झारखंड, प्रदीप शुक्ला। COVID-19 Lockdown: अब जब यह तय हो गया है कि हमें लंबे समय तक कोरोना वायरस के साथ ही जीना है तो इससे डरने, भयाक्रांत होने अथवा हाय-तौबा मचाने से बेहतर है सतर्कता के साथ इससे निपटते हुए अब आगे बढ़ने के बाबत सोचना शुरू कर देना चाहिए। राज्य में लौट रहे प्रवासी मजदूरों में जिस तरह संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं उससे यह स्पष्ट है कि यह सिलसिला फिलहाल थमने वाला नहीं है।

ऐसे में राज्य सरकार को जरूरी एहतियात के साथ अब धीरे-धीरे लॉकडाउन खोलने की दिशा में बढ़ना चाहिए। यदि जल्द कल-कारखानों का पहिया पूरी क्षमता से नहीं घूमा तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है। पहले ही राज्य में बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत के करीब 24 प्रतिशत के मुकाबले 48 प्रतिशत पर पहुंच चुकी है। अब निर्णय लेने में थोड़ी भी सुस्ती अथवा देरी का खामियाजा राज्य को लंबे समय तक भुगतना पड़ सकता है।

केंद्र सरकार ने उद्योग-धंधों सहित हर वर्ग के लिए भारी-भरकम प्रोत्साहन पैकेज घोषित कर दिया है। प्रधानमंत्री ने यह भी संकेत दे दिए हैं कि लॉकडाउन-4 में काफी कुछ बदला होगा। सीमित ही सही, ट्रेनों का परिचालन शुरू हो गया है। संकेत मिल रहे हैं कि हवाई यात्रएं भी जल्द शुरू होंगी। ऐसे में ज्यादा दिनों तक अनिर्णय की स्थिति राज्य के लिए नुकसानदायक हो सकती है। पिछले एक सप्ताह में जो केस आए हैं उनमें से अधिकांश प्रवासी मजदूर ही हैं। लेकिन सवाल भी यही है कि मजदूरों की वापसी का सिलसिला तो महीनों जारी रह सकता है, ऐसे में राज्य को कब तक बंद रखा जा सकता है? अब कड़े निर्णय लेने ही होंगे। गठबंधन सरकार के लिए यह कठिन परीक्षा की घड़ी है, खासकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए। राज्य की गठबंधन सरकारों का जो इतिहास रहा है वह बहुत सुखद नहीं है। ऐसे में यहां हर घटना के बाद राजनीतिक गलियारे में चर्चाओं का बाजार गर्म हो जाता है। मुख्यमंत्री से ऐसे सवाल पूछे जाने लगे हैं कि क्या वह कांग्रेस को छोड़कर भाजपा के साथ जा सकते हैं? मुख्यमंत्री सतर्कता से टिप्पणी कर रहे हैं। वह केंद्र पर आरोपों के बीच में कभी-कभी प्रधानमंत्री के सहयोग की खुलकर तारीफ भी कर रहे हैं।

इन राजनीतिक हालात के बीच महामारी से जूझ रहे हेमंत सोरेन का मानना है कि रमजान में लॉकडाउन में छूट देना खतरनाक हो सकता है। लॉकडाउन कैसे खोला जाए, राज्य स्तर पर बनी टास्क फोर्स इस पर कोई निर्णय नहीं ले पा रही है। काफी माथापच्ची के बाद राज्य सरकार ने इसके लिए केंद्र की गाइडलाइंस आने का इंतजार करना उचित समझा है। कई राज्यों में जिस तरह आíथक गतिविधियां शुरू हुई हैं, राज्य सरकार उस पर नजर तो रखे हुए है, लेकिन कोई फैसला नहीं कर पा रही है। शायद उसे इसका अंदाजा नहीं है कि अगर मई के आखिर तक लॉकडाउन की स्थिति रहती है तो लाखों परिवारों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा। उद्योग-धंधे राहत-प्रोत्साहन पैकेज की मांग कर रहे हैं। राज्य सरकार केंद्र का मुंह ताक रही है। हालात यह हैं कि किसानों के कर्ज माफ करने का अपना वादा पूरा करने के लिए भी अब केंद्र से पैसा मांग रही है। यह हास्यास्पद ही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने वादा किया था कि पहली कैबिनेट में इसका निर्णय लिया जाएगा। बेशक पहली न सही, बाद में कैबिनेट में फैसला तो हो गया, लेकिन आठ हजार करोड़ रुपये की जगह सिर्फ दो हजार करोड़ रुपये की कर्ज माफी पर सहमति हुई है। किसानों की दशा दयनीय है। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास मांग उठा चुके हैं कि उनके समय में शुरू की गई मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना को तत्काल लागू किया जाए। इस योजना में किसानों को प्रति एकड़ पांच हजार रुपये (अधिकतम पच्चीस हजार) तक देने का प्रावधान था। राज्य सरकार ने न तो यह योजना अभी बंद की है और न ही इसके बाबत बजट में कोई प्रावधान किया था।

केंद्र सरकार ने लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों के लिए बड़े प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा कर दी है। राज्य के उद्यमियों में भी इससे आस जगी है। बस राज्य सरकार को उन्हें जरूरी सहुलियतें उपलब्ध करवानी होंगी। उद्यमी मांग कर रहे हैं कि अन्य राज्यों की तरह यहां भी श्रम कानूनों में बदलाव किए जाएं। बिना सरकारी सहयोग के उद्योग-धंधों का पटरी पर आना आसान नहीं है। जैसे सरकार मजदूरों की चिंता कर रही है वैसे ही उसे उद्यमियों के बाबत भी सोचना चाहिए। सरकार इन मजदूरों को रोजगार देने के लिए जो योजनाएं बना रही है, वह दीर्घकाल में बड़ा फायदा पहुंचा सकती है, लेकिन तत्काल रोजगार के अवसर कल-कारखानों के चलने से ही पैदा होंगे।

[स्थानीय संपादक, झारखंड]