रिजवान अंसारी। हमारे देश में कई गलत कुरीतियां कायम होने के कारण समाज सुधार की राह में बाधा पैदा होती है। लडकियों की अपेक्षाकृत कम उम्र में शादी होना सामाजिक कुरीति के साथ स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का भी एक बडा कारण है। लिहाजा काफी समय से अक्सर यह चर्चा होती रही है कि लडकियों की शादी की न्यूनतम उम्र को बढाया जाना चाहिए। अब जब प्रधानमंत्री ने लाल किले से अपने संबोधन में इसकी चर्चा की है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि कानून के माध्यम से इसमें आवश्यक सुधार किया जा सकता है।

अब तक जिस बाल विवाह को खत्म करने की सोच को केवल किताबों और सेमिनारों तक ही सीमित समझा जा रहा था, उस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गंभीरता ने एक बार फिर से विमर्श खड़ा कर दिया है। दरअसल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु पर पुनर्विचार करने की बात कही है। साफ तौर पर कहें तो प्रधानमंत्री ने शादी की न्यूनतम उम्र को 18 साल से बढ़ाकर 21 करने के संकेत दिए हैं। शादी की न्यूनतम आयु में बदलाव का संकेत देकर प्रधानमंत्री ने यकीनन एक ऐसी बहस छेड़ी है जिसकी दशकों से जरूरत महसूस की जा रही थी।

हालांकि भारत में महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु हमेशा ही एक विवादास्पद विषय रहा है और जब भी इस प्रकार के नियमों में परिवर्तन की बात की गई है, तो सामाजिक और धार्मिक रुढ़िवादियों का कड़ा प्रतिरोध देखने को मिला है। बात चाहे मातृत्व मृत्यु दर की हो या शिशु मृत्यु दर की, इसमें ग्राफ के बढ़ने के पीछे कम उम्र में विवाह को भी एक वजह मानी जाती रही है। वर्तमान में कानूनी तौर पर लड़कों के लिए शादी की उम्र 21 साल है जबकि लड़कियों के लिए 18 साल। लेकिन सरकार को महसूस हो रहा है कि लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल को बढाया जाना चाहिए। वहीं दूसरी ओर 18 साल से कम उम्र में भी लड़कियों की शादी मामले हमेशा ही प्रकाश में आते रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष द्वारा इसी वर्ष दो जुलाई को प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक बाल विवाह पर लगभग संपूर्ण विश्व में प्रतिबंध के बाद भी व्यापक स्तर पर यह प्रथा चलन में है। यूनिसेफ का अनुमान है कि भारत में हर साल कम से कम 15 लाख लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में कर दी जाती है। दूसरे शब्दों में भारत विश्व में सर्वाधिक बाल विवाह वाला देश है। भारत में बीते पांच वर्षों में 3.76 करोड़ लड़कियों की शादियां हुईं। इनमें से 1. 37 करोड़ लड़कियों का विवाह 18-19 वर्ष की उम्र में ही किया गया। वहीं 75 लाख लड़कियों का विवाह 20-21 साल की उम्र में हुआ। ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो पांच वर्षों में 61 फीसद ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली लड़कियों की शादी 18-21 वर्ष की उम्र के बीच की गई। वर्ष 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक 20-24 आयु वर्ग की महिलाओं में से 48 फीसद का विवाह 20 वर्ष की उम्र में हुआ तो वहीं 26.8 फीसद की शादी 18 साल से पहले ही हो गई थी।

