र के लिए दूरसंचार के दरवाजे खोलने की नरसिम्हा राव सरकार की पहल के 25 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इसमें भारत में मौजूद अवसरों की बढ़िया थाह ली गई है। वहीं नए डाटा सुरक्षा कानून को पूरी सावधानी के साथ तैयार किया गया है जिस पर जनता और संसद में विमर्श भी हो चुका है। यह तेजी से आकार लेते हमारे डिजिटल लोकतंत्र के लिए ठोस बुनियाद रखेगा।

[ लेखक राज्यसभा के सदस्य हैं ]