आकाश कुमार बादल। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की 10वीं और 12वीं की परीक्षाओं के नतीजे घोषित हो गए हैं। अच्छे नंबरों से पास होने वाले विद्यार्थियों का भूत और भविष्य की संभावनाओं को अखबारों में छापा जा रहा है। उनकी पसंद-नापसंद की चीजों मसलन वे क्या बनना चाहते हैं, उन्हें क्या अच्छा लगता है और क्या बुरा लगता है, के बारे में भी खूब चर्चा हो रही है। उनके माता-पिता के साथ ‘विक्टरी पोज’ और मिठाइयां बांटते हुए सोशल मीडिया में फोटो सैर कर रहे हैं।

अगल-बगल के राजनेता, समाजसेवी उन्हें बधाइयां दे रहे हैं तो कोई उन्हें सम्मानित कर रहा है। तस्वीर पूरी गुलाबी हो जाती है।यह सब देखकर बहुत अच्छा लगता है और लगना भी चाहिए, लेकिन साथ ही ऐसी परीक्षाओं में बहुत से बच्चों के नंबर कम होते हैं और कई फेल भी हो जाते हैं। दुख की बात है कि उन बच्चों की सुध लेने के लिए कोई आगे नहीं आता है। ऐसी स्थिति में वे बच्चे दूसरों के सामने आने से डरते हैं। शìमदा महसूस करते हैं। अवसाद में चले जाते हैं। कई बच्चे तो आत्महत्या तक कर लेते हैं।

फिल्म ‘छिछोरे’ में सुशांत सिंह राजपूत द्वारा कही गई वह लाइन हमें नहीं भूलनी चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था कि सफलता के बाद की योजना तो सबके पास है, लेकिन अगर गलती से असफल हो गए तो फेल्योर से कैसे डील करना है, इसके बारे में कोई बात ही नहीं करना चाहता।

वास्तव में हम सब इस बात की अनदेखी कर देते हैं कि जो बच्चे फेल हो गए या उन्हें मनवांछित सफलता न मिली हो तो वे कैसा महसूस कर रहे हैं। उन्हें सांत्वना देने के बजाय हम सब उनको मानसिक रूप से प्रताड़ित करना शुरू कर देते हैं। उन्हें यह महसूस कराते हैं कि उनके लिए भविष्य के अब सारे दरवाजे बंद हो गए हैं। क्यों उन्हें कोई यह नहीं कहता कि ‘क्या हुआ अगर परीक्षा में फेल हो गए तो अभी करने को बहुत कुछ है। बेटा अंक ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होते। फेल का मतलब असफल होना नहीं होता। नाकामयाबी एक पड़ाव है, आखिरी पड़ाव नहीं। तुम्हें किसी से छिपने की जरूरत नहीं।’

सवाल यह उठता है कि क्या इन विद्यार्थियों के लिए भविष्य के सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं? या फिर इन्हें और इनके परिजनों को निराशा में डूब जाना चाहिए? इसमें दोराय नहीं कि परीक्षा में विफलता की पीड़ा असहनीय होती है। इसे कई विद्यार्थी बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। इन बातों को ध्यान में रखकर जितना गुणगान हम सफल छात्रों का करते हैं उतना ही ध्यान हमें असफल छात्रों की मनोदशा को समझने पर भी लगाना होगा। माता-पिता और शिक्षक ऐसे बच्चों को अच्छी तरह समङों और उन पर बिना कोई दबाव डाले उन्हें उनकी रुचि की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करें तो निश्चत रूप से वे भी अपनी कामयाबी से घर-परिवार को खुशियों की सौगात दे सकते हैं।

(लेखक रांची विश्वविद्यालय में शोध अध्येता हैं)