विवेक काटजू। पिछले दिनों पाकिस्तान की सुरक्षा परिषद ने देश की पहली राष्ट्रीय सुरक्षा नीति यानी एनएसपी पर मुहर लगाई। एक दिन बाद ही पाकिस्तान की कैबिनेट ने उसे स्वीकृति प्रदान कर दी। नीति का मसौदा 14 जनवरी को सामने आया। पाकिस्तान सरकार का मानना है कि एनएसपी देश को आर्थिक वृद्धि की ओर उन्मुख करने के साथ ही सामाजिक न्याय का माध्यम भी बनेगी, लेकिन ये लक्ष्य प्राप्त होते नहीं दिखते, क्योंकि इन लक्ष्यों की पूर्ति के लिए पाकिस्तान को अपनी विचारधारा और खासतौर से राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य बलों को लेकर अपना नजरिया बदलना होगा, जो भारी संख्या में राष्ट्रीय संसाधनों को सोख लेते हैं। एनएसपी इस पर मौन है। एनएसपी यही दर्शाती है कि भारत के प्रति पाकिस्तान का शत्रुतापूर्ण रवैया बरकरार है। जब तक यह कायम रहेगा, तब तक तरक्की करने की पाकिस्तान की कोई हसरत परवान नहीं चढऩे वाली। ऐसी योजनाएं सिर्फ कागजी बनकर रह जाएंगी। वर्तमान मेंं सभी प्रगतिशील देश अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को केवल बाहरी शत्रु और आंतरिक असंतोष से निपटने तक ही सीमित नहीं रखते। वे आर्थिक प्रगति, सामाजिक शांति एïवं स्थायित्व और राजनीतिक समावेशन को भी राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ जोड़ते हैं।

पाकिस्तानी फौज का फर्जीवाड़ा

यदि किसी देश की आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक नींव कमजोर हैं तो उसका रक्षा कवच हमेशा लोगों के कल्याण की कीमत पर मजबूत होता है। इससे सैन्य सेवाएं ही मजबूत होती जाती हैं, जिससे राजस्व का बड़ा हिस्सा सुरक्षा संसाधनों पर खर्च हो जाता है। इस प्रक्रिया में देश के नागरिकों के कल्याण की कीमत पर सैन्य बल समृद्ध होते जाते हैं। पाकिस्तानी सेना इस फर्जी विचार को ही भुनाने में जुटी है कि भारत पाकिस्तान का स्थायी शत्रु है, जो उसे बर्बाद करने पर तुला है। इसकी आड़ में सेना ने न केवल राजनीतिक जीवन, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था और राजस्व पर भी नियंत्रण स्थापित कर लिया है। चुनी हुई सरकारों के दौर में भी यह सिलसिला कायम रहा। पाकिस्तानी संसद देश का बजट तो पारित करती है, लेकिन रक्षा पर होने वाला वास्तविक व्यय कभी उजागर नहीं किया जाता। यह उल्लेखनीय है कि एनएसपी में इस पर विमर्श हुआ कि पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए आर्थिक प्रगति बहुत आवश्यक है। उसमें न केवल लोगों के कल्याण, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता बताई गई है। यह विचार तब तक मूर्त रूप नहीं ले पाएगा जब तक पाकिस्तान भारत के प्रति अपनी नीति और कश्मीर को लेकर अपनी सनक नहीं छोड़ देता। पाकिस्तान द्वारा ऐसा किए जाने के कोई संकेत भी नहीं हैं।