आंकड़ों पर गौर करें, तो कुल शादियों के बरक्स बाल विवाहों की संख्या ज्यादा बड़ी नहीं है। इसके बावजूद मातृत्व मृत्यु दर में भारत का प्रदर्शन बेहद खराब है। भारत सरकार के नीति आयोग की वेबसाइट से पता चलता है कि भारत में प्रति लाख जन्म देने वाली माताओं में 2014-2016 के दौरान 130 माताओं की मौतें हुईं। इस मामले में असम में सबसे ज्यादा (237) और केरल में सबसे कम (46) मौतें हुईं। वर्ष 2017 में जब विश्व बैंक ने मातृत्व मृत्यु दर की रैंकिंग जारी की तब भारत को 186 देशों की सूची में 130वां स्थान मिला था। इस मामले में चीन, श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देश हमसे बेहतर स्थिति में थे। जाहिर है, दुनिया भर में हमारा प्रदर्शन बहुत खराब है। इसी तरह, शिशु मृत्यु दर में भी स्थिति ज्यादा बेहतर नहीं है। हालाकि पहले के बरक्स इस मामले में स्थिति सुधरी जरूर है। लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र को बढ़ाने के पीछे सुप्रीम कोर्ट का 2017 का जजमेंट तो एक फैक्टर है ही जिसमें वैवाहिक दुष्कर्म से बेटियों को बचाने के लिए बाल विवाह को पूरी तरह से अवैध मानने की बात कही गई थी।

यह सर्वविदित तथ्य है कि 18 वर्ष की उम्र में लड़कियां इतनी परिपक्व नहीं हो पातीं कि वे मां बन सकें। लिहाजा छोटी उम्र में विवाह होने के बाद गर्भावस्था में जटिलताओं और बाल देखभाल के बारे में जागरूकता की कमी के कारण मातृ और शिशु मृत्यु दर में वृद्धि देखने को मिलती है। यही कारण है कि इसी साल जून में सामाजिक कार्यकर्ता जया जेटली की अध्यक्षता में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने मातृत्व की आयु, मातृत्व मृत्यु दर और महिलाओं के पोषण स्तर में सुधार से संबंधित मुद्दों की जांच के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया। यह टास्क फोर्स गर्भावस्था, प्रसव और उसके बाद मां और बच्चे के चिकित्सीय स्वास्थ्य एवं पोषण के स्तर के साथ विवाह की आयु और मातृत्व के सहसंबंध की जांच करेगी और महिलाओं के लिए विवाह की वर्तमान आयु 18 को 21 साल तक बढ़ाने के विकल्प पर भी विचार करेगी। इससे स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी का लक्ष्य मातृत्व और शिशु मृत्यु दर को कम करना है। वहीं प्रधानमंत्री का तीसरा निशाना भी बेहद दिलचस्प है। बात चाहे मौजूदा सरकार की हो या पूर्ववर्ती सरकार की, समाज के अंदर से जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग हमेशा ही उठती रही है।

हालिया दिनों में तो इस पर खूब बहस भी हुई। अब मोदी सरकार जनसंख्या विस्फोट पर अप्रत्यक्ष रूप से वार करना चाह रही है। कानूनी तौर पर अभी लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि 19 वर्ष की उम्र में लड़कियां मां बन जाती हैं। अब अगर शादी की कानूनी उम्र 21 साल तय कर दी जाएगी तो महिला की बच्चे पैदा करने की क्षमता वाले वर्षों की संख्या अपने आप घट जाएगी। इससे कुल प्रजनन दर में भी कमी आएगी। अगर ऐसा मुमकिन हो पाता है, तो काफी हद तक बेतहाशा जनसंख्या वृद्धि को भी नियंत्रित करने में कामयाबी हासिल की जा सकती है। लेकिन यह सबकुछ तभी संभव है जब सरकार मुस्तैदी से कानून के क्रियान्वयन पर ध्यान दे। यह कोई छिपी बात नहीं है कि कानूनन जुर्म होने के बावजूद लोग धड़ल्ले से बाल विवाह को बढ़ावा देते हैं और ऐसे मामलों में कोई खास कार्रवाई नहीं हो पाती। ऐसे में यह जरूरी है कि मोदी सरकार मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ इस दिशा में कदम बढ़ाए, ताकि बेवजह जच्चा-बच्चा को अपनी जान गंवाने से बचाया जा सके।

[स्वतंत्र टिप्पणीकार]