अनिल झा। कोरोना के वैश्विक संकट के दौर में दुनिया के कई प्रमुख व विकसित देशों ने इस विषम परिस्थिति में अपने देश की स्थितियों का बहुत गहराई से मूल्यांकन किया है। मानवता के अस्तित्व के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक भोजन पर इस महामारी का क्या असर पड़ रहा है, इसे भी जानने की कोशिश की जा रही है। पश्चिम और मध्य अफ्रीका समेत दक्षिण एशिया के अनेक देशों में सामान्य नागरिक को भोजन के लिए संघर्ष करना पड़ता है। भारत और पाकिस्तान जैसे राष्ट्रों में भी बड़ी विस्मय परिस्थिति है। संपन्नता और गरीबी की बहुत गहरी खाई है। इसका मूल्यांकन आवश्यक है। वैसे भारत, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान आदि देशों में सामाजिक चेतना से बहुत बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। भुखमरी व कुपोषण से निपटने के लिए अब सख्त कानूनों को बनाने की आवश्यकता है।

आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि एक तरफ तो एक थाली में कई सारे व्यंजन हों और दूसरी तरफ सूखी रोटी भी नसीब नहीं हो। विश्व भूख सूचकांक के अनुसार भूख और कुपोषण के मामले में भारत विश्व में 102वें स्थान पर है। यह भारतीय जीवन जीने के व्यवहार पर प्रश्न खड़ा करता है। दरअसल उत्तर और मध्य भारत में वैवाहिक कार्यक्रमों में सौ से भी अधिक व्यंजन बनाए जाते हैं। इनमें 40 प्रतिशत तक भोजन बर्बाद होता है। भारत में अन्न के खेत से पेट तक के सफर में बहुत अधिक नुकसान होता है जो देश के लिए एक गंभीर समस्या बन गई है। भुखमरी का प्रमुख कारण यही है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश और उत्तर बिहार में मृत्यु भोज एक बहुत बड़ा अनुष्ठान होता है। यह करना भी चाहिए, लेकिन उन स्थितियों में नहीं, जहां कई बार देखने में आता है कि कर्ज लेकर लोग पितरों के लिए भोज कराते हैं और उसमें भी लगभग 30 प्रतिशत तक भोजन बर्बाद हो जाता है। भारत भोजन बर्बादी में विश्व चैंपियन बना हुआ है। पर्याप्त उत्पादन के बावजूद भारत में हर छठा या सातवां व्यक्ति भूखा सो जाता है। यह दुखद है। भोजन की बर्बादी को रोकने के लिए पाकिस्तान हमसे कहीं ज्यादा सतर्क है, वहां वैवाहिक कार्यक्रमों में बनने वाले पकवानों की संख्या सरकार ने तय कर रखी है। हालांकि शुरू में कुछ अमीरों ने इसका विरोध किया, लेकिन मामला जब अदालत पहुंचा तो न्यायालय ने भी इसे वक्त की मांग बताया।

हालांकि भारत में केंद्र सरकार ने भूख और कुपोषण से निपटने की दिशा में बेहतर काम किया है, लेकिन सामाजिक चेतना का नहीं होना और संपन्नता का प्रदर्शन कुपोषण और भुखमरी का मुख्य कारण बनता जा रहा है। भारत सरकार के प्रयासों के कारण वर्ष 2019 तक भूख का स्तर घटा तो है, लेकिन स्थिति अभी भी

चिंताजनक है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य व कृषि संगठन ने आशंका जताई है कि 2020 में लगभग 27 करोड़ लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ सकता है, जो बीते वर्ष के मुकाबले दोगुना है।

वर्ष 2014 के पश्चात भारत में अन्न का पर्याप्त उत्पादन हुआ है, लेकिन सुस्त सरकारी बाबुओं का गिरोह और भ्रष्ट नौकरशाही के कारण भंडारण की सुविधा के अभाव में व्यापक तादाद में अन्न बर्बाद हो जाता है। भारत में वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले अच्छे किसानों की शिक्षा और सिंचाई पर भी हमें अत्यधिक ध्यान देना होगा। अन्न की बर्बादी को रोकने के लिए हमें दो तरफा कार्य करना होगा। पहला वितरण कार्य में जुटे सुस्त कर्मचारियों और खाद्य मंडियों में कार्यरत र्किमयों की पुख्ता ट्रेनिंग और उनकी निगरानी की आवश्यकता है। साथ ही सरकार को कुछ सामाजिक व र्धािमक संगठनों से सीखना चाहिए। भारत के गुरुद्वारे देश भर में रोजाना करीब पांच करोड़ लोगों का पेट भरते हैं। बिना किसी खास सरकारी मदद के यह काम निरंतर जारी रहता है। इसका बड़ा कारण यह भी है कि इनके पास सुस्त कर्मचारियों की फौज नहीं है।

समय आ गया है कि भोजन की बर्बादी को लेकर सख्त कानून बनने चाहिए। साथ ही वैवाहिक-सामाजिक समारोहों में खानपान की व्यवस्था के संबंध में कानून बनाए जाएं और उन्हें सख्ती से अमल में लाया जाए। सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि शादी-विवाह में कितने लोग शामिल होंगे और कितने पकवान बनाए जा सकते हैं। हालांकि इस कानून का विरोध हो सकता है, लेकिन सरकार को यह देखना होगा कि अन्न की बर्बादी कितने बड़े पैमाने पर हो रही है। कोरोना संकट ने हमें अवसर दिया है यह समझने का कि इस दौर में वैवाहिक-सामाजिक कार्यक्रमों समेत बर्थडे र्पािटयों आदि पर लगाम लगी है। मजबूरी में ही सही, लेकिन लोगों में चेतना जागृत हुई है।

लॉकडाउन के दौरान फलों और सब्जियों का अन्य दिनों के मुकाबले कम कीमत पर उपलब्ध होना इस बात को दर्शाता है कि वैवाहिक-सामाजिक कार्यक्रमों के आयोजन नहीं होने का असर निश्चित तौर पर इनकी कीमतों पर पड़ा है। आखिर जो शिमला मिर्च बाजार में पहले सौ रुपये किलो के आसपास बिकती थी, लॉकडाउन के दौर में वह 50 रुपये किलो मिलने लगी। यही हाल अन्य सब्जियों का भी था। प्याज और टमाटर की कीमतें तो अन्य दिनों के मुकाबले तकरीबन आधी हो गईं। इन सभी पहलुओं पर हमें गौर करना होगा।

[पूर्व अध्यक्ष, दिल्ली विवि छात्र संघ व पूर्व विधायक, दिल्ली विधानसभा]