उजागर हुई पाकिस्तान की असल मंशा

एनएसपी में भले ही यह उल्लेख हो कि पाकिस्तान भारत से बेहतर संबंध चाहता है, किंतु भारत के प्रति सभी पूर्वाग्रहों को दोहराकर उसने इस मंशा पर पानी फेर दिया। इसके अलावा एनएसपी भारत के ङ्क्षहदुत्व की राजनीति की चपेट में आने का आरोप लगाती है कि इससे पाकिस्तान की सुरक्षा प्रभावित हो रही है। भारत की राजनीति उसका अंदरूनी मामला है, लेकिन एनएसपी पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने से जुड़े नरेन्द्र मोदी के प्रयासों को अनदेखा करती है। एनएसपी पाकिस्तान को एक उदार मुस्लिम राष्ट्र बनाने की बात करती है, जो सांस्कृतिक विविधिता को सम्मान दे। समस्या यह है कि पाकिस्तान का सृजन ही द्विराष्ट्र सिद्धांत पर हुआ, जो इस पर आधारित है कि ङ्क्षहदू और मुस्लिम अलग राष्ट्र और एक-दूसरे के विरोधी हैं। ऐतिहासिक अनुभव यही बताते हैं कि धार्मिक आधार पर बने देश सांस्कृतिक विविधता को स्वीकार नहीं करते और सांप्रदायिकता के शिकार हो जाते हैं। पाकिस्तान का यही हाल है, जहां हिंसा करने वाले कïट्टरपंथी धड़े मजबूत हो रहे हैं। वे पाकिस्तानी समाज को अतिवादी बना रहे हैं। पाकिस्तानी पंजाब के पूर्व गवर्नर सलमान तासीर की नृशंस हत्या का मामला इसकी एक मिसाल है। तासीर की हत्या उनके ही अंगरक्षक मुमताज कादरी ने सिर्फ इसलिए कर दी थी, क्योंकि उसे लगा कि तासीर ईशनिंदा की आरोपित एक ईसाई महिला के हमदर्द हैं। कादरी को बाद में फांसी की सजा हुई, लेकिन उसकी मजार को लोगों ने श्रद्धा का केंद्र बना दिया। एनएसपी में ऐसे कृत्यों और कादरी जैसे लोगों को भड़काने वाले तत्वों की कोई निंदा नहीं। पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून की समाप्ति के भी कोई संकेत नहीं।

अपनी ही मुश्किलों से घिरा बिगड़ैल पड़ोसी

पाकिस्तान में कट्टरपंथी ताकतों के लगातार मजबूत होने और सेना द्वारा अपने नीतिगत उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आतंक का इस्तेमाल करने जैसे पहलुओं को देखते हुए अर्थव्यवस्था में सुधार की एनएसपी की आकांक्षा पूरी नहीं हो सकती। इसकी वजह यही है कि पाकिस्तान को बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश और वित्तीय पूंजी, दोनों की आवश्यकता है, लेकिन शांति एवं स्थिरता के अभाव में उसे निवेशकों का साथ मिलना संभव नहीं। इसमें केवल चीन ही अपवाद है, जो अपने हितों की पूर्ति के लिए पाकिस्तान में आर्थिक गलियारे का निर्माण कर रहा है। हालांकि केवल यही परियोजना पाकिस्तान की तकदीर बदलने में सक्षम नहीं। इस परियोजना के कारण बलूचिस्तान जैसे प्रांतों में भारी असंतोष है। भारत से सौ साल तक संबंध ठीक रखने का दावा करने वाली पाक की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति इस पर जोर देती है कि पाकिस्तान को अपनी भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाना चाहिए। इसमें संदेह नहीं कि पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति बहुत शानदार है, लेकिन कनेक्टिविटी का लाभ वह भारत के सहयोग के बिना नहीं उठा पाएगा। सहयोग के जरिये ही वह भारत और उसके पूर्वी हिस्सों के साथ सही तरह से जुड़ सकेगा। हालांकि भारत के प्रति शत्रुता भाव के कारण उम्मीद नहीं कि वह इस पर विचार करेगा। अंदेशा यही है कि वह अवरोध के लिए भारत को बेवजह दोष देता रहेगा।

चूंकि पाकिस्तान एक परमाणु हथियारों वाला देश है इसलिए महाशक्तियां नहीं चाहेंगी कि उसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो जाए। अभी वह आइएमएफ से लेकर सऊदी अरब की मदद के भरोसे चल रहा है। एनएसपी में अर्थव्यवस्था की सेहत को सुधारने का कोई नुस्खा नहीं है। इसके लिए पाकिस्तान को द्विराष्ट्र सिद्धांत वाली अपनी विचारधारा को छोडऩा होगा, जिसमें वह अनिच्छुक दिखता है। वास्तव में पाकिस्तान सेना को यह कभी रास नहीं आएगा, जो खुद को देश का वास्तविक संरक्षक समझती है, जो उसकी भौगोलिक सीमाओं की रक्षा और द्विराष्ट्र सिद्धांत के प्रति वचनबद्ध है।

(लेखक विदेश मंत्रालय में सचिव रहे हैं)