[चौधरी पुष्पेंद्र सिंह]। कई शहरों में प्याज की खुदरा कीमतें अब सौ रुपये प्रति किलो के पार चली गई हैं। सरकार ने प्याज की जमाखोरी पर अंकुश लगाने के लिए व्यापारियों पर छापेमारी के अलावा, प्याज के थोक व्यापारियों की भंडारण सीमा 500 से घटाकर 250 क्विंटल और खुदरा विक्रेताओं की सीमा 100 से घटाकर 50 क्विंटल कर दी है।

केंद्र सरकार ने प्याज की कीमतों को काबू करने के लिए 1.2 लाख टन प्याज दूसरे देशों से आयात करने का निर्णय लिया है। इसमें से मिस्न, तुर्की आदि देशों से कुल 21,000 टन प्याज आयात के सौदे किए जा चुके हैं, पर देश की लगभग 60,000 टन प्रतिदिन की मांग के सापेक्ष यह बहुत कम है और फिर इस प्याज के देश में पहुंचने में भी करीब एक माह का समय लगेगा। प्याज की कम अवाक और विलंबित आयात के कारण ही प्याज के दाम फिर बढ़ने शुरू हुए हैं।

खुदरा व्यापारियों को लिए तय की गई स्टॉक लिमिट

सरकार ने कीमतें काबू करने के लिए सबसे पहले जून में प्याज निर्यातकों को दी जा रही 10 प्रतिशत सब्सिडी खत्म की। फिर सितंबर में प्याज के निर्यात पर 850 डॉलर प्रति टन (लगभग 60 रुपये प्रति किलो) का न्यूनतम निर्यात मूल्य लगा दिया। इसके बाद भी जब कीमतें काबू में नहीं आईं तो प्याज के थोक व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं के लिए स्टॉक लिमिट तय कर दी गई। प्याज के निर्यात को भी पूर्णतया प्रतिबंधित कर दिया।

इन कदमों से कीमतों में कुछ कमी तो आई पर असमय अत्यधिक बारिश के कारण महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और कर्नाटक में प्याज और अन्य सब्जियों की फसल को काफी नुकसान हुआ जिसके चलते अक्टूबर-नवंबर में खरीफ की प्याज, टमाटर और अन्य सब्जियों की आवक आशा के अनुरूप नहीं हुई। इससे कीमतें फिर आसमान छूने लगीं। प्याज उत्पादक राज्यों में पहले तो देरी से आए मानसून और फिर अत्यधिक बारिश ने हालात बिगाड़ दिए।

महाराष्ट्र में घटा प्याज का उत्पादन

वहीं, प्याज का रकबा भी पिछले साल के लगभग तीन लाख हेक्टेयर के मुकाबले इस साल लगभग 2.60 लाख हेक्टेयर रह गया। खरीफ के प्याज का उत्पादन भी पिछले साल के 70 लाख टन के मुकाबले 52 लाख टन रहने का अनुमान है। देश में सबसे ज्यादा, लगभग एक-तिहाई प्याज उत्पादन करने वाले महाराष्ट्र में नवंबर में प्याज की आवक पिछले साल के 41 लाख टन के मुकाबले घटकर 24 लाख टन रह गई। इस कारण अब प्याज की कीमतें जनवरी में ही कळ्छ कम हो पाएंगी।

मोदी सरकार में बागवानी फसलों की महत्वपूर्ण भूमिका

आखिर तमाम कोशिशों के बावजूद सरकार प्याज, टमाटर, आलू और अन्य सब्जियों की कीमतों को नियंत्रित रखने, उपभोक्ताओं और किसानों के हितों की रक्षा करने में बार-बार नाकाम क्यों होती है? 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के मोदी सरकार के लक्ष्य में बागवानी फसलों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इन फसलों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने बजट में कई योजनाएं शुरू की हैं। सब्जियों में मात्रा के लिहाज से आधा उत्पादन आलू, प्याज और टमाटर का ही होता है।

एक तथ्य यह भी है कि आलू, प्याज और टमाटर, इन तीनों फसलों का देश की घरेलू मांग से ज्यादा उत्पादन हो रहा है और हम इन फसलों के निर्यात की स्थिति में हैं। गत वर्ष प्याज का 22 लाख टन निर्यात कर हम विश्व के सबसे बड़े प्याज निर्यातक थे।

सरकार को उठाने होंगे अन्य कदम

आखिर ऐसा क्या हुआ कि अब उसी प्याज को देश महंगे दामों पर आयात करने के लिए मजबूर हैं। आलू, प्याज और टमाटर की कीमतों में स्थायित्व हेतु सरकार ने पिछले साल 500 करोड़ रुपये की ऑपरेशन ग्रींस टॉप (टोमैटो, अनियन, पोटैटो) योजना शुरू की थी। इसका मूल उद्देश्य एक तरफ उपभोक्ताओं को इन सब्जियों की उचित मूल्य पर साल भर आपूर्ति सुनिश्चित करना और दूसरी तरफ किसानों को लाभकारी मूल्य दिलाना था, लेकिन सरकार को कुछ और कदम उठाने होंगे।

सबसे पहले तो इन फसलों की उचित मात्रा में खरीद, भंडारण एवं वितरण हेतु शीतगृहों और अन्य आधारभूत संरचना का इंतजाम करना होगा। हमारे देश में लगभग 8000 शीतगृह हैं, पर इनमें से 90 प्रतिशत में आलू का ही भंडारण किया जाता है। यही कारण है कि आलू की कीमतों में कभी भी अप्रत्याशित उछाल नहीं आती। प्याज के भंडारण को भी बड़े पैमाने पर बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि किसानों और उपभोक्ताओं, दोनों के हितों को संरक्षित किया जा सके।

भंडारण और प्रसंस्करण नीति को करना होगा दुरुस्त

केंद्र सरकार ने इस साल प्याज का 57,000 टन का बफर स्टॉक बनाया था, पर यह देश की केवल एक दिन की मांग के बराबर ही था। हमें प्याज का कम से कम 10 लाख टन का बफर बनाना होगा। इन तीनों सब्जियों का बड़े पैमाने पर प्रसंस्करण करने हेतु उद्योग लगाने होंगे। अभी आलू की फसल का केवल 7 प्रतिशत, प्याज का 3 प्रतिशत और टमाटर का मात्र 1 प्रतिशत प्रसंस्करण हो पा रहा है। इनके मूल्यों को स्थिर रखने, ऑफ-सीजन में उपलब्धता सुनिश्चित करने और निर्यात बढ़ाने के लिए इन फसलों का कम से कम 20 प्रतिशत प्रसंस्करण का लक्ष्य होना चाहिए। इसे प्रोत्साहित करने के लिए जीएसटी भी कम करना चाहिए। साथ ही घरेलू मांग से ज्यादा उत्पादन की सूरत में हमें निर्यातक देश के रूप में भी स्थापित होना होगा। अभी इन फसलों का लगभग 5500 करोड़ रुपये मूल्य का निर्यात हो पा रहा है, जिसे तीन-चार गुना बढ़ाने की दरकार है। इसके लिए भंडारण और प्रसंस्करण नीति दुरुस्त करनी होगी।

वस्तु अधिनियम में सुधार की जरूरत 

बार-बार न्यूनतम निर्यात मूल्य या स्टॉक लिमिट लगाने से व्यापारी भंडारण, प्रसंस्करण और निर्यात की व्यवस्था में निवेश करने से पीछे हट जाते हैं। स्पष्ट है कि स्थिर सरकारी नीतियां बनाने और आवश्यक वस्तु अधिनियम में सुधार की जरूरत है। नाबार्ड के एक अध्ययन के अनुसार आलू, प्याज, टमाटर के उपभोक्ता द्वारा चुकाए मूल्य का 25-30 प्रतिशत ही किसानों तक पहुंच पाता है।

हमें इन फसलों में अमूल मॉडल को लागू करना होगा। इसमें दूध के उपभोक्ता-मूल्य का 75-80 प्रतिशत किसानों को मिलता है। सरकार को कृषि उत्पाद बाजार समिति अधिनियम में सुधार कर बिचौलियों की भूमिका सीमित करनी होगी। इन तीनों फसलों को एमएसपी के तहत लाकर इनकी उचित खरीद, भंडारण और प्रसंस्करण की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि किसान को फसल फेंकने की नौबत न आए और लोगों की जेब भी न कटे।

(लेखक किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष हैं)