शशांक द्विवेदी। यह बात हमें अब समझ जानी चाहिए कि स्वदेशी तकनीक और आत्मनिर्भरता का कोई विकल्प नहीं है। कोरोना संकट ने भारतीय अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में अब समय आ गया है जब भारत हर क्षेत्र में स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित करे। हमें एक बदले हुए भारत की कल्पना करनी होगी जिसमें हर क्षेत्र में स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित करते हुए देश को मैन्यूफैक्चरिंग का हब बनाना होगा। पिछले कुछ समय में भारत ने अपनी उन्नत स्वदेशी प्रौद्योगिकी का परिचय देते हुए अंतरिक्ष के क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़ दिए हैं।

देश को यही जरूरत अन्य क्षेत्रों के लिए भी है, जब हम अपनी स्वदेशी तकनीक पर काम कर सकें। हम स्वदेशी प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके रक्षा और अंतरिक्ष के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन ये कामयाबियां अभी मंजिल तक पहुंचने का पड़ाव भर हैं और हमें काफी बड़ा रास्ता तय करते हुए विश्व को यह दिखाना है कि भारत में प्रतिभा और क्षमता की कोई कमी नहीं है। टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ने के बाद भी भारत दुनिया के कई देशों से पिछड़ा हुआ है और उसे अभी बहुत से लक्ष्य तय करने होंगे। वर्तमान में हम अपनी जरूरतों का लगभग 60 फीसद हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर आयात कर रहे हैं। दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सेना और लगभग तीन लाख करोड़ रुपये के सालाना रक्षा बजट के बावजूद करीब 60 फीसद सैन्य उपकरण आयातित होते हैं।

देश की समग्र उन्नति और आíथक विकास के लिए तकनीकी शिक्षा का गुणवत्तापूर्ण होना बहुत जरूरी है। इसको प्रभावी बनाने के लिए कॉलेज में किताबी ज्ञान के साथ उस ज्ञान का व्यावहारिक पक्ष बताकर उसका प्रयोग सामान्य जिंदगी में कराया जाए। चीन ने इस प्रयोग को पूरी तरह से अपनाया और आज स्थिति यह है कि उत्पादन की दृष्टि से चीन भारत से बहुत आगे है। भारत में तकनीकी और इंजीनियरिंग शिक्षा के ढांचे को ठीक करना होगा, क्योंकि अब शिक्षा में इनोवेशन की जरूरत है। भारत ने परमाणु शक्ति बनकर दुनिया में अपनी धाक जरूर जमा ली है, लेकिन देश अब भी कई मोर्चे पर पिछड़ा हुआ है।

तकनीक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को बहुत काम करना है। अगर हम एक विकसित देश बनने की इच्छा रखते हैं तो आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए हमें दूरगामी रणनीति बनानी पड़ेगी, क्योंकि भारत पिछले छह दशक के दौरान अपनी अधिकांश प्रौद्योगीकीय जरूरतों की पूíत दूसरे देशों से कर रहा है। रक्षा जरूरतों के लिए भारत का दूसरों पर निर्भर रहना सही नहीं है। इस मामले में हमें आत्मनिर्भर होना होगा। हमारे घरेलू उद्योगों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई है। इसलिए देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारतीय उद्योग के कौशल संसाधनों एवं प्रतिभाओं का बेहतर उपयोग करना जरूरी है।

स्वतंत्रता के बाद भारत का प्रयास यही रहा है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन भी लाया जाए ताकि लोगों के जीवन स्तर में संरचनात्मक सुधार हो सके। वास्तव में वैज्ञानिक गतिविधियों को बनाए रखने के लिए तथा सामाजिक-आíथक चुनौतियों का सामना करने के लिए जनमानस में वैज्ञानिक चेतना का विकास करना अनिवार्य है।

वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकीय ज्ञान के सतत विकास और प्रसार के लिए हम सब को आगे आना होगा। एक व्यक्ति या एक संस्था से ही यह काम सफल नहीं हो सकता है, इसमें सामूहिक और सार्थक भागीदारी की जरूरत है। कोरोना संकट के समय देश में स्वदेशी प्रौद्योगिकी को बड़े पैमाने पर विकसित करने की जरूरत है और इस दिशा में जो भी समस्याएं हैं, उन्हें दूर करना होगा, तभी सही मायनों में हम कोरोना की वजह से अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती को भी दूर कर पाएंगे। हमें हमेशा यह बात याद रखनी होगी कि स्वदेशी व आत्मनिर्भरता का कोई विकल्प नहीं है।

(लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर हैं